कश्मीर का राष्ट्रीयकरण – मोदी ने किया आलेख को कृति में बदलने का चमत्कार - प्रभु चावला


एक्सप्रेस न्यूज़ सर्विस द्वारा 7 अगस्त 2019 को प्रकाशित आलेख के अनूदित अंश ! 
कश्मीर घाटी में पृथकतावाद और गरीबी का मूल कारण था राज्य का संविधान से अलगाव... गैर जिम्मेदार राजनेता राज्य को लूटते रहे और गरीब आतंकवादियों से पिटते रहे । 

कई बार इतिहास व्यक्तित्व का निर्माण करता है तो अन्य समय, व्यक्ति इतिहास रचते हैं। विगत सोमवार को इतिहास शिशु प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अतीत को सुधार कर, भविष्य को परिभाषित करने के लिए वर्तमान का पुनर्लेखन किया। उनकी सलाह पर, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने धारा 370 को अपनी कलम के प्रहार से अप्रासंगिक बना दिया। एक घंटे बाद गृह मंत्री अमित शाह ने संसद को सूचित किया कि जम्मू और कश्मीर अब विशेष स्थिति वाला राज्य नहीं है। वस्तुतः, यह अब एक राज्य नहीं अपितु भारत के नवीनतम केंद्र शासित प्रदेशों में से एक था। 

2019 में "मोदी है तो मुमकिन है" का नारे को कई लोगों ने मात्र जुमला ही माना था । किन्तु मोदी ने जिस प्रकार विगत 70 वर्षों से असंभव मानी जाने वाली कश्मीर की उलझी हुई गठान को 70 मिनट से भी कम समय में सुलझाया, उससे कांग्रेस हक्की बक्की रह गई । उदारवादियों और वैश्विक बाज़ारवादियों को चिढाते हुए उन्होंने जिस प्रकार कश्मीरियों को 'भारतीय' का लेबल दिया, उसने देश को आत्मविश्वास से लबरेज कर दिया । चूंकि उनके पास रोजगार और संपत्ति के लिए भारत में कहीं भी जाने के पूरे अधिकार थे, इसलिए उन्होंने अन्य भारतीयों को भी कश्मीर में ऐसे ही अधिकार दिए। 

स्वतंत्रता के बाद से राष्ट्र को एकजुट करने के बजाए विभाजित करने वाले अनुच्छेद के निधन से कश्मीर का प्रतिमान ही बदल गया है। अपने विगत कार्यकाल में, मोदी की 'पहुंच' को स्थानीय लोगों ने अस्वीकार कर दिया था । इन बातों को नजरअंदाज किया गया कि वह पहले पीएम थे जिन्होंने अपनी दीवाली की रात, बाढ़ की विभीषिका से जूझती घाटी में बिताई; केंद्र ने बाढ़ राहत के लिए किसी अन्य राज्य के समान ही अपनी तिजोरी खोलीं । लेकिन उनकी सद्भावना का जबाब घाटी में आतंक, हिंसा, आग लगाने वाले भाषणों और पथराव से दिया गया। तब उन्होंने महसूस किया कि राज्य में शक्ति के एक मजबूत प्रदर्शन की आवश्यकता है । अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत, मोदी के पास एक अद्वितीय राजनीतिक और वैचारिक समझ है। उन्होंने "गाजर और छड़ी" के स्थान पर जता दिया कि शासन के अधिकारों का उल्लंघन होगा तो "छड़ी को न भूलें" । संविधान के कपटपूर्ण आलेख को हटाने से पीएम का दृढ़ संकल्पवान स्वरुप और मजबूत हुआ है । 

