हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है - पूज्य स्वामी श्री विवेकानंद जी परिव्राजक

वेद प्रचार समिति वैदिक संस्थान शिवपुरी के तत्वावधान में तीन दिवसीय वैदिक सत्संग एवं आध्यात्मिक शंका समाधान कार्यक्रम का आयोजन शिवपुरी नगर में आज से प्रारम्भ हुआ। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में आध्यात्मिक शंका समाधान एवं कर्म फल सिद्धांत विशेषज्ञ, उपनिषद एवं दर्शनों के प्रकाण्ड विद्वान परम पूज्य स्वामी श्री विवेकानंद जी परिव्राजक है । 3 दिन चलने वाले इस कार्यक्रम का शुभारंभ दिनांक 1 फरवरी शुक्रवार को दोपहर 2 बजे जिला न्यायालय में "न्याय एवं कर्म फल व्यवस्था" पर स्वामी जी के व्याख्यान से प्रारम्भ हुआ एवं शाम 4 से 6 बजे तक स्थानीय शगुन वाटिका में 'हमारे जीवन का उद्देश्य' विषय पर पूज्य स्वामी जी का उद्बोधन हुआ तत्पश्चात शंका समाधान में लोगों की जिज्ञासाओं को भी स्वामी जी ने शांत किया ।

"हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है" विषय पर चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि - एक व्यक्ति अपना बेग लेकर रेलवे स्टेशन की ओर जा रहा था | रास्ते में उसका एक मित्र मिला उसने पुछा कि भाई कहाँ जा रहे हो | इस पर उस व्यक्ति ने जवाब दिया "कहीं तो पहुँच ही जायेंगे" | ऐसे ही एक व्यक्ति रेलवे स्टेशन पर खड़ा हुआ था | उससे उसके एक मित्र ने पूछा की "आप कहाँ जा रहे है" तब उस व्यक्ति ने जवाब दिया "बंगलौर" | दोनों ही व्यक्तियों के जवाब से पता चलता है कि कौन व्यक्ति यात्रा पर जा रहा है और कौन भटकने जा रहा है | जिस व्यक्ति को यह नहीं पता कि वह कहाँ जा रहा है वह यात्रा पर नहीं बल्कि भटकने जा रहा है एवं जिस व्यक्ति को मालूम है कि वह कहाँ जा रहा है वह यात्रा पर जा रहा है क्योँकि उसे उसके लक्ष्य का पता है | ठीक इसी प्रकार जब हम बच्चों से पूछते है कि आप बड़ा होकर क्या बनेंगे तो बहुत से बच्चे कहते है कि कुछ तो बन ही जायेंगे | जो लोग ऐसा सोचते है कि बड़े होकर कुछ तो बन ही जायेंगे इसका अर्थ है कि उन्हें यह ज्ञात नहीं है कि आखिर अपने जीवन में करना क्या चाहिए | एक तरह से वह जीवन में भटक रहे है | हमें यह पता होना आवश्यक है कि हम जीवन में क्या करेंगे | तब तो यह माना जायेगा कि हमारा जीवन सही चल रहा है एवं हम अपने जीवन की यात्रा में सही दिशा में जा रहे है | 

हम सभी सुख चाहते है | हम सभी सुख की तलाश में है | परन्तु क्या हम सभी को अपने अभी तक के जीवन में १०० प्रतिशत सुख मिल पाया है ? क्या ऐसी आशा है कि हम बचे हुए दिनों में १०० प्रतिशत सुख प्राप्त कर पाएंगे ? जब यह १०० प्रतिशत सुख यहाँ मुमकिन ही नहीं है, तो उसे पाने की या तो आपकी सोच गलत है या फिर कहीं इस लोक के अतिरिक्त यह १०० प्रतिशत सुख मिलता होगा | अब इन दोनों बातों में से कौनसी बात सही है ? सम्पूर्ण सुख मोक्ष में संभव है परन्तु कितने लोग है जो मोक्ष को मानते है ? हम दुःख भोगना नहीं चाहते है, दुःख से छूटना चाहते है | हम दुख से पूर्णतः मुक्ति एवं पूर्ण सुख की कामना करते है परन्तु क्या यह दोनों बातें इस संसार में संभव है ? नहीं, परन्तु यह दोनों बातें मोक्ष में संभव है | अतः हमारे जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है | मोक्ष में कुल तीन बातें होती है | पहली - सारे दुखों से छूटना, दूसरी - ईश्वर का उत्तम आनंद प्राप्त करना, तीसरी - पूरे ब्रह्माण्ड की सैर करना | यदि हम सारे दुखों से छूटना चाहते है, ईश्वर का उत्तम आनंद प्राप्त करना चाहते है एवं पूरे ब्रह्माण्ड की सैर करना चाहते है तो हमें मोक्ष, जो सभी चाहते है को प्राप्त करना होगा, जो कि मुफ्त में नहीं मिलेगा उसके लिए सात्विक कर्म करने होंगे | परन्तु मनुष्य कर्म करने से घबराता है पर यह समझना बेहद आवश्यक है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए सात्विक कर्म करना ही होंगे, चाहे वह इस जन्म में करना पड़े, या २० जनम के बाद करना पड़े या १०० जनम के बाद करना पड़े | 

इसके बाद स्वामी जी ने पुनर्जन्म पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आजकल 10 प्रतिशत लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते है, 50 प्रतिशत पुनर्जन्म में बिलकुल भी विश्वास नहीं करते एवं 40 प्रतिशत में पुनर्जन्म को लेकर संशय है | जब लोगों को अगला ही जन्म समझ में नहीं आता तो मोक्ष कैसे समझ में आएगा ? 

