शिवपुरी के लोकतंत्र सेनानियों ने मनाया 25 जून एक अलग अंदाज में !


आपातकाल के दौरान सत्याग्रह कर मीसा में निरुद्ध रहे श्री गुलाबचन्द्र शर्मा विगत दो वर्षों से ब्रेन हेमरेज के कारण बिस्तर पर हैं | आपातकाल की पूर्व संध्या पर आज शिवपुरी के कुछ पूर्व मीसाबंदी अपने मित्र श्री गुलाब चन्द्र जी के आवास पर पहुंचे | उनके हालचाल जानने के साथ सहज हास परिहास व पुराने दिनों की याद ताजा की | 

चित्र में बाएं से दायें श्री गोपाल कृष्ण सिंघल, श्री प्रेम जी शर्मा, श्री गुलाब चन्द्र शर्मा, श्री हरिहर निवास शर्मा, श्री कामता प्रसाद बेमटे 

वे भी क्या दिन थे ? 

भ्रष्ट आचरण के आरोप में चुनाव निरस्त किये जाने से क्षुव्ध श्रीमती इंदिरा गांधी ने २५ जून १९७५ अर्द्ध रात्री में देश पर आपात काल थोपकर सभी दिग्गज राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूंस दिया । शिवपुरी में भी सर्व श्री सुशील बहादुर अष्ठाना, घनश्याम भसीन, जगदीश वर्मा, हरदास गुप्ता, भगवान लाल पाराशर, बाबूलाल गुप्ता, दामोदर शर्मा, कृष्ण कान्त रावत, बैजनाथ छिरोलिया, रामजी दास बंसल, चन्द्र भान पटेल, उत्तम चन्द्र जैन, बाबूलाल जी शर्मा, मुन्नालाल गुप्ता, गोपाल सिंघल प्रारम्भिक दौर में ही गिरफ्तार कर लिये गए । ये तो वे लोग हैं जिन्हें गिरफ्तार कर मीसा में भेजा गया । उन लोगों की संख्या तो २०० से ज्यादा थी जिन्हें १५१ में गिरफ्तार कर माफीनामा लिखवाकर जमानत पर रिहा किया गया । 

शिवपुरी महाविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष व विद्यार्थी परिषद् के प्रांतीय महामंत्री श्री गोपाल डंडोतिया पूर्व सूचना मिल जाने के कारण भूमिगत हो गए । एक अन्य मित्र श्री दिनेश गौतम (अब स्वर्गीय) के साथ सर पर काला कपड़ा बाँध कर 25 जुलाई 1975 को गोपाल जी ने सत्याग्रह कर गिरफ्तारी दी। गिरफ्तारी के बाद इन लोगों को शिवपुरी जेल में रखा गया । तीन लोगों के लिए उपयुक्त कमरे में 18 मीसाबंदी ठूंसे गए । रात को सोते समय यदि किसी को करबट लेना हो तो बगल वाले को कहना पड़ता था कि भैया जरा तू भी करबट ले ले । जेल में समय बिताने के लिए नियमित दिनचर्या बनाई गई । सुबह नित्यकर्म उपरांत व्यायाम स्वाध्याय, गीता पाठ फिर भोजन बनाने की सामूहिक तैयारी । दोपहर में कुछ बौद्धिक कार्यक्रम, चर्चा, प्रतियोगिता आदि । यही क्रम मार्च 1976 तक चला । तब तक कई लोग माफी मांगकर छूट छाट गए और शेष लोग ग्वालियर सेन्ट्रल जेल शिफ्ट कर दिए गए, जहां का जीवन अपेक्षाकृत बेहतर था । 

भय वा आतंक के एसे समय में जब सामान्य व्यक्ति मीसावंदियों के परिवार से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझ रहा था, तब मीसावंदी परिवारों के सुख दुःख की चिंता करने, उन्हें दिलासा देने का काम संभाला सर्व श्री रमेश जी गुप्ता, प्रोफ़ेसर राम गोपाल जी त्रिवेदी, जगदीश गुप्ता, ओम खेमरिया, पुरुषोत्तम गुप्ता आदि स्वयं सेवकों ने । 