चूंकि वह एक पूर्णकालिक आरएसएस प्रचारक रहे हैं, इसलिए वे “एक देश, एक संविधान” के सिद्धांत को मानते रहे हैं | उनकी मान्यता थी कि जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान न केवल भारत की भौगोलिक और राजनीतिक पहचान के लिए खतरा हैं, वरन सांप्रदायिक सौहार्द के लिए भी एक निरंतर संकट है । घाटी के अलगाववाद और गरीबी के लिए राज्य का संवैधान से अलगाव जिम्मेदार है। जब शेष भारत तेजी से विकसित होता रहा, इसे गरीबी और गंदगी के लिए छोड़ दिया गया। जब अन्य राज्य प्रौद्योगिकी पार्क, आधुनिक हवाई अड्डे, शानदार होटल, अत्याधुनिक अस्पतालों और बेहतर शिक्षण संस्थानों की स्थापना कर रहे थे, कश्मीरियों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं और मूलभूत घरेलू आवश्यकताओं से भी वंचित रखा गया । 

एक ओर घाटी के राजनीतिक नेताओं और अलगाववादी क्षत्रपों ने राज्य को लूटा, वहीँ गरीबों को आतंकवादियों की गोलियों और बमों का सामना करना पड़ा। अलगाववादी और पाक के दुष्प्रभाव में फंसकर बेरोजगार युवक नौकरियां ठुकरा कर, जिहादी बनकर अपनों के ही खिलाफ हथियार उठाने के लिए बहकाये गये। इस अनुच्छेद के कारण उत्पन्न भारत गणराज्य से राज्य के भयावह अलगाव ने देश के अरबों रुपये और पिछले सात दशकों में हजारों लोगों की जान ले ली है। यह कश्मीर के गैर सरकारी संगठनों, पत्रकारों, सेवानिवृत्त रक्षा विशेषज्ञों और लॉबिस्टों के लिए एक दुधारू गाय थी, जो कि वार्ताकारों और बिचौलियों के रूप में नाम, प्रसिद्धि और पैसा हासिल करते आ रहे थे । सरकार ने अब उनके पैसों की लूट बंद कर दी है। मोदी और शाह ने संसद में कहा कि धारा 370 विध्वंसक थी। लोकसभा में अपनी फ्रंट डेस्क से, शाह ने कहा, "1989 के बाद से अगर धारा 370 नहीं होती, तो 41,000 से अधिक लोग नहीं मारे गए होते ।" 

हालांकि विवादास्पद आलेख हटने के बाद भी शेष भारत के साथ घाटी को भावनात्मक रूप से एकीकृत करने में समय लगेगा, पर यह प्रक्रिया अब चालू होगी । इसे सुस्त अर्थव्यवस्था से ध्यान हटाने की रणनीति मानने की प्रतिक्रिया सही नहीं है, जैसा कि मोदी के विरोधी प्रचार कर रहे हैं। विश्वसनीय सलाहकारों के एक छोटे समूह के साथ सावधानीपूर्वक योजना बनाने और व्यापक विचार-मंथन के बाद प्रधानमंत्री ने इस कदम को उठाया है। फारूक अब्दुल्ला कहते थे , "भले ही मोदी दस बार प्रधानमंत्री बन जाएँ, लेकिन धारा 370 को खत्म करने की उनकी हिम्मत नहीं होगी", सच कहा जाए तो उन्होंने ही पीएम को योजनाबद्ध तरीके से अंतिम विधायी हमले शुरू करने के लिए उकसाया। मोदी जिस मिशन पर काम आज शुरू करते हैं, उसके मीलों आगे की सोचते हैं, यही उनकी पहचान है, इसका परिणाम भी कुछ महीने या एक साल बाद प्राप्त होगा। 

उन्होंने लोकसभा चुनावों से पहले ही 370 को खत्म करने का अभियान शुरू कर दिया था। पीडीपी-बीजेपी सरकार के पतन के तुरंत बाद जब जम्मू-कश्मीर में उथल-पुथल चल रही थी, तब अपने विश्वस्त सत्य पाल मलिक को राज्यपाल नियुक्त किया, जो राजभवन में प्रवेश करने वाले पहले राजनेता थे । इसके बाद अनुच्छेद 370 को खत्म करना भाजपा के घोषणा पत्र का प्रमुख हिस्सा बना। जब मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का पुनर्गठन किया, तो उन्होंने राजनाथ सिंह को गृह से रक्षा में स्थानांतरित किया। चूंकि कश्मीर और आतंकवाद को हल करना उनके एजेंडे में सबसे ऊपर था, इसलिए मोदी ने गृह मंत्री के रूप में अमित शाह का चयन किया। 

