कॉंग्रेसी नेता पारस सकलेचा ने की बेशर्मी की सभी हदें पर, साध्वी प्रज्ञा की तुलना डायन से की

कल से एक सवाल दिमाग में घुमड़ रहा है कि क्या कोई हत्यारा देशभक्त नहीं हो सकता ? क्या जेल में बंद सभी अपराधी देशद्रोही हैं | तभी स्मरण आया कि 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भारतीय फ़ौज की अगुआई करते हुए जयपुर के महाराजा भवानीसिंह ने एक दुर्दांत डाकू की मदद से पाकिस्तान के 100 से अधिक गाँवो पर कब्जा कर लिया था। यहाँ तक कि अगर युद्ध विराम न किया गया होता तो पाकिस्तान अधिकृत समूचा सिंध भी उसी समय आजाद कराया जा सकता था | 

क्या उस डाकू बलबंत सिंह को देशद्रोही कहा जाएगा ? लेकिन विचित्र है कि महात्मा गांधी को देश का पर्याय मान लिया गया है और उनके हत्यारे गोडसे को नर पिशाच | साध्वी प्रज्ञा का बयान असामयिक हो सकता है, किन्तु देश में आज भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो गोडसे के इस दुष्कृत्य के मूल में उनकी उत्कट देशभक्ति को मानते हैं | अगर गांधी जी की ह्त्या न हुई होती, तो क्या सवाल नहीं पूछे जाते कि उन्होंने पाकिस्तान को विभाजन के बाद उसके हक़ से ज्यादा धन क्यों दिलवाया ? उन्होंने वायदा किया था कि वे सिंध के लोगों के साथ रहेंगे, किन्तु विभाजन की विभीषिका में उन्हें मरने के लिए अकेला छोड़ दिया | 

खैर कहने को बहुत कुछ है | लेकिन फिलहाल एक सामयिक विषय | साध्वी प्रज्ञा ने गांधी हत्या को जायज नहीं ठहराया | उन्होंने केवल यह कहा कि गोडसे देशभक्त था | इसमें गलत क्या है ? और अब जो कांग्रेस बाही तबाही बक रहे हैं, उस पर भी नजर दौड़ाईये | कांग्रेस नेता पारस सकलेचा तो साध्वी प्रज्ञा को सीधे सीधे डायन ही बता रहे हैं | एक सताई हुई अबला के प्रति इतनी नफ़रत रखने वाले कांग्रेसी क्या इंसान कहे जाने योग्य हैं ?

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