क्या है सोनभद्र मामला और क्यों प्रियंका इतनी आतुर हैं, पीड़ितों से मिलने को ?


हमारे देश की मीडिया भी विचित्र है। वह कभी भी किसी विषय का विवेचन करने की जहमत नहीं उठाती। यहाँ तक कि जो बहस आदि चेनलों पर दिखाई जाती हैं, उसमें भी कोरी चीखपुकार और विषय को भटकाने की साजिश ही ज्यादा होती है। किन्तु भला हो सोशल मीडिया का, कि आजकल मूल विषय से आमजन परिचित हो ही जाता है । अब इस सोनभद्र प्रकरण को ही लीजिये और इस आलेख को पढ़कर विचार कीजिए कि क्या आपने किसी चेनल पर यह सम्पूर्ण विवेचन देखा क्या ? 

पूरी घटना इस प्रकार है – 

विगत बुधवार को गांव प्रधान यज्ञदत्त ३२ ट्रैक्टर ट्रॉली में भरकर हथियारों से लैस करीब 200 लोगों को लेकर घोरावल थाना इलाके के उम्भा गांव पहुंचे। उन लोगों के पास गंड़ासे और अवैध तमंचे थे। प्रधान ट्रैक्टरों से खेत की जबरन जुताई करवाने लगा। इस पर ग्रामीणों ने विरोध किया तो प्रधान के समर्थकों ने उन पर हमला कर दिया। इस दौरान 10 लोगों की मौत हो गई थी और 2 दर्जन से अधिक लोग घायल हैं। घटना के बाद इलाके के एसडीएम घोरावल, सीओ घोरावल, एसओ घोरावल सहित हल्का और बीट के सभी सिपाही निलंबित कर दिए गए हैं। साथ ही इस जमीनी विवाद की जांच अपर मुख्य सचिव राजस्व को सौंप दी गई है। 

मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के अनुसार इस घटना की नींव उस समय ही पड़ गई थी, जब ग्राम पंचायत की जमीन को 1955 में आदर्श सोसाइटी के नाम पर दर्ज कर दिया गया था। इस जमीन पर वनवासी समुदाय के लोग खेती-बाड़ी करते थे। आदर्श सोसायटी के नाम होने पर भी वनवासी ही वहां खेती करते रहे और बदले में कुछ लगान सोसायटी को देते रहे । किन्तु १९८९ में तो हद्द ही हो गई, जब यह जमीन बिहार के एक आईएएस अधिकारी के नाम कर दी गई और विवाद शुरू हो गया । 

बिहार का अधिकारी भी उस जमीन पर कब्‍जा नहीं कर पाया व वनवासी ही वहां खेती करते रहे । परेशान होकर उस आईएएस ने इस जमीन को वर्ष 2017 में ग्राम प्रधान को बेच दी। इस मामले कई मुकदमे चलते रहे। उन्‍होंने कहा कि इस पूरे प्रकरण में 1955, 1989 और 2017 में हुई हरेक घटना की जांच जरूरी है।स्पष्ट ही योगी के मुताबिक सोनभद्र के विवाद के लिए 1955 और 1989 की कांग्रेस सरकार दोषी है। 

योगी आदित्यनाथ ने कहा, "मैंने खुद डीजीपी को निर्देश दिया है कि वो व्यक्तिगत रूप से इस मामले पर नजर रखें। इस जमीन पर काफी समय से विवाद था और एक कमेटी इस मामले की जांच साल 1952 से करेगी।" 

स्वाभाविक ही अपनी जमीन तलाशती कांग्रेस के लिए यह प्रकरण और भी परेशानी देह साबित हो सकता है, अतः प्रियंका जी का उलपुलाना स्वाभाविक है । और यह तो पूरा देश जानता है कि जहाँ भी जमीन का विवाद होगा, वहां बाड्रा परिवार की निगाहें पहुँच ही जाती हैं । कांग्रेस अध्यक्ष की खिसकती कुर्सी और जमानत पर घूम रहे परिजनों को बचाने के लिये, सोनभद्र के लोगों के लिये प्रियंका वाड्रा के मन मे जो प्रेम उमड़ रहा है, वो नाटक भी सब समझ रहे हैं।
यदि पीड़ितों के लिये इतनी हमदर्दी है तो उनके पिता की सरकार के इशारे पर मारे गये सिक्खों के परिवारों में जाकर पूछें कि उनके परिजनों को क्यों मारा गया था?
वैसे प्रियंका को अध्यक्ष बना देना चाहिये, क्योंकि और कोई तो कब्रिस्तान का चौकीदार बन भी नहीं पायेगा।
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें