महाराष्ट्र सरकार और सोशल मीडिया पर चल रही चुहल


महाराष्ट्र में चुनाव हुए अरसा हो गया, लेकिन सरकार किसकी बनेगी, यह असमंजस ख़तम होने का नाम नहीं ले रहा | स्वाभाविक ही सोशल मीडिया लिक्खाडों के लिए यह स्थिति बहुत मुफीद है, अपने अकल के घोड़े दौडाने के लिए | कुछ पोस्टों की बानगी देखिये –

१ – महाराष्ट्र सरकार ढाई साल ठाकरे के पोते के पास... ढाई साल पवार के पोते के पास... और दोनों का रिमोट कंट्रोल इंदिरा गांधी के (????) पोते के पास.

२- बालासाहेब ठाकरे के सिंहासन के पीछे हमेशा दहाड़ता शेर देखा लेकिन आज के माहौल में एक कहावत अवश्य चरितार्थ होती दिखती है "जिसकी भी दुम उठाओ मादा ही मिलता है"

३ – महाराष्ट्र में संजय राउत को अस्पताल से छुट्टी मिलने तक शिवसेना की कृपा अटकी हुई है।

४ – महाराष्ट्र को लेकर कहीं भाजपा कांग्रेस में कोई गुप्त समझौता तो नहीं हो गया ?

खैर यह तो हुई गप्पास्टिक, अब आईये ताजा स्थिति पर एक नजर डालें –

सचाई तो यह है कि महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ बहुत कुछ उलटा पुलटा गड़बड़झाला हो गया है ...

कहा जाता है कि अमित शाह कुछ रोज पहले उद्धव ठाकरे से मिलने जाने ही वाले थे, लेकिन जैसे ही यह समझ में आया कि शिवसेना इस वक्त पूरी तरह से शरद पवार के हस्तक संजय राउत के दिमाग से चल रही है और उद्धव ठाकरे पुत्रमोह में धृतराष्ट्र बन चुके है, मोठा भाई का माथा घुम गया | प्रदेश को दिल्ली से सीधा सन्देश पहुँच गया कि बहुत हुआ, अब इनकी अक्ल ठिकाने लगाना जरूरी है, अब शिवसेना से कोई बात नहीं होगी | बस फिर क्या था, उसके तुरंत बाद फड़नवीस ने इस्तीफा दे दिया |

जो संजय राऊत 15 दिन से कहते फिर रहे थे कि शिवसेना के पास 175 MLA का समर्थन है, निर्धारित २४ घंटे में शिवसेना दावा भी पेश नहीं करवा पाए | नतीजा यह की धड़का बैठ गया, सीने में दर्द उठा, और अस्पताल की शरण में पहुँच गए | संजय को लगा था कि NCP और काँग्रेस क्षण भर की भी देरी नहीं करेगी समर्थन देने में, लेकिन शरद पवार ने सारी हेकड़ी निकाल दी |

चुनाव से ठीक पहले शरद पंवार के कई विधायक और करीबी भाजपा में पहुँच गए, यहाँ तक कि छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज उदयनराज भोंसले भी उनको छोड़ भाजपा में चले गये | इसके बावजूद यह कहा जा सकता है की इस चुनाव में अगर कोई वाकई विजेता है तो वह शरद पवार ही हैं | शरद पवार ने न केवल अपनी दम पर NCP को पचास सीटें दिलाईं बल्कि सतारा लोकसभा में उदयनराज भोंसले को भी हरा दिया | शरद पवार का वह बारीश में भिगते हुये भाषण देना मराठवाडे में चल गया | 

शरद पवार वाकई खिलाड़ी हैं | पहले संजय राउत को भरोसे का आश्वासन दिया, शिवसेना कोटे से केंद्र में मंत्री का केंद्र मंत्रिमंडल से इस्तीफा करवाया, लेकिन जैसे ही राज्यपाल ने आदित्य ठाकरे को बुलाया, काँग्रेस और NCP ने गच्चा दे दिया और तय समय सीमा में समर्थन पत्र नहीं भिजवाया |

आदित्य ठाकरे छोटा सा मूँह लेकर और बेइज्जती करवाकर लौट आये | संजय राउत इन सब भसड़ और बेइज्जती से बचने के लिये अपना काम कर हॉस्पिटवाइज हो गये | कौन जाने वे शिवसेना के प्रति समर्पित हैं या शरद पंवार के ? 

क्योंकि अब सब कुछ शरद पवार के हाथ में आ गया है, राज्यपाल ने उन्हें बुलाया है सरकार बनाने के लिये | काँग्रेस तो आराम से समर्थन कर देगी, लेकिन शिवसेना क्या करेगी???? 

कल तक सरकार बनाने का दावा करनेवाली शिवसेना अब पवार साहेब के दावे का समर्थन करेगी??? .... और नहीं करेगी तो दोबारा चुनाव की स्थिति में किस मूँह से चुनाव लड़ेगी???

शरद पवार ने चालाकी से शिवसेना को निपटा कर पुराना हिसाब चुकता कर दिया है .... 

भाजपा पुरानी मित्रता के लिहाज में इनकी हर अकड़, हर अपमान को सह लेती थी फिर भी साथ रखती थी... 

लेकिन अब दो घाघ राजनेताओं के बीच उसकी औकात किसी घुन से ज्यादा नहीं है | 

दो पाटों के बीच में साबुत बचा न कोय |

एक तरफ शरद पवार दुसरी तरह अमित शाह बीच में बेचारी शिवसेना ....

सॉरी शिवसेना नहीं, यह कहने पर तो बाला साहेब वाली शिवसेना याद आती है... यह तो “छोटा पप्पू” सेना है ... और छोटा पप्पू कौन है ? क्या यह भी लिखने की जरूरत है ?

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