मायावती और कांग्रेस के सम्बन्ध क्यों बिगड़े, किसने बिगाड़े ?

प्रख्यात पत्रकार श्री संतोष भारतीय ने एक जबरदस्त रहस्योद्घाटन किया है |

आखिर मायावती जी और कांग्रेस में कोई समझौता क्यों नहीं हुआ |
श्री भारतीय के अनुसार मायावती को मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस द्वारा दी जा रही कम सीटों से कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि उनका पहला लक्ष उत्तरप्रदेश था - है और रहेगा |
जब बातचीत आगे बढी तो कांग्रेस द्वारा मायावती को चर्चा के लिए बुलाया गया | मायावती को लगा कि उनसे शायद राहुल जी या कोई अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति चर्चा करेगा | लेकिन जब वे चर्चा के लिए नियत स्थान पर पहुंची तो उनको शॉक लगा |
मायावती से मिलने और चर्चा करने आये थे - श्री पी एल पुनिया और नसीमुद्दीन सिद्दीकी | 
पी एल पुनिया तो मायावती के अधीन सेक्रेटरी रहे थे और बाद में बसपा में शामिल हो गए थे | इसी प्रकार नसीमुद्दीन सिद्दीकी भी बसपा में उनके सबसे भरोसे के व्यक्ति थे, किन्तु बाद में उक्त दोनों ही सज्जनों को मायावती ने पार्टी से निकाल दिया था |
उन्होंने कड़वा घूँट पीकर भी इन दोनों से सवाल किया कि क्या आपको कांग्रेस ने निर्णय लेने के लिए भी अधिकृत किया है ? या फिर आप जाकर किसी को रिपोर्ट करोगे और वह निर्णय लेगा |
स्वाभाविक ही दोनों ने यही कहा कि हमें निर्णय करने का कोई अधिकार नहीं है |
मायावती ने इसे अपना अपमान माना और वहां से यह कहते हुए वापस हो गईं कि मेरे साथ विश्वासघात हुआ है | कांग्रेस मेरे साथ कोई समझौता नहीं करना चाहती बल्कि मेरा अपमान करना चाहती है |
नतीजा सामने है कि मायावती और अखिलेश का समझौता हुआ और कांग्रेस से सम्बन्ध बिगड़ गए | यह अलग बात है कि उसके बाद कांग्रेस ने डेमेज कंट्रोल की हरचंद कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए |
मजे की बात यह कि सपा और बसपा का भी समझौता तो हो गया, लेकिन दोनों के बीच आज भी अविश्वास की खाई मौजूद है |
मायावती चाहती थीं कि अमेठी और रायबरेली से भी वे अपना केंडीडेट लड़ाएं | सपा नेतृत्व को लगा कि मायावती 2022 के चुनाव को ध्यान में रखकर ऐसा चाहती हैं और सपा को पूरी तरह खा जाना चाहती हैं |
अतः उन्होंने सेम पित्रोदा से संपर्क कर उनके पास उन कांग्रेसियों के प्रमाण भेजे जो अन्दर ही अन्दर भाजपा से नजदीकी रखे हुए हैं |
अर्थात समाजवादी अखिलेश कांग्रेस से भी अंदरखाने दोस्ती रखकर भविष्य की संभावनाओं को जीवित रखना चाहते हैं |
श्री संतोष भारतीय ने इस बात से भी पर्दा उठाया है कि वे कौन लोग थे, जिन्होंने कांग्रेस और बसपा का समझौता नहीं होने दिया और पी एल पुनिया व सिद्दीकी को भेजकर सब गुड गोबर किया ?
उनके नाम हैं - उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष श्री राज बब्बर और कांग्रेस के महासचिव गुलाम नवी आजाद |
जैसे ही राहुल गांधी और प्रियंका को पता चला कि इन दोनों ने उनका सारा खेल बिगाड़ा है, तो सबसे पहले तो गुलाम नवी को उत्तर प्रदेश से हटाकर हरियाणा भेजा गया और कह दिया गया कि चुनाव के बाद आप केवल जम्मू कश्मीर तक ही सीमित रहेंगे | राज बब्बर भी चुनाव के बाद शायद ही उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रह पायें |
कल प्रियंका गांधी का जो बयान सामने आया है कि हमें इस चुनाव से ज्यादा 2022 के विधान सभा चुनाव को ध्यान में रखना है, वह भी इस सारे घटनाक्रम का ही नतीजा है | अर्थात हालत यह है कि प्रियंका और मायावती आज की तारीख में एक दूसरे के धुर विरोधी बन चुके हैं |
इन सब बातों से इतना तो समझा ही जा सकता है कि विपक्षी खेमा आपसी तलवारबाजी में व्यस्त है | साथ ही उनके पास सुयोग्य रणनीतिकार भी नहीं हैं |
जबकि दूसरी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की पैठ सभी दलों के अंदर तक है | उन्हें पल पल की ख़बरें मिलती हैं और वे यथा समय उचित निर्णय ले पाते हैं | राजनैतिक संबंधों में जलेबियों जैसे घुमाव तो होते ही है, 
साथ ही इन जलेबियों को खाता कोई एक ही है | जो खाता है उसे ही विजेता कहा जाता है |

कुल मिलकर राजनीति, घात - प्रतिघात की ही कहानी का नाम है | 

साभार आधार  -

www.facebook.com/santosh.bhartiya.1/videos/2099902190045280/

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