पुनर्जन्म को समझने के लिए हमें यह समझना आवश्यक है कि जब इस जन्म में हमें मनुष्य के रूप में जन्म मिला है, यह मुफ्त में नहीं मिला है बल्कि यह हमारे पिछले जन्म के कर्मों का फल है | कर्म पहले किये जाते है एवं फल बाद में ही प्राप्त होते है | हमारा यह शरीर कर्मों का फल है जो हमने पिछले जन्म में किये है एवं इस जन्म में किये जा रहे कर्मों का फल ही हमें अगले जन्म में प्राप्त होगा | अतः स्पष्ट है कि पुनर्जन्म होता है | पुनर्जन्म से मोक्ष के द्वारा ही बचा जा सकता है | कई लोग यह मानते है कि मोक्ष का अर्थ है कि आत्मा का परमात्मा में विलीन होना, परन्तु यह सत्य नहीं है | यदि आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाये तो आत्मा का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा | यह तो आत्मा का सर्वनाश हुआ न कि मोक्ष | क्या हम अपना सर्वनाश करना चाहते है ? ऐसा सर्वनाश संभव भी नहीं है क्योंकि जो वस्तु जहाँ से पैदा होती है वो वहीँ पर जाकर समाप्त होती है, जैसे मिटटी से बना हुआ घड़ा | घड़ा टूटने के बाद छार छार होकर पुनः मिटटी में ही मिलता है | आत्मा ईश्वर में से पैदा नहीं होती अतः वह ईश्वर में जाकर नहीं समा सकती | 

अब प्रश्न उठता है कि आत्मा की उत्पत्ति कहाँ से हुई ? आत्मा को कई लोग परमात्मा का अंश मानते है परन्तु किन्ही दो पदार्थों में कुछ गुण एक समान हो सकते है एवं कुछ अंतर भी होते है | जब हम केवल समानता को देखेंगे तो भ्रान्ति होगी एवं जब हम समानता के साथ साथ अंतर को भी देखेंगे तो भ्रान्ति नहीं होगी | दो मनुष्यों में भी कुछ कुछ समानताएँ होती है एवं कुछ अंतर भी होते है | इसीलिए दो मनुष्य अलग अलग होते है एक नहीं होते है | दोनों ही मनुष्य, मनुष्य है, बाकि मनुष्य भी मनुष्य होते है, यह मनुष्य में समानता है, परन्तु इस समानता से सभी मनुष्य एक नहीं होते है | जब दो अलग अलग चीजों में अंतर होता है तो वह दोनों अलग अलग होती है | इसी प्रकार ईश्वर और आत्मा में कुछ बातें तो एक समान है , लेकिन केवल इन समानताओं से यह सिद्ध नहीं होता कि दोनों एक है या एक दुसरे का अंश है | जैसे आत्मा भी चैतन्य है, ईश्वर भी चैतन्य है | आत्मा भी अमर है, ईश्वर भी अमर है | आत्मा और ईश्वर दोनों अनादि पदार्थ है | आत्मा और ईश्वर दोनों नित्य है | यह इन दोनों में समानताये है पर इतनी समानताएं होने से दोनों को एक नहीं समझा जा सकता है, नहीं तो भ्रान्ति हो जाएगी | 

आत्मा और ईश्वर में अंतर भी है जैसे ईश्वर घोटाले नहीं करता है, परन्तु आत्मा करता है, ईश्वर झूठ नहीं बोलता है जबकि आत्मा झूठ बोलता है, ईश्वर दुखी नहीं होता है जबकि आत्मा दुखी होता है, ईश्वर को भ्रान्ति नहीं होती है जबकि आत्मा को भ्रान्ति होती है, ईश्वर का ज्ञान सम्पूर्ण है जबकि आत्मा का ज्ञान बहुत थोड़ा है, ईश्वर सर्व शक्तिमान है जबकि आत्मा अल्प शक्तिमान है, यह दोनों में अंतर है | अतः स्पष्ट है कि ईश्वर अलग है जबकि आत्मा अलग | जो पैदा होता है उसकी मृत्य निश्चित होती है यदि आत्मा ईश्वर में से पैदा हुई है तो उसकी मृत्यु भी स्वाभाविक है परन्तु आत्मा तो अमर है | इससे सिद्ध होता है कि आत्मा अलग है और ईश्वर अलग | 

जब ईश्वर और आत्मा अलग अलग है तो फिर मोक्ष (मुक्ति) का क्या अर्थ है ? मोक्ष (मुक्ति) का अर्थ है कि इस जन्म मरण के चक्कर से छूटना | जन्म मरण से छूटने के सारे दुखों से छूटकारा मिल जायेगा, ईश्वर का उत्तम आनंद प्राप्त होगा, पूरे ब्रह्माण्ड की सैर करने की स्वतंत्रता मिल जाएगी | ईश्वर का अस्तित्व अलग है एवं आत्मा का अस्तित्व अलग है | दोनों की सत्ता बनी रहेगी | अतः मोक्ष प्राप्ति के बाद आत्मा जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाएगी | इस संसार में हम जितने भी सुख भोगते है उनसे हमारी इच्छाएं और बढ़ती है जिसका परिणाम है दुःख | जबकि मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् सुख ही सुख है दुःख का कोई नाम ही नहीं है | मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् ईश्वर से सभी आनंद प्राप्त होंगे एवं मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् आत्मा सम्पूर्ण ब्राह्मण में कहीं भी विचरण करने को स्वतंत्र होगा वह एक सूर्य से दुसरे सूर्य में जा सकता है, नदी देखेगा, तालाब देखेगा | यह मोक्ष है | ईश्वर का मोक्ष आत्मा को करोणों वर्षों तक मिलेगा | मोक्ष (मुक्ति) का समय 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्ष होता है (311040000000000 वर्ष)

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