चन्द्रयान -2,असफलता नहीं, वरन भारतीय विज्ञान की सफलता की स्वर्णिम उड़ान - संजय अवस्थी



6 और सात सितंबर के मध्य रात 12.30 पर मैं India News के जबलपुर स्टूडियो में बैठ कर चन्द्रयान- 2 की ऐतिहासिक यात्रा का गवाह बनने तथा लाइव डिसकशन में भाग लेने बैठा था।अचानक 1.30 के करीब पंजाब केंद्र की एंकर ने खबर दी कि विक्रम लैंडर की लैंडिंग की प्रक्रिया 2 मिनट पहले प्रारंभ होगी(हालांकि मुझे उस टी वी एंकर की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था,क्योंकि अंतरिक्ष के मिशन के किसी क्रम में पल भर का भी अंतर नहीं होता,सब कुछ पूर्व नियोजित होता है, अगर कुछ भी योजना के विपरीत हुआ तो सब कुछ मिट जाता 1),मेरा मन आशंकाओं से भर गया,मैंने स्टुडियो के एंकर को ऑफ एयर यह बताया।चिंताओं से भरा हुआ,ईश्वर से सफलता की दुआ कर रहा था।

लैंडर ने अपनी कक्षा 100X30 से उतरना प्रारंभ किया,आखिरी कुछ क्षणों में ,केवल चांद के दक्षिणी ध्रुव से 2.1 कि मी दूर,जा कर लैंडर का सम्पर्क ऑर्बिटर और ग्राउंड स्टेशन से टूट गया,और सफलता के शिखर से चंद कदम हम दूर रह गए। इस पर हम बाद में विचार करेंगे कि क्या हुआ होगा?
चलिये देखें हमने क्या हासिल किया:-

1.विश्व का कोई भी देश चांद के दक्षिणी ध्रुव से इतना करीब 2.1 कि मी तक नहीं पहुंचा।हमने पहली बार मे ये कर दिखाया।

2.ठीक है लैंडर , रोवर सहित हमारे सम्पर्क से दूर हो गया।पर,लैंडर के ऑन बोर्ड कैमरे ने जो तस्वीर खींची होंगी,वो चांद के दक्षिण ध्रुव के इतनी नजदीक की पहली तस्वीर होंगी,ऑन बोर्ड सेंसर्स ने जो संकेत दिए होंगे उन्हें ऑर्बिटर ने ग्रहण किया होगा।बाद में सम्पर्क टूटा,पर ऑर्बिटर के पास जो डाटा होगी उसके विश्लेषण से दक्षिण ध्रुव सम्बन्धी जानकारी मिलेंगी साथ ही मिशन की अंतिम चरण की तकनीकी असफलता सम्बन्धी आंकड़े,विज्ञानियों का मार्ग भविष्य के मिशनों हेतु प्रशस्त करेगी।

3.दुखी न हो,आप अपने विज्ञानियों का उत्साह बढाइये,आपका ऑर्बिटर अभी भी चन्द्र के दक्षिणी ध्रुव को टारगेट करने वाली कक्षा में घूम रहा है,वो आने वाले कई महीने, स्वर्णिम जानकारियां भेजता रहेगा,जो सम्पूर्ण विश्व के चन्द्र के सम्बंधित ज्ञान में वृद्धि करेगा।

4.GSLV Mark II की इस तरह के मिशन की पहली सफल उड़ान(याद रहे चन्द्रयान 1 और मंगलयान मिशन PSLV ने पूरे किए थे)इसरो के हाथ और मजबूत करता है, हमारे पास अब अधिक शक्तिशाली एक और अंतरिक्ष यान है।

साथ ही पूरा मिशन,चन्द्रयान 2 का चंद्रमा के कक्ष में insertion, तय कार्यक्रम के अनुसार निर्धारित कक्षा लेना,लैंडर का अलग हो कर अपनी कक्षा में घूमना,फिर आतंक के 15 मिनट के अंतिम चरण की पहली सीढ़ी जिसमे ऊंचाई 30 कि मी से कम होकर 7.4 कि मी होना,गति का 6120 कि मी /सेकंड से लगभग 300 कि मी/से० होना,इसरो की सफलता का गवाह है।हमारी पूर्णतः स्वदेशी तकनीक ने सब कुछ किया बस कुछ पल से चूक गए।

आइए विचार करें,क्या हुआ होगा?

जैसा मैंने पहले ही बताया है 30 किमी से ऊंचाई 2.1 कि मी हुई,निश्चित तौर पर गति भी 6120 कि मी / घंटा से कम हुई होगी। लैंडर ने परवलाकार पथ में चांद पर उतरना भी प्रारंभ किया,परवलय की लम्बवत ऊंचाई 2.1 तक वो उतरा भी पर लैंडर परवलय के vertex जो चांद पर लैंडिंग पॉइंट पर था,तक नहीं पहुंचा।

याने कि ऑन बोर्ड कंप्यूटर्स(पृथ्वी से हम केवल मॉनिटर कर सकते थे,अंतिम क्षणों में हमारे निर्देश,लैंडर तक पहुंचना असम्भव था,जो कुछ भी सॉफ्ट लैंडिंग हेतु करना था,वो ऑन बोर्ड कम्प्यूटर्स के सॉफ्टवेयर को करना था) अंतिम समय में चंद्रमा से इतनी कम ऊंचाई पर ऑर्बिटर को आवश्यक वेग पर नहीं ला पाएं होंगे।

लैंडिंग प्रक्रिया में अंतिम 13वे मिनट में लैंडर का वेग शून्य होना था और ऊंचाई 400 मीटर हो जानी थी।
अतः गति कम करने में चूक हुई,2.1 कि मी पर ऑर्बिटर का वेग मेरे अनुमान से लगभग 400 कि मी /घंटा होगा,इस वेग पर चांद से उस ऊंचाई पर आवश्यक कक्षीय वेग से ये वेग अधिक हो सकता है, जिससे इतने अधिक वेग पर विक्रम लैंडर,प्रज्ञान रोवर को साथ लिए, चांद के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त हो अंतरिक्ष मे खो गया होगा।

यह भी सम्भावना हो सकती है कि लैंडर के संचार तकनीक में अचानक कोई खामी आ गई हो जिससे वो चाँद पर तो सफलता से उतर गया हो पर हमारे लिये बिना संचार के अनुपयोगी हो गया हो।
जो भी कुछ हुआ,उससे देश के विज्ञान का भला ही होगा, विश्वास रखिये।

हमारे प्रधानमंत्री ने अपनी इतने व्यस्त और थका देने वाले schedule के बाद भी,अपने मुस्कुराते चेहरे और मनोबल बढ़ाने वाले भाषण से,जादू की झप्पी😊से विज्ञानियों को निराश नहीं होने दिया,हम ऐसे राजनेता को ह्रदय से सैलूट करते हैं।हम भाग्यशाली हैं कि हमारे देश मे इतना ऊर्जावान प्रधानमंत्री है।
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