क्या रद्द किया जा सकता है पाकिस्तान के साथ 1960 में हुआ सिन्धु जल समझौता ?



पुलबामा आतंकी हमले के बाद आजकल भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है | ऐसे में 1960 में दोनों देशों के बीच हुआ सिंधु जल समझौता रद्द किये जाने की मांग भी जोर पकड़ रही है | यह कोई पहला अवसर नहीं है, जब यह मांग उठी हो | 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले के समय भी यह मांग उठी थी | किन्तु व्यवहारिक कठिनाईयों के कारण ठन्डे बस्ते में चली गई | आइये जानते हैं इस समझौते की पृष्ठभूमि और समझते हैं इसे रद्द करने की पेचीदिगियाँ –

“सिंधु क्षेत्र में नदियों का जो प्राकृतिक संजाल है, उसे दुनिया का सबसे विशाल व विविधतापूर्ण नदी तंत्रों में से एक माना जाता है। कैलाश-मानसरोवर के पास के ग्लेशियरों से निकली सिंधु नदी अरब सागर में समाहित होने के पहले कोई 3180 किलोमीटर की दूरी तय करती है। सिंधु घाटी के कुल क्षेत्रफल 9,44,568 वर्ग किलोमीटर में से लगभग आधा- 4,15,434 वर्ग किलोमीटर का इलाका तिब्बत, भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की ऊँचाई वाली जगहों में फैला हुआ है। बाकी का हिस्सा सिंधु के मैदानों में है।

भारत में सिंधु घाटी का 39 प्रतिशत हिस्सा पड़ता है जो जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और चंडीगढ़ में फैला है। तिब्बत और अफगानिस्तान में 14 प्रतिशत हिस्सा पड़ता है। बाकी 47 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान में है। पाकिस्तान में सिंधु नदी के दाएँ किनारे पर एक नदी है काबूल जो अफगानिस्तान से आती है। बाएँ किनारे भारत से गई पाँचों नदियाँ मिलती हैं।

भारत-विभाजन के समय सिंधु घाटी की नदियों पर बने अनेक बाँध, नहर तथा सिंचित क्षेत्र अलग-अलग देशों में चले गए तब विश्व बैंक की मध्यस्थता में 19 सितम्बर 1960 को सिन्धु जल संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अय्यूब खान ने समझौते पर हस्ताक्षर किये । इसके पूर्व 1948 से 1960 के बीच कई दौर की वार्ताएँ हुईं, दस्तावेजों और सूचनाओं का आदान-प्रदान हुआ। 

बँटवारे में पूरब की नदियाँ- सतलुज, रावी और व्यास के अबाध उपयोग का हक भारत को मिला जबकि सिंधु, झेलम और चेनाब पाकिस्तान को दी गई। इन नदियों के जल प्रवाह में असमानता को पाटने के लिहाज से भारत को पश्चिमी नदियों के 20 प्रतिशत जल के गैर उपभोग्य (नन कंज्यूमेटिव) उपयोग करने का हक भी मिला। यह अलग बात है कि अभी तक भारत इसका महज चार प्रतिशत ही उपयोग कर रहा है | अपने हिस्से के जल के उपयोग की कोई योजना ही नहीं बनाई गई | केन्द्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी ने अब पहली बार इसकी कार्य योजना बनाने के निर्देश अपने विभाग को दिए हैं |

भारत ने उस समय यह सोचकर संधि पर हस्ताक्षर किये थे कि उसे जल के बदले शान्ति मिलेगी | लेकिन बैसा हुआ नहीं | जिस समय यह संधि हुई थी उस समय पाकिस्तान के साथ भारत का कोई भी युद्ध नही हुआ था उस समय परिस्थिति बिल्कुल सामान्य थी | पर 1965 में दोनों देशों में युद्ध भी हुआ और पाकिस्तान को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा | फिर 1971 में पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध लड़ा जिस में उस को अपना एक हिस्सा खोना पड़ा जो बंगला देश के नाम से जाना जाता है | तब से अब तक पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद का हलाहल तो लगातार भारत को पीना ही पड़ रहा है | 

एक और ख़ास बात ध्यान देने योग्य है कि जम्मू कश्मीर के लोग भी इस समझौते के पक्ष में नहीं है, क्योंकि इसके कारण उन्हें पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता तथा हर साल करोड़ों का आर्थिक नुक्सान होता है | समझौते में कश्मीर की अनदेखी को लेकर कश्मीरी लोगों में लम्बे समय से गहरा विक्षोभ है। उनका कहना है कि इस समझौते की वजह से राज्य अपने कीमती संसाधन -जल संसाधन के सहारे अपना विकास नहीं कर पा रहा। इस मसले पर कश्मीर विधानसभा में तीन-तीन बार प्रस्ताव पारित हुआ है। 2003 में तो जम्मू कश्मीर विधानसभा ने प्रस्ताव पारित कर इस संधि पर पुनर्विचार की मांग भी की थी | ऐसे में प्रख्यात रक्षा विशेषज्ञ श्री ब्रह्मा चेलानी ने “द हिन्दू” में लेख के माध्यम से विचार व्यक्त किया है कि –