पहले दिन से, शाह का ध्यान सुरक्षा संबंधी समाधानों पर था। उन्होंने न केवल शस्त्रास्त्रों द्वारा सेनाओं और एजेंसियों को और अधिक शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न किया, साथ साथ स्थानीय राजनेताओं और अलगाववादियों के भ्रष्टाचार की जांच करने का भी आदेश दिया, जिनका धंधा ही परेशानी पैदा करना था और जिनके पास बेशुमार दौलत थी व जिनके बच्चे विदेशों में पढ़ते थे। एक दर्जन से अधिक क्षत्रपों पर छापे मारे गये और मनी लॉन्ड्रिंग और संदिग्ध तरीकों से पैसा बनाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया। 

यहां तक ​​कि पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को भी नोटिस दिया गया और विभिन्न भ्रष्टाचार रोधी एजेंसियों द्वारा उनसे पूछताछ की गई। एहतियात के तौर पर, गृह मंत्रालय ने अमरनाथ यात्रा में दो सप्ताह की कटौती की। तीर्थयात्रियों व प्रत्येक पर्यटक को श्रीनगर से निकालने के लिए वायु सेना को तैनात किया गया व निर्धारित समय से पूर्व प्रत्येक को बाहर निकाल दिया गया । साथ ही उन्होंने अपनी कानूनी टीम को औपचारिक रूप से निरस्त किए बिना अनुच्छेद 370 की प्रासंगिकता को कम करने की योजना का सुझाव भी दिया। जम्मू और कश्मीर को अन्य राज्यों के समान बनाने के लिए एक कानूनी ढांचा तैयार करने का काम सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को सौंपा गया । 

मेहता ने शुरूआत से लेकर बाद के संशोधनों तक अनुच्छेद 370 के इतिहास का अध्ययन किया और राज्य पुनर्गठन विधेयक को रेखांकित किया, जिसके लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी और राज्य को केंद्र सरकार के नियंत्रण में स्थायी रूप से लाया जा सकेगा। चूंकि जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्र शासित प्रदेश है, इसलिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पुलिस कर्मियों के चयन और पोस्टिंग और भूमि संसाधनों के स्वामित्व को अंतिम रूप दिया है। लद्दाख, जो वर्तमान में कारगिल सेक्टर में है, नई दिल्ली से संचालित होगा, इससे सीमा पार से होने वाले आतंकवादियों के उपद्रव पर अंकुश लगेगा । अनुच्छेद 35A की समाप्ति के साथ ही, लद्दाख व जम्मू और कश्मीर में निवेश आकर्षित होगा, जो आर्थिक विकास को गति देगा और कश्मीरी पंडितों को भी अपनी जड़ों से पुनः जुड़ने का संबल मिलेगा । 

मोदी के इस कदम से अलगाववाद का स्थान विकास लेगा और स्थानीय लोगों को भारत की विकास यात्रा में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करेगा । उनके विधायी मास्टरस्ट्रोक ने उनके मुख्य समर्थकों के साथ काफी हद तक तटस्थ मध्यम वर्ग का भी दिल जीत लिया है। लेकिन उनका उदारवादी शत्रु उन्हें संविधान को नीचा दिखाने के लिए दोषी ठहराएगा। इतिहास मोदी का आंकलन निष्पक्षता और यथार्थता के साथ करेगा। पूर्वज निश्चित ही संतुष्ट होंगे कि गुजरात के नए सरदार ने कश्मीर की नियति को नेहरूवादी चोंचलों की गाथा से मुक्त किया है।
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें