जो अब हो रहा है वही सच है - संजय तिवारी


जी हां। जो हो रहा है वही सच है। अभी तक तो गंगा जमुनी के नाम पर पर्दा डाल कर हो रहा था। अच्छा है । कैब के बहाने ये नंगे हो रहे हैं। जिनसे कोई यह तो पूछे कि भाई , तुम हमेशा कानून और संविधान की दुहाई देते हो । यह कानून तो भारत की संसद ने संविधान के अनुसार ही बनाया है। फिर किस चीज का विरोध कर रहे हो। तुम हमेशा से अशांति फैलाते रहे हो किसी न किसी बहाने, लेकिन इस बार तो बहाना भी बहाने लायक नही है। जिस देश का शोषण कर अभी तक तुमने शांति का जीवन जिया है, वह जीवन तुम्हे रास क्यो नही आ रहा। भारत के संविधान और संसद पर भरोसा नही रह गया तो संसद को मिटा दो?

ऐसा एक प्रयास तुम कर चुके हो। सबसे आश्चर्य तो यह है कि वे जो कहा करते थे, हर मुसलमान दंगाई नही होता , वे कहां हैं। वे अमन कमेटियां कहां हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी में आज जो हो रहा है उसके बारे में तो सोशल मीडिया दीपावली के पहले से ही लिख रहा था। अब शासन या प्रशासन को समझ मे नही आया तो कोई क्या करे। कुशीनगर की मस्जिद में बारूद से भरे बोरों की बरामदगी को जिसने हल्के में लिया वह जाने। आज जो भी हो रहा है वह कतई न तो कतई अप्रत्याशित है और न ही चौंकाने वाला है। 

अगर अभी भी भारतीय लोग नही समझ सके हैं तो उनको जान लेना चाहिए कि राष्ट्रवादी सनातन प्रतीक योगी आदित्यनाथ ने जिस दिन प्रदेश की बागडोर सम्हाली थी , इन तत्वों के पेट का दर्द उसी दिन से शुरू हो गया था। पहले से ही शीर्ष पर सत्तासीन सनातन पुरुष नरेंद्र दामोदर दास मोदी और ऊपर से पाकिस्तान निर्माता कॉर्पोरेट के गढ़ में योगी। बहुत दिनों से ये मौके की तलाश में थे। कैब ने बहाना दे दिया।
दरअसल कैब(सीएबी) यानी अब सीएए का मामला उतना सीधा है नहीं जैसा कि लोग बहस कर रहे हैं। इसको समझने के लिए विश्व के परिदृश्य को ठीक से जान लेना जरूरी है। एक मात्र पहल यानी नए नागरिकता एक्ट के माध्यम से सरकार ने पाकिस्तान और बांग्लादेश को ऐसा सबक सिखाया है जिससे ये तिलमिला तो गए हैं लेकिन अपना दर्द नहीं बयां कर पा रहे हैं। सरकार ने ये बिल लाकर बिना इनका नाम लिए बिना पूरी दुनिया को बता दिया कि इन देशों में अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ हो रहा है।

बिल पास होते ही बांग्लादेश को दुनिया के सामने अपनी इज्जत बचाने के लिए कहना पड़ा कि वह अपने सभी नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है। उसने स्वीकार भी किया कि उसके यहां अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ हुआ है। कश्मीर में उत्पीडऩ का आरोप लगाने वाले पाकिस्तान ने ऊल-जुलूल बयान दिया लेकिन यूएन की रिपोर्ट ने उसकी पोल खोल दी। इस बिल के आने से पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ हो रहा था वह अब एक दस्तावेजी रिकॉर्ड बन गया है, जुबानी जमा खर्च नहीं है। भारत में जितने लोगों को यहां नागरिकता दी जाएगी ये दोनों देश उतने ही एक्सपोज होंगे। इस बिल के पास होने के बाद ही बांग्लादेश ने रोहिंग्याओं को वापस लेने के लिए म्यांमार पर दबाव बना शुरू कर दिया है।

इस बिल के आने के बाद भारत में रह रहे तमाम अल्पसंख्यक पीडि़त खुलकर बता सकेंगे कि वे किस देश से आए हैं, इससे इन देशों की और पोल खुलेगी। इसके चलते इनको अपने यहां उन कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा, जिनका उपयोग ये दोनों देश भारत को ब्लैकमेल करने के लिए करते हैं।

भारत मे राजनीति करने वाले विपक्ष को पता है कि इसका भारत के नागरिकों पर असर नहीं पडऩे वाला लेकिन 370 , राममंदिर , तीन तलाक पर प्रतिरोध न होना, सबकुछ शांति से निपट जाने पर विपक्ष काफी चकित था । उसे इस तरह का निष्कंटक राज पसंद नहीं आ रहा था। इसलिए उसने एनआरसी का डर दिखाकर लोगों को भड़काया , लेकिन देश में इतनी हिंसा हो गई इससे विपक्ष का ये पासा भी उल्टा ही पड़ता दिखाई दे रहा है।

अब हालात ऐसे हैं कि इनके आकाओं, पंथ या मजहब के ठेकेदारों, पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी अवैध संस्थाओं को डर है कि ये सरकार कॉमन सिविल कोड , जनसंख्या नियंत्रण कानून , एनआरसी पर बहुत तेजी से काम कर सकती है, इसलिए इसको रोकने का एक ही उपाय है हिंसा । हिंसा फैलाकर देश - दुनिया का ध्यान खींचो, सरकार अपने आप कदम पीछे खींच लेगी। आज लखनऊ के हालात इसी कड़ी में शामिल हैं।ये अभी रुकने वाले भी नही हैं क्योंकि इनके गोदामो में अभी बहुत माल है। इस बार ये अपनी ऐसी लड़ाई लड़ रहे हैं जिसको इनकी बुद्धि निर्णायक समझती है जबकि ऐसा है नही। ये किसके विरोध में हैं , इनसे कोई पूछ ही नही रहा। इस बार ये अंधेरे में तीर चला रहे हैं। भारत एकजुट है। अबकी इन्होंने भारत के विरोध में नही बल्कि वास्तव में भारत वर्ष से लड़ाई छेड़ी है। भारत निपट लेगा।

संजय तिवारी
संस्थापक - भारत संस्कृति न्यास
वरिष्ठ पत्रकार 
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