द पेलेस गार्ड्स - महल के रक्षक - दिवाकर शर्मा



1977 में इंदिरा गांधी की करारी हार हुई | यहाँ तक कि वे स्वयं भी चुनाव नहीं जीत पाईं | रायबरेली से एक अनजान से समाजवादी नेता राजनारायण ने उन्हें हरा दिया | नवगठित जनता पार्टी के नेता मोरारजी देसाई चुने गए और प्रधान मंत्री बने | इंदिरा जी प्रधानमंत्री क्या सांसद भी नहीं रहीं, किन्तु आर के धवन जैसे लोग थे, जो उस समय भी उनको मेडम प्राईम मिनिस्टर संबोधन ही देते थे | उसके पीछे कुछ मुख्य कारण थे | आर के धवन जो किसी जमाने में करोल बाग की एक टाइपिंग की दुकान में महज टाईपिस्ट थे, बाद में इंदिरा जी की कृपा से केन्द्रीय मंत्री तक बने | 

आर के धवन का जीवन वृत्त बड़ा ही रोचक है | कभी नेहरु जी के निजी स्टाफ में रहे यशपाल कपूर रिश्ते में धवन साहब के मामा थे| उन्हें मालूम था कि भांजा हिन्दी टाइपिंग भी जानता है| एक दिन नेहरु जी के दफ्तर में हिन्दी में कुछ लेटर टाइप करने थे| हिन्दी टाइपिस्ट छुट्टी पर थे| मामा जी यानी य़शपाल कपूर ने भांजे को तुरंत तीन मूर्ति भवन पहुंचने के लिए कहा| मामा जी का आदेश पाते ही आरके धवन तीन मूर्ति भवन पहुंच गए| उन्होंने हिन्दी में लेटर टाइप किये| एक भी अशुद्धि नहीं| यहीं से खुल गई आरके धवन की किस्मत| उन्हें उसी ही दिन नेहरु जी के स्टाफ में नौकरी मिल गई| उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा| 

आरके धवन, इंदिरा गांधी के पीए 1962 में बने और 1984 में उनकी मौत तक उनके साथ ही रहे| इमरजेंसी के दौरान प्रधानमंत्री आज किससे मिलेंगी, इस फैसले में उनकी अहम भूमिका रहती थी| इमरजेंसी के दौरान जो कुछ लोग इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के सबसे करीबी थे, उनमें अंबिका सोनी और कमल नाथ जैसे लोगों के साथ आरके धवन का नाम भी है| इन लोगों के महत्व को देखते हुये इन्हें 'द पैलेस गार्ड्स' (महल के रक्षक) कहा जाने लगा था| कितनी विचित्र बात है कि उस समय के महल के रक्षक की भूमिका में आज शिवपुरी के कांग्रेसी हैं | उस समय पद से हट जाने के बाद भी उन लोगों की नज़रों में इंदिरा जी ही मेडम प्राईम मिनिस्टर थीं, तो आज भी भक्तों के लिए ज्योतिरादित्य जी ही शिवपुरी के सांसद हैं | संलग्न चित्रों के देखकर पाठकों को हमारे कथन की सत्यता खुदबखुद पता चल जायेगी | 




सिंधिया जनसंपर्क कार्यालय के बोर्ड बता रहे हैं कि ये भक्त लोग आज के पेलेस गार्ड्स हैं, महल के रक्षक हैं | कोई इन्हें बताये कि इंदिरा जी तो ढाई साल में वापस प्रधान मंत्री बन भी गई थीं, किन्तु ज्योतिरादित्य जी को तो पांच साल बाद ही पुनः किस्मत अजमाने का मौका मिलेगा | और उसमें भी तय नहीं है कि वे सफल हो ही जाएँ | क्योंकि राहुल जी रत्ती भर भी नहीं बदले हैं | वे मोदी जी के स्टार प्रचारक की भूमिका में आज भी बदस्तूर जुटे हुए हैं | संसद में राष्ट्रपति महोदय के अभिभाषण के दौरान वे मोवाईल पर गेम ही खेलते रहे | तो महल के रक्षको / भक्तो मोदी लहर तो 2024 में भी रहने वाली है | अब ज्योतिरादित्य जी भी मोदी जी के साथ आ जाएँ तो बात दूसरी है, अन्यथा तो कोई चांस 2024 में भी नजर नहीं आता | इसलिए अच्छा हो कि अब बोर्ड बदलवा ही डालो |

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दिवाकर शर्मा
संपादक - www.krantidoot.in 

 

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