मेडिकल कॉलेज जिसे होना था शिवपुरी के लिए वरदान, कहीं बन तो नहीं रहा अभिशाप ?


पता नहीं शिवपुरी की आवोहवा में ऐसी क्या खासियत है कि यहाँ स्वीकृत हुई जनहितकारी योजनाएं भ्रष्टाचार का शिकार होकर जनता के लिए मुश्किलें ही उत्पन्न करती आती है | चाहें वो सिंध जलावर्धन परियोजना हो, सीवर प्रोजेक्ट हो या फिर कुछ ही समय पूर्व शिवपुरी के लिए सौगात कही जा रही मेडिकल कॉलेज की महत्वकांछी योजना हो | कल तक जिस मेडिकल कॉलेज को लेकर बड़े बड़े दावे एवं वादे किये जा रहे थे वो आज भ्रष्टाचार के खेल का शिकार होता प्रतीत हो रहा है | क्रांतिदूत के द्वारा जुटाए कुछ तथ्य आपके सामने प्रस्तुत है जो आपको बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देंगे | 

प्रारम्भ होने से पूर्व से ही विवादों के घेरे में 

शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय की सेवाऐं प्रारंभ होने के पूर्व से ही यह विवादों के घेरे में आ गया था जब फार्मासिस्ट के पदों पर हुई भर्ती विवादों की सुर्खियों में आयीं थी | हाईकोर्ट में दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, कमिश्नर, ग्वालियर संभाग के कमिश्नर और शिवपुरी मेडिकल कॉलेज की डीन को नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह में जवाब पेश करने का निर्देश जारी किया था | दरअसल मेडिकल कॉलेज ने फॉर्मासिस्ट ग्रेड- एक व दो की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था। पूर्व में ये शर्त नहीं रखी गई कि जिन आवेदकों ने शासकीय कॉलेज से एम.फार्मा किया है, केवल वे ही आवेदन कर सकेंगे। फॉर्म जमा करने के बाद आवेदकों को इसकी जानकारी दी गई। इस कारण कई आवेदक अपात्र हो गए। याचिकाकर्ता ने अनुभव प्रमाण पत्र भी जमा किया लेकिन कॉलेज ने जब अंतरिम प्रावीण्य सूची जारी की तो याचिकाकर्ता को प्रमाण पत्र का लाभ नहीं देते हुए कम अंक दिए। इस कारण उसका चयन नहीं हो सका। 

फरवरी में हुए सत्र के दौरान मंत्री द्वारा इस पूरे प्रकरण की जांच के लिए डीएमई डॉ. उल्का श्रीवास्तव की अध्यक्षता कमेटी गठित की थी। इसमें कमिश्नर ग्वालियर, उपसचिव चिकित्सा शिक्षा सहित केपी सिंह के प्रतिनिधि के तौर पर नेत्र सर्जन डॉ. अरविंद दुबे सदस्य बनाए गए। इस समिति की बैठकों में त्वरित निर्णय न होने से नाराज पिछोर विधायक ने बजट सत्र में ध्यानाकर्षण के जरिए इस मामले में जारी अनियमितताओं को उठाया था। विधानसभा में मंत्री औऱ विधायक के बीच हुई तीखी बहस के बीच विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अलग से निर्देश जारी कर मंत्री की मौजूदगी में पूरे अफसरों के साथ बैठक के निर्देश दिए थे। बैठक में विधायक केपी सिंह ने इस कॉलेज की सभी भर्तियों की जांच आदर्श भर्ती सेवा नियम 2018 के आधार पर करने को कहा। मंत्री साधौ के समक्ष विधायक प्रतिनिधि डॉ. अरविंद दुबे ने सिलसिले बार शैक्षणिक औऱ गैर शैक्षणिक पदों की भर्ती में हुई अनियमितता को मय प्रमाणों के प्रस्तुत किया। मंत्री ने इन सभी प्रमाणों को सूचीबद्ध कर तत्काल करवाई के निर्देश प्रमुख सचिव शुक्ला को दिए।

विधायक केपी सिंह ने प्रमुख सचिव और कमिश्नर से जानना चाहा कि आदर्श भर्ती नियम 2018 में वर्णित लिखित व मौखिक परीक्षा के प्रावधानों को किस सक्षम आदेश से शिवपुरी मेडिकल कॉलेज की अधिष्ठाता द्वारा विलोपित कर सीधे मेरिट बनाकर भर्ती की गई है। डॉ. अरविंद दुबे ने विस्तार से एमसीआई के प्रावधानों के विरुद्ध जाकर की गई फैकल्टीज की भर्ती के प्रमाण प्रस्तुत किए। मेडिकल कॉलेज में फैकल्टीज की भर्ती में गुणवत्ता से कोई समझौता नही होना चाहिए। मंत्री ने उच्च अधिकारियों से उच्च प्राथमिकता पर शिवपुरी मेडिकल कॉलेज की भर्तियों की जांच अविलम्ब करने के निर्देश दिए।

यह थे जांच के प्रमुख बिंदु 

-चयन समिति के गठन से अस्पताल अधीक्षक डॉ. गोविंद सिंह को क्यों नहीं रखा गया।


-तत्कालीन डीन डॉ. ज्योति बिंदल द्वारा किस अधिकार से डॉ. गोविंद सिंह को अस्पताल अधीक्षक के पद से हटाने की कार्रवाई की।

-डॉ. ज्योति बिंदल द्वारा अस्पताल के सीनियर डॉक्टरों को दरकिनार कर परिवीक्षा अवधि के डॉ. गिरीश चतुर्वेदी को कैसे अपने कार्यालय में अटैच किया और किस आधार पर उन्हें कॉलेज का सहायक अधीक्षक बनाया।

-डॉ. ऋतु चतुर्वेदी की नियुक्ति में 80 वर्षीय एक्सपर्ट को क्यों बुलाया गया। उनके अनुभव प्रमाण पत्र का प्रति परीक्षण पुनः कराया जाएगा। कैसे वह साक्षी औऱ चंदौसी में एक साथ काम कर रही थी।

-सीनियर रेजिडेंट डेंटल के पद पर कैसे नियुक्ति की गई, जबकि डीन द्वारा इंटरव्यू स्थगित करने की सूचना जारी की गई थी।

-नव चयनित प्रोफेसर कैसे खुद ही अगले चरण की भर्ती में एक्सपर्ट के रूप में सम्मिलित किए गए।

-नई भर्ती के डॉ. केबी वर्मा को किस अधिकारिता से अधीक्षक बनाया गया।

इस मामले की जाँच प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा शिव शेखर शुक्ला की मॉनीटरिंग में आयुक्त निशांत बरबड़े, उप सचिव मिश्रा के द्वारा सभी शिकायतों को आदर्श भर्ती नियमों के आधार पर करनी है एवं अगले विधानसभा सत्र के पूर्व यह जांच पूर्ण की जानी है | 

जिला अस्पताल में सेवारत मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक दे रहे है प्राइवेट अस्पतालों में समय 

शिवपुरी वासियों के लिए मेडिकल कॉलेज प्रारम्भ होने की खबर किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं थी | सम्पूर्ण जिले वासियों को उम्मीद जागी थी कि अब उन्हें उपचार के लिए इधर उधर भागना न पड़ेगा क्योंकि मेडिकल कॉलेज में सेवा देने के लिए आये डॉक्टर जिला चिकित्सालय में चिकित्सा सम्बन्धी सेवाएं आमजन को उपलब्ध कराएँगे परन्तु जैसा कि अमूमन यहाँ होता है कि सेवा के लिए आने वाला कोई भी शासकीय कर्मी यहाँ आकर पता नहीं किस बीमारी से ग्रसित हो जाता है कि उसका ध्यान सेवा की बजाय मेवा कमाने में लगने लगता है | यही हाल मेडिकल कॉलेज में पदस्थ चिकित्सकों का है | जिन चिकित्सकों को जिला चिकित्सालय में अपनी सेवाएं देना था वह बस स्टैंड रोड पर स्थित बड़े बड़े प्रायवेट चिकित्सालयों में अपना चिकित्सा संबंधी ज्ञान बेच रहे है और वो भी खुल्लम खुल्ला | न तो उन्हें शासन, प्रशासन का कोई डर है न ही ईश्वर का | कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि प्रायवेट चिकित्सालयों में यह चिकित्सक बतौर साझेदार मलाई खा रहे है वो भी पीड़ित दीन दुखियों का खून चूसकर | 

प्रशासन पर दवाब बनाने हेतु मेडिकल टीचर्स ने बनाया संगठन 

शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय शिवपुरी, मध्य प्रदेश चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर से सम्बद्ध है एवं जिला अस्पताल, शिवपुरी से अटैच है | गौरतलब है कि शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय शिवपुरी समिति, Madhya Pradesh Societies Registration Act के तहत 25 नवम्बर 2017 को पंजीकृत है परन्तु यहाँ सेवारत मेडिकल टीचर्स ने अपना एक नया संगठन बना लिया है | अब एक सवाल यह भी उठता है कि क्या यह संगठन बनाना आवश्यक था या भविष्य की प्लानिंग को देखते हुए इस संगठन का निर्माण समय आने पर शासन प्रशासन पर अपना दवाब बनाने हेतु किया गया है ? 

जिला चिकित्सालय के बाहर सक्रिय हो चुके है प्रायवेट चिकित्सालयों के दलाल

सरकारी कागजों में बताया यह जा रहा है कि शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय प्रारम्भ होने के बाद शिवपुरी में रैफरल मरीजों में कमीं आयी है और वर्ष 2017-18 में जहां 4578 मरीजों को रैफरल कर जिले से बाहर उपचार के लिए भेजा गया वहीं मेडीकल कॉलेज प्रारंभ होने के बाद इसमें कमी होते हुए वर्ष 2018-19 में 3452 मरीजों को रैफर किया गया। परन्तु यह जानना बेहद आवश्यक है कि अब मरीजों को रैफर कहाँ किया जा रहा है ? जानकारी के अनुसार अब तत्काल पहले की भांति मरीजों को सीधे ग्वालियर या दिल्ली न भेजकर जिला चिकित्सालय के बाहर सक्रिय हो चुके प्रायवेट चिकित्सालयों के दलाल (सायलेंट पार्टनर) पहले इन्हें शिवपुरी के उन प्रायवेट अस्पतालों में भर्ती कराते है जहाँ यह मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक अपनी दुकानदारी सजाये बैठे है, कुछ दिनों में हजारों रुपये लूटने के पश्चात् मरीजों को ग्वालियर अथवा दिल्ली रेफर किया जा रहा है | कुल मिलकर सेवारूपी यह कार्य आज एक गंदे धंधे में दिनों दिन तब्दील होता जा रहा है, जिसका खुलासा आगामी दिनों में भी क्रांतिदूत के माध्यम से किया जाता रहेगा |

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