भारतीय राजनीति में चरण वंदन करने व करवाने की अजीबो गरीब प्रथा - दिवाकर शर्मा

इन दिनों मध्यप्रदेश में सार्वजानिक स्थानों पर राजनेताओं द्वारा अपने क्षत्रप की चरण वंदना करने का सिलसिला चर्चाओं में है | मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर द्वारा ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने सम्पूर्ण दंडवत होने की घटना, देवास नगर निगम की आयुक्त संजना जैन के द्वारा लोक निर्माण मंत्री सज्जन सिंह वर्मा की चरण वंदना, मप्र विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पैर छूने की घटना के तमाम फोटो एवं वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं | सोशल मीडिया पर चाहे जितनी जगहंसाई हो चरण वंदना का यह सार्वजनिक प्रदर्शन ख़तम होने वाला नहीं है और ना ही पारंगत लोग चरण वन्दना करने से रुकने वाले हैं | 

भारतीय संस्कृति में चरण वन्दन का अपना महत्व रहा है, बुजुर्गों और मनीषियों के चरणस्पर्श कर आशीर्वाद तो पुरातन काल से लिया जाता रहा है | परन्तु राजनीति में तो चाटुकारिता का यह भोंडा प्रदर्शन जुगुप्सा ही पैदा करता है | कारण भी साफ़ है, क्योंकि आज के छुटभैये राजनेता किसी योग्यता या समाजसेवा के कारण नहीं, बल्कि केवल और केवल गणेश परिक्रमा के सहारे ही शीर्ष पदों पर पहुंचते हैं, अतः जिनके कारण उनका वजूद है, उनकी चरण वंदना करना अपना पहला और आख़िरी कर्तव्य मानते हैं | अब चूंकि राजनीति में योग्यता कोई पैमाना है ही नहीं, चरण बंदना का ही प्रथम स्थान है, अतः यही कारण है कि राजनीति का स्तर लगातार गिरता जा रहा है | पहले जब नेता शब्द सामने आता था तो मन मस्तिष्क में आदर्श उभरता था, परन्तु आज नेता शब्द चिढ़ाने का काम करता है | इससे समझा जा सकता है कि पहले की राजनीति से वर्तमान राजनीति में कितना बड़ा परिवर्तन आ चुका है | 

हिन्दू धर्म के अनुसार वृद्ध जनों या सम्मानित व्यक्तियों के चरण स्पर्श करने से जो आशीर्वाद प्राप्त होता है उससे अहंकार नष्ट होता है और व्यक्ति उन्नति करता है | कहा यह भी जाता है कि पैर के अंगूठे द्वारा विशेष शक्ति का संचार होता है | मनुष्य के पाँव के अंगूठे में विद्युत संप्रेषणीय शक्ति होती है | यही कारण है कि अपने वृद्धजनों के नम्रतापूर्वक चरण स्पर्श करने से जो आशीर्वाद मिलता है, उससे व्यक्ति की उन्नति के रास्ते खुलते जाते है | कहा यह भी जाता है कि, कपिला नामक गाय के दान से जो फल प्राप्त होता है और जो कार्तिक व ज्येष्ठ मासों में पुष्कर स्नान, दान पुण्य आदि से मिलता है, वही पुण्य फल किसी पुण्यात्मा के चरण वंदन से प्राप्त होता है | यह तो हुआ हिन्दू धर्म में चरण वंदना का कारण, परन्तु राजनीति में इसका अर्थ एवम उद्देश्य बिलकुल ही अलग हो जाता है | राजनीति में चारण नीति एवं चरण वंदना एक महत्वपूर्ण कला है | यहाँ यह कहना ज्यादा उचित होगा कि वर्तमान राजनीति में 'चरण वंदना' एक ऐसा रोग है जिसने बहुत हद तक धार्मिक दीवारों तक को भेद दिया है | आजकल की राजनीति को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि अब राजनीति का श्री गणेश ही चरण वंदना से ही होता है | राजनीति में प्रवेश करने वाले व्यक्ति को यह सीखना होता है कि कब, कहाँ, किसके और कितनी बार चरण स्पर्श करने है, किसे दादा, भाई साहब, पंडित जी, महाराज, श्रीमंत, राजा साहब, युवराज आदि संबोधन देने हैं | अब राजनीति में, राजनितिक ककहरा सीखने के लिए किसी विचारधारा, चिंतनशैली को आत्मसात कर, उस पर अमल करने अथवा उसके आधार पर लोगों को संगठित करने से अधिक महत्वपूर्ण है आकाओं के पैर पड़ते रहना |

कुल मिलाकर राजनीति में कृपा बरसवाने का शॉर्टकट है 'चरण वंदना | इसमें सफलता की शत प्रतिशत गारंटी है | इस कला का प्रदर्शन व्यक्ति सार्वजनिक मंच, सभा, झुण्ड, भीड़, शादी समारोह, एकांत, गाड़ी में, पैदल चलते कहीं भी करते हुआ देखा जा सकता है | कई बार इसके लिए प्रतिस्पर्धा भी हो जाती है | चरण वंदना राजनीति में राजनैतिक बही खातों की एक 'लेन देन प्रणांली बन चुकी है | कृपा दृष्टी की फाइल इसी सेवा रुपी कला के माध्यम से खुलती है | चरण वंदना कराने के आदि हो चुके नेता भी अब किसी से अपने पैर छुआते समय आशीर्वाद की उदारता कम, उपकार जताने का अहं भाव अधिक रखते है | वे चरण स्पर्श करने वालों को देखते तक नहीं हैं | इसके विपरीत उसे अवश्य घूरकर देखते हैं, जो उनके चरण स्पर्श नहीं करता | अच्छा बच्चू, हमारे पैर नहीं छूते, देखेंगे तुम्हें समय आने पर | आज चरण वंदना भारतीय राजनीति का एक ऐसा अभिन्न भाग बन गया है कि कोई भी इससे पिंड छुड़ाना नहीं चाहता है | इस कला के महारथी तो इस बात की कल्पना से भी भयभीत हो उठते है कि यदि राजनीति से 'चरण वंदना' समाप्त हो गया तो उनके राजनैतिक वजूद का क्या होगा | उनका घोष वाक्य होता है – एक के पैर छुओ और सौ से पैर छुआओ !

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