नगर कोट वाली मां बज्रेश्वरी



हिमाचल प्रदेश का एक शहर है कांगड़ा। बाणगंगा एवं मांझी नदियों के मध्य धौलाधार पर्वत की हरी एवं हिमाच्छादित घाटियों में बसा है यह नगर। महाभारत में कांगड़ा क्षेत्र त्रिगर्त नाम से जाना जाता था। 

महाभारत युद्ध में यहाँ का राजा सुशर्मा चंद्र कौरवों के पक्ष में युद्ध करता हुआ वीर गति को प्राप्त हुआ। कल्हण की राजतरंगणि एवं चीनी यात्री ह्वेन सांग के यात्रा विवरण में त्रिगर्त का उल्लेख है। 

भारत का सबसे प्राचीन किला कांगड़ा में ही स्थित है, इसीलिए यह शहर नगर कोट के नाम से भी जाना जाता रहा है । कांगड़ा किले के अन्दर ही स्थित है “मां बज्रेश्वरी” या नगर कोट वाली माता का भव्य मंदिर। पौराणिक गाथा के अनुसार भगवती सती द्वारा अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव का अपमान होते देख हवन कुंड में ही अपने शरीर को दग्ध कर लिया था | दुखी शिव उनके शरीर को कंधे पर लेकर घूमते रहे। भगवान विष्णु में शिवजी का मोह समाप्त करने के लिए सुदर्शन चक्र से उस शरीर के कई टुकडे कर दिए, जो भारत के विभिन्न भागों में गिरे। जहाँ जहाँ भगवती सती के वे शरीर के अंश गिरे, उन्हें शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है और वहां महामाया भगवती के भव्य मंदिर स्थापित हैं । नगर कोट में भी सती का वाम वक्ष गिरा था। अतः स्वाभाविक ही नगर कोट की माता बज्रेश्वरी की महत्ता एवं ख्याति दूर दूर तक फैली है। 

भारत वर्ष के भव्य मंदिरों को लूटने और नष्ट करने का कार्य लुटेरे इस्लामी आतताईयों ने बार बार किया है। सन 1009 में मुहम्मद ग़ज़नवी ने कांगड़ा पर भी आक्रमण किया, मंदिर की सम्पदा को लूटा तथा यहाँ अपना गवर्नर नियुक्त कर दिया जिसे बाद में दिल्ली के तोमर शासको ने पराजित कर भगा दिया और इस किले का नियंत्रण कटोच शासको सौंप दिया। 

पंद्रहवी शताब्दी में कटोच वंशीय राजा संसार चंद्र प्रथम ने इस शक्ति पीठ का निर्माण कराया। कांगड़ा के कटोच वंशीय राजाओ ने इस मंदिर को हमेशा संरक्षण दिया इस कारण बार बार तोड़े जाने के बाद भी मंदिर थोड़े ही समय मे अपने वैभव को प्राप्त कर लेता। बार बार आक्रमण होते रहे और बार बार मंदिर का पुनर्निर्माण होता रहा। मुहम्मद तुगलक , फ़िरोज़ शाह तुगलक ने भी इस मंदिर पर आक्रमण कर लूटपाट की। सन 1521 में जहाँगीर ने इसे विजित किया और यहां अपना गवर्नर नियुक्त किया। 

मुगल शक्ति के क्षीण पड़ते ही सन 1786 में शक्तिशाली पहाड़ी राजा संसार चंद्र द्वितीय ने किले को अपने नियंत्रण में ले लिया। 

राजा संसार चंद्र का कार्यकाल कलाकौशल के विकास के लिए जाना जाता है। उसीके समय कांगड़ा कलम विश्वविख्यात चित्र शैली विकसित हुई,जो चित्रकला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। 

कालांतर में अमरसिंह थापा के नेतृत्व में गोरखाओं से तथा रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिक्खों से राजा संसार चंद्र का संघर्ष हुआ तथा सन 1809 में इस किले पर महाराज रणजीत सिंह का अधिकार हो गया। रणजीत सिंह का कांगड़ा पर आधिपत्य होने के बाद सिक्खों के शासन काल मे भी इस मंदिर को बहुत ख्याति मिली।रणजीत सिंह के शासन काल मे मंदिर का शिखर तथा सोने के पतरे चढ़ाए गए। 

1846ई के पश्चात यह किला अंग्रेजो के आधिपत्य में आ गया। 4 अप्रेल सन 1905 को कांगड़ा घाटी में विनाशकारी भूकंप में यह मंदिर एवं नगरकोट का किला पूरी तरह ध्वस्त हो गया। क्षणभर में सदियों का इतिहास एवं धन सम्पत्ति नष्ट हो गई। मलबे में पड़े क्षत्र से मंदिर के स्थान की पहिचान हो सकी। 

अंग्रेजो ने कांगड़ा टेम्पल रेस्टोरेशन एण्ड एडमिनिस्ट्रेशन कमेटी गठित कर मंदिर पुनर्निर्माण कराया । इस कार्य के लिए कश्मीर ,नाभा ,दरभंगा आदि रियासतों एवं हिन्दू प्रजा ने उदारता पूर्वक दान दिया। 

कांगड़ा आज अपने किले , वज्रेश्वरी माता के मंदिर , चित्र कला की कांगड़ा शैली , बासमती चावल ,नेत्र चिकित्सा तथा कटी नाक आदि को पुनर्व्यवस्थित करने के लिए दूर दूर तक बिख्यात है।
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