मीम समर्थक भीमवादी नेता जोगेंद्र नाथ मंडल को जरूर जानें -


आजकल भीम मीम गठजोड़ बहुत चर्चित है । ऐसे में मुझे सहज जोगेंद्र नाथ मंडल स्मरण हो आये । आजादी के पूर्व दूरंदेश जिन्ना ने बंगाल के इस दलित नेता को सांठ लिया था, तो मंडल साहब ने 1946 में भारत के विभाजन-पूर्व के राजनीतिक सेटअप में मुस्लिम लीग का भरपूर समर्थन किया और नतीजा यह निकला कि हिन्दू बहुल एक बड़ा भू भाग मतदान के पश्चात पाकिस्तान में चला गया । बदले में मंडल को 11 अगस्त 1947 को हुई पकिस्तान की उस संविधान सभा के ऐतिहासिक सत्र की अध्यक्षता करने का गौरव प्राप्त हुआ, जहाँ मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान के पहले गवर्नर-जनरल के रूप में शपथ ली। इतना ही नहीं तो मुस्लिम लीग ने जोगेंद्र नाथ मंडल को विभाजन से पहले भी महत्वपूर्ण पदों पर रखा, बल्कि पाकिस्तान बनने के बाद भी वे पाकिस्तान के पहले कानून और श्रम मंत्री भी बने।

उसका कारण साफ़ था, पूरे विश्व में हिन्दुओं के उत्पीडन के कारण पाकिस्तान की थू थू हो रही थी, अतः जिन्ना दुनिया को दिखाना चाहते थे कि देखो एक हिन्दू हमारी सरकार में मंत्री है । साथ ही मंडल के उस अहसान का बदला भी चुकाना था जो मंडल ने पाकिस्तान को अस्तित्व में लाने के लिए किया था । 

आईये जोगेंद्र नाथ मंडल की कारगुजारियों पर एक नजर डालें 

1940 में कलकत्ता नगर निगम के लिए चुने जाने के बाद से ही मंडल मुस्लिमों के लिए विशेष रूप से मददगार साबित हुए। उन्होंने ए. के. फ़ज़लुल हक और ख़्वाजा नाज़िमुद्दीन (1943-45) की [बंगाल] सरकारों के साथ सहयोग किया और मुस्लिम लीग (1946-47) की उस समय सेवा की जब जिन्ना को अंतरिम सरकार के लिए पाँच मंत्रियों को नामित करना था, जिन्ना ने मुस्लिम लीग से मंडल को मनोनीत किया, उसके कारण ही विवश होकर कांग्रेस को भी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को नामित करना पड़ा ।

3 जून 1947 को बंगाल/ असम का सिलहट जिला पाकिस्तान में शामिल होगा या भारत में रहेगा, इस विषय को लेकर जनमत संग्रह कराया गया । जिले में हिंदू और मुसलमानों की जनसंख्या लगभग बराबर थी । जिन्ना के निर्देश पर मंडल सिलहट पहुंचे और उनके प्रभाव के कारण हिन्दू दलितों ने पाकिस्तान में शामिल होने के लिए मतदान किया । 

किन्तु जिन्ना के देहांत के बाद जैसे ही मंडल ने पाकिस्तान में दलितों की दुर्दशा सुधारने की आवाज उठाई, उन्हें न केवल सरकार के मंत्रीपद से रुखसत कर दिया गया, बल्कि पाकिस्तान में उन्हें राजद्रोही भी माना जाने लगा । और वह दिन भी आया जब मंडल को अपना वह पाकिस्तान छोड़ना पड़ा, जिसे बनाने के लिए उन्होंने हिन्दुओं की पीठ में छुरा मारा था । उनका शेष जीवन भारत में ही गुजरा, लेकिन गुमनामी की अंधेरी काल कोठरी में ।

लेकिन भारत का दुर्भाग्य है कि आज भी मंडल के समान ही हिन्दू विरोधी नीति दलित नेताओं ने जारी रखी है । यहाँ तक कि वर्षों पहले जब महात्मा गांधी ने दलित शब्द को उस समाज का अपमान मानते हुए उन्हें 'हरिजन' संबोधन दिया तो डॉ. बी आर अम्बेडकर ने उसका विरोध किया और गांधी जी पर अछूतों को धोखा देने का आरोप लगाया । उनका मानना था कि गांधी उन्हें हिंदू धर्म से जोड़े रखने के लिए रणनीति का इस्तेमाल कर रहे थे। बाद में, अम्बेडकर और उनके 3,000 अनुयायी बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए।

और आज के दलित नेताओं का तो कहना ही क्या है ? चंद्रशेखर रावण जैसे नेता हिन्दू विरोध को ही अपना जीवन उद्देश्य मान बैठे हैं । काश वे जोगेंद्र नाथ मंडल के जीवन से कुछ सीख पाते ।
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