भारत बियना समझौते के “लॉ ऑफ़ ट्रीटीज की धारा 62” के अंतर्गत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकी गुटों का इस्तेमाल उसके खिलाफ कर रहा है | अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने कहा है कि अगर मूलभूत स्थितियों में परिवर्तन हो तो किसी संधि को रद्द किया जा सकता है |

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि भारत संधि रद्द करना तो दूर की बात है अगर संधि के अनुसार ही पानी का भंडारण शुरू कर दे, तो पाकिस्तान की हालत खराब हो जायेगी | पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए दौड़ेगा भी, तो कोई नतीजा नहीं निकलेगा | 

स्मरणीय है कि 1 अप्रैल 1948 को जब ये समझौता लागू नहीं था, तब भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया था, जिससे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में 17 लाख एकड़ जमीन पर फसल बर्बाद हो गई थी | 

पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों से पानी ले जाने के लिये नहरें बनानी थीं। विश्वबैंक की मध्यस्थता की वजह से अमेरिका का मददगार हाथ उसके साथ था। भारत ने अपने हिस्से की सतलुज नदी पर भाखड़ा-नांगल डैम बना लिया और रावी व व्यास नदियों को उससे जोड़ दिया। पश्चिमी नदियों पर पानी जमा करने वाली कोई संरचना भारत में नहीं बनी।

चेनाब पर अंग्रेजों के जमाने से दो सैलाबी नहरें जरूर बनी हैं- रणबीर नहर और प्रताप नहर जिनका उल्लेख सिंधु जल समझौता में भी है। भारत ने पिछले दशक में झेलम पर किशनगंगा और चेनाब पर बगलिहार पनबिजली परियोजनाएँ आरम्भ किया। पाकिस्तान इसके खिलाफ अन्तरराष्ट्रीय अदालत में चला गया। हालांकि अदालत ने परियोजना पर काम आगे बढ़ाने की इजाजत दे दी, केवल कुछ तकनीकी संशोधन करने के लिये कहा। इसके अलावा झेलम के वेलूर झील के पास तुलबुल बैराज बनाने की योजना 1987 में सामने आई।

यह नौवहन परियोजना थी जिससे झील के मुहाने पर नौकायन के लायक गहराई रखा जा सके। अभी पानी की गहराई एक-डेढ़ फीट रह जाती है। पाकिस्तान के विरोध के चलते भारत की तत्कालीन सरकार ने 2007 में इस परियोजना पर काम रोक दिया। झेलम पर उक्त बैराज के अलावा चेनाब की सहायक नदियों पर पक्कलडल डैम, झेलम पर सवालकोट, उधमपुर जिले में और चेनाब पर किश्तवार जिले में बरसर डैम निमार्णाधीन हैं।

पश्चिमी नदियों पनबिजली उत्पादन की कुल क्षमता 18,653 मेगावाट आँकी गई है। विभिन्न कार्यरत योजनाओं से 3034 मेगावाट बिजली बनाई जा रही है। 2526 मेगावाट की परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। तथा 5,846 मेगावाट की पनबिजली परियोजनाएँ योजना के विभिन्न स्तरों पर लम्बित हैं।

संधि रद्द करने में आने वाली जटिलताएं –

अगर सिंधु जल समझौता निरस्त कर दिया जाता है तो क्या होगा? सिंधु नदी का पानी कहाँ जाएगा? कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने तो आज व्यंग भी किया है कि अगर पकिस्तान का पानी रोका गया तो सिन्धु का पानी दिल्ली तक को डूबा देगा | यह कोरा मजाक नहीं है, जम्मू कश्मीर में तो बाढ़ आ ही जायेगी ।

पहले सिंधु का पानी रोकने या मोड़ने के लिए जरूरी संरचना निर्माण करना होगी । सिंधु व सहायक नदियों के पानी की हिस्सेदारी का प्रश्न फिर भी रहेगा। अगली बार चीन और अफगानिस्तान भी हिस्सेदार होंगे। कुल मिलाकर एक गड़बड़झाले की शुरुआत होगी।

वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सभी नदियों की तरह सिंधु घाटी की नदियों का जल प्रवाह भी घटा है। इसके अलावा पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में सिंचाई के लिये अधिक पानी रोक लिया जाता है तो सिंध प्रान्त में पानी के लिये हाहाकार मचता है। पर पाकिस्तान पानी की कमी के लिये भारत को जिम्मेवार ठहराता है।

अपने लोगों का ध्यान दूसरे मुद्दों से हटाने के लिये पाकिस्तान जिन भारत विरोधी भावनाओं को हवा देता है, उसमें भारत पर पानी रोकने का बेबुनियाद आरोप भी शामिल होता है। इस आरोप को लेकर वह अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत की दौड़ लगाकर परास्त भी हो चुका है। 
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