सावरकर का माफीनामा - एक नजरिया जरा हटके !



एक कथित माफ़ीनामे के नाम पर आज कांग्रेसी और वामपंथी जिन्हें कोस रहे हैं, आईये स्वतंत्रता संग्राम में उनके महान योगदान को जान लें - 

* वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें?
क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.?

* वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ..!

* विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी…!

* वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र ‘इन्डियन ओपीनियन’ में गाँधी ने निंदा की थी…!

* सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुरमाना किया… इसके विरोध में हड़ताल हुई… स्वयं तिलक जी ने ‘केसरी’ पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा…!

* वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफ़ादार होने की शपथ नहीं ली… इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नहीं दिया गया…!

* वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया…!

* सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था…।

* ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी…! भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी… पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी…!

* वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे…!

* सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नहीं मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया…!

* वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी…!

* सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले - “चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया”…!

* वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काला पानी की सज़ा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आज़ादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला…!

* वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से कवितायें लिखीं और 6000 पंक्तियाँ याद रखी..!

* वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि :
‘आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका,
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः।
अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभूमि है, जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भूमि है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है..!

वह सावरकर ही थे जिन्होंने मातृभूमि की वंदना करते हुए लिखा – 

तुज साथी मरण है जनन,तुज बिना जनन है मरण ! 

इसका हिन्दी भावान्तर करें तो कुछ यह होगा - 

जीवन वही है सार्थ सत, जो देश हित होवे मरण, 

हो देश सेवा विरत तन, तो मरण का करलूं वरण ! 

कितने आश्चर्य की बात है कि अंग्रेजों के जितने चाटुकार, ओहदेदार, मनसबदार, राजे राजबाड़े थे, वे सब आज कांग्रेस में हैं और इसके बाद भी कांग्रेस दोदोबार आजीवन कारावास की सजा पाने वाले क्रांतिवीर सावरकर जी को गद्दार कहती है | धिक्कार है | 

कांग्रेसियों की असहिष्णुता तो देखिये कि 26 फरवरी 1966 को जब सावरकर जी का स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा, उसे यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नही थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था । 

लेकिन अटल जी के शासनकाल में उन्हीं क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर सावरकर का उसी संसद में 26 फरवरी 2003 को चित्र लगा, कभी जिनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था…। 

यह अलग बात है कि उनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा, लेकिन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र का अनावरण स्वयं राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया…। 

कांग्रेस फिर सत्ता में आई तो UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से सावरकर का नाम हटवा दिया और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया..। 

जबकि वीर सावरकर ने दस साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था और महात्मा गाँधी ने काला पानी की उस जेल में कभी दस मिनट चरखा भी नही चलाया ! 

अरे कान्गियो बामियो ... 

हम भारतवंशी महापुरुषों का आंकलन उनके सम्पूर्ण जीवन वृत्त से करते हैं, किसी एक घटना से नहीं .... 

हम मथुरा से द्वारका जाने वाले रणछोड़ कृष्ण को पूजते हैं, क्योंकि उनका वह पलायन भी सुनियोजित था, बुराई के प्रतीक जरासंध के समूल नाश के लिए उस समय वही आवश्यक था ! 

कृष्ण कालयवन के सामने से भी भागे और योजनापूर्वक तपस्वी मुचकुंद की क्रोधाग्नि में उसे भस्म करवाया ! 

अगर देशभक्त विनायक दामोदर सावरकर काला पानी की सजा भुगतते हुए, कोल्हू से तेल निकालते हुए वहीँ शहीद हो जाते, तो राष्ट्र जागरण का वह कार्य कैसे कर पाते, जो नियति ने उनके माध्यम से करवाना नियत किया था ? 

उन्होंने माफीनामा अगर दिया भी होगा तो वह भी सोने के फ्रेम में मढ़वाकर सहेज कर रखने लायक धरोहर है, उनका सम्पूर्ण जीवन इसकी गवाही देता है ! वे हमारे लिए पूज्य थे, हैं और रहेंगे | कोई राउल विंची उनकी साख कम नहीं कर सकता ! 

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