राहुल जी का वायनाड पलायन - भाजपा की बल्ले बल्ले - दिवाकर शर्मा

कितने आश्चर्य की बात है कि अमेठी जिसे गांधी परिवार की पुस्तैनी सीट समझा जाता है, वहां से इस बार राहुल जी को जीत संदिग्ध लगी और उन्होंने अमेठी के साथ केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ने का निर्णय लिया | अमेठी से गांधी परिवार का रिश्ता शुरू हुआ 1977 से जब स्व. संजय गांधी पहली बार यहाँ से चुनाव लडे और आपातकाल विरोधी लहर में लगभग छियत्तर हजार वोटों से पराजित हुए | जिद्दी संजय गांधी ने 1980 में एक बार फिर अमेठी से ही चुनाव लड़ना तय किया और सफल हुए | वे लगभग सवा लाख वोटों के विशाल अंतर से जीते | 

संजय गांधी की हवाई दुर्घटना में हुई दुर्भाग्यपूर्ण असामयिक मृत्यु के बाद 1981 के उपचुनाव में स्व. राजीव गांधी ने इस सीट पर लगभग सवा दो लाख के विशाल अंतर से जीत हासिल की | सामने चुनाव लडे सभी प्रत्यासियों की जमानत जब्त हो गई | राजीव जी के सामने 1984 के उप चुनाव में श्रीमती मेनका गांधी सर्व विपक्ष समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ीं, लेकिन लगभग तीन लाख पन्द्रह हजार वोटों के विशाल अंतर से पराजित हुईं | 1991 से भाजपा ने इस सीट पर अपनी उपस्थिति दर्ज करना शुरू किया और पहले राजीव गांधी और फिर केप्टिन सतीश शर्मा के सम्मुख सम्मानजनक पराजय प्राप्त की | यहाँ तक कि 1998 में तो धूल में लट्ठ लग गया और भाजपा प्रत्यासी संजय सिंह ने उन्नीस हजार वोटों से सतीश शर्मा को हरा भी दिया | लेकिन 1999 में राजीव जी की हत्या के बाद हुए चुनाव में सहानुभूति की सुनामी ऐसी चली कि सोनिया जी लगभग तीन लाख वोटों के विराट अंतर से विजई हुईं | तबसे आज तक कांग्रेस या यूं कहें कि गांधी परिवार को अमेठी से कभी पराजय नहीं मिली | 

2004 में राहुल जी लगभग तीन लाख से जीते तो 2009 में जीत का अंतर साढ़े तीन लाख को पार कर गया | मजे की बात यह कि लड़ाई में भाजपा का तो कहीं नामो निशान भी नहीं था, दूसरे नंबर पर बसपा प्रत्यासी रहे | लेकिन इसके बाद 2014 में एंट्री हुई श्रीमती स्मृति ईरानी की और पहली बार राहुल जी को आटे दाल का भाव पता चल गया | जीत का अंतर महज एक लाख आठ हजार के आसपास आ गया | जुझारू स्मृति ईरानी ने इस सम्मानजनक पराजय को भी एक चुनौती के रूप में लिया और अमेठी को एक प्रकार से अपना दूसरा घर ही बना डाला | स्मृति ईरानी के अमेठी वासियों के साथ सतत जीवंत संपर्क ने पहले से ही डिप्रेशन में चल रहे राहुल जी को दिन में तारे दिखा दिए | उन्हें अपनी पराजय की दास्तान दीवार पर साफ़ लिखी दिखाई देने लगी | उन्हें समझ में आ गया कि वे चाहे जितना मंदिर मंदिर घूमें, जनेऊ दिखाएँ या स्वयं को दत्तात्रेय ब्राह्मण घोषित करें, अमेठी के तेरह लाख हिन्दू वोटर उनके झांसे में आने वाले नहीं है | तो फिर आखिर केवल ढाई लाख मुस्लिम वोटों के सहारे चुनावी वैतरणी कैसे पार होगी ? और नतीजा यह हुआ कि उनके सिपहसालारों ने उनके लिए सुरक्षित क्षेत्र की खोज शुरू कर दी | और स्वाभाविक ही उनके लिए खोजी गई ऐसी सीट जहाँ लगभग पचास प्रतिशत मुस्लिम और ईसाई मतदाता हैं | 

बेप्टिस्ट चर्च तो सदा से सोनियासुत राहुल जी के प्रति सद्भाव रखता ही आया है, अतः वायनाड के 21.34 प्रतिशत ईसाई मतों को तो वे अपनी झोली में मानकर चल रहे हैं | 28.65 प्रतिशत मुस्लिम वोट भी उन्हें अधिकाँश मिल जायेंगे, इसकी उन्हें पूर्ण आशा है | और बैसे भी परंपरा से यह संसदीय क्षेत्र कांग्रेस को जिताता आया है | लेकिन मामला इतना आसान भी नहीं है | केरल में वामपंथी सत्तासीन हैं और राहुल का केरल से चुनाव लड़ना उन्हें अपने अस्तित्व के लिए संकट प्रतीत होने लगा है | केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और सीपीएम के पूर्व महासचिव प्रकाश करात ने इस निर्णय को अपने खिलाफ युद्ध की घोषणा माना है और राहुल की पराजय सुनिश्चित करने की बात की है | केरल में भले ही भाजपा कभी जीत नहीं पाई हो, लेकिन जीत हार में उसकी भूमिका रहती आई है | कांग्रेस व सीपीएम दोनों का वोट आधार लगभग एक ही है | 

कई समीक्षकों का मानना है कि जब भी भाजपा वहां दम से लड़ती है, चुनावी पलड़ा कम्यूनिस्टों की तरफ झुकता है | भाजपा कांग्रेस के हिन्दू वोटों में सेंध लगाती है | इस बार बहुचर्चित सबरीमाला प्रकरण के बाद परंपरावादी हिन्दुओं में एकजुटता है | अतः जिस प्रकार भाजपा ने वायनाड से भारत धर्म जन सेना के अध्यक्ष तुषार वेलापेल्ली को अपना कैंडिडेट घोषित किया है, उससे इस त्रिकोणीय संघर्ष में किसी का भी पलड़ा भारी हो सकता है | अब चाहे राहुल जी चुनावी विसात में पिछड़ें या जीतें संयुक्त विपक्ष की मुहिम तो धराशाई ओंधे मुंह गिरी दिखाई दे ही रही है | माने भाजपा की बल्ले बल्ले |


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