14 नवम्बर 1975 से आरएसएस ने देशव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ किया । व्यूह रचना हेतु शिवपुरी में संघ के विभाग प्रचारक श्री लक्ष्मण राव तराणेकर जी, जनसंघ के संगठन मंत्री श्री बसंत राव निगुडीकर, संघ प्रचारक अपारवल सिंह जी कुशवाह आदि लोगो का आना जाना शुरू हुआ । हरिहर शर्मा व विमलेश गोयल को भूमिगत सत्याग्रह आन्दोलन का संयोजक बनाया गया, किन्तु मार्ग दर्शक की भूमिका में परदे के पीछे से वरिष्ठ प्रचारक श्री अपारबल सिंह कुशवाह, महाविद्यालय में व्याख्याता श्री डा. राम गोपाल जी त्रिवेदी वा भारतीय खाद्य निगम कर्मचारी श्री रमेश जी गुप्ता रहे । ग्वालियर के एक कार्यकर्ता श्री सुधाकर गोखले की शिंदे की छावनी स्थित दूकान विविध बस्तु भण्डार को सूचनाओं के आदान प्रदान के लिए नियत किया गया । वहां से ही एक डुप्लीकेटिंग मशीन बाद में प्राप्त हुई । डुप्लीकेटिंग मशीन पिपरसमा गाँव में श्री दिनेश गौतम के खलिहान में ही छुपाकर रखी गई । जहाँ से हस्त लिखित पेम्पलेट छापकर रात के समय घरों में और दुकानों में डाल दिए जाते थे । इन पर्चों ने जन जागरण में बड़ा योगदान दिया । 

१४ नवम्बर को पहला सत्याग्रही जत्था श्री महावीर प्रसाद जैन के नेतृत्व में निकला । इसमें सर्व श्री महावीर प्रसाद जैन, लक्ष्मीनारायण गुप्ता, रमेश उदैया, प्रदीप भार्गव वा अशोक शर्मा शामिल थे । अशोक शर्मा की आयु तो महज १६ वर्ष ही थी बही लक्ष्मीनारायण गुप्ता की अगले ही दिन सगाई होने बाली थी । जत्थे में शामिल महावीर प्रसाद जैन, लक्ष्मीनारायण गुप्ता, अशोक शर्मा को मीसावंदी के रूप में शिवपुरी जेल भेज दिया गया । 

ऐसे में तत्कालीन राज्यपाल का कार्यक्रम शिवपुरी में तय हुआ । आन्दोलन के उस दौर में प्रशासन के हाथ पाँव फूल गए, कि कहीं ऐसा न हो कि राज्यपाल के कार्यक्रम में प्रदर्शन हो जाए । हरिहर शर्मा के वृद्ध पिताजी सहित 100 से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुलिस कोतवाली में बैठा लिया गया । इन गिरफ्तारियों के कारण इतना अवश्य हुआ कि राज्यपाल के कार्यक्रम में कोई व्यवधान नहीं डाला जा सका । उनके जाने के बाद श्री गुलाब चन्द्र शर्मा के नेतृत्व में दूसरा जत्था शहर की सडकों पर "नरक से नेहरू करे पुकार, मत कर बेटी अत्याचार" का नारा गुंजाते निकला । इस जत्थे में शामिल गुलाब चन्द्र शर्मा, लक्ष्मण व्यास, महेश गौतम वा ओमप्रकाश शर्मा'गुरू' को भी मीसा के अंतर्गत गिरफ्तार कर शिवपुरी जेल भेज दिया गया । २० दिसंबर को अंतिम सत्याग्रही जत्था श्री कामता प्रसाद बेमटे, श्री मोहन जोशी वा श्री सीताराम राठोर का निकला । पुलिस ने कामता जी के साथ बेरहमी से मारपीट भी की । 

२५ दिसंबर को विमलेश गोयल भी पुलिस की पकड़ में आगये । अकेले रह जाने के बाद हरिहर शर्मा ने भी पेम्पलेट छापने वा वितरित करने भर तक स्वयं को सीमित कर लिया । कालेज में दिन दहाड़े खुले आम पेम्पलेट वितरण करने पर उनके खिलाफ डी आई आर में मुक़दमा कायम कर दिया गया । अंततः उन्हें भी 6 जून 1976 को साइकिल द्वारा पिपरसमा गाँव से लौटते समय एक कांस्टेबल ने देख लिया और पीछा किया । वे कस्टम गेट के पास स्थित प्रेम जी शर्मा के घर में छुपे भी, किन्तु साईकिल घर के दरवाजे पर ही छोड़ दी । पीछे पीछे आये कांस्टेबिल अशोक तथा एस आई राजेन्द्र सिंह रघुबंशी ने साइकिल पहचान ली और हरिहर को भी ग्वालियर केन्द्रीय काराग्रह में भेज दिया गया । गिरफ्तार करने बाले कांस्टेबल अशोक सिंह तथा ऐ एस आई राजेन्द्र सिंह रघुवंशी को दो दो इन्क्रीमेंट मिले, मानो हरिहर कोई डकैत हो। आपातकाल के दौर की यह अंतिम गिरफ्तारी थी । 

उपरोक्त उल्लेखित सभी लोग उसके बाद अप्रैल 1977 में ही जेल से बाहर आये |
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