विवेकानंद साहित्य - ९


प्रफुल्ल चित्त तथा हंसमुख रहने से तुम ईश्वर के अधिक निकट पहुँच जाओगे | किसी भी प्रार्थना की अपेक्षा प्रसन्नता के द्वारा हम ईश्वर के अधिक निकट पहुँच सकते हैं | ग्लानिपूर्ण या उदास मन से प्रेम कैसे हो सकता है ? अतः जो मनुष्य सदा अपने को दुखी मानता है, उसे ईश्वर की प्राप्ति नही हो सकती | हरेक को अपना बोझा खुद ढोना है, यदि तुम दुखी हो तो अपने दुखों पर विजय प्राप्त करो |

- बलहीन को ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती | अतः दुर्बल कदापि न बनो | तुम्हारे अन्दर असीम शक्ति है तुम्हे शक्तिशाली बनना है | अन्यथा तुम किसी भी वस्तु पर विजय कैसे प्राप्त करोगे ? शक्तिशाली हुए बिना तुम ईश्वर को कैसे प्राप्त कर सकोगे ? पर साथ ही अतिशय हर्ष, अर्थात उद्धर्ष से भी बचो | अत्यंत हर्ष की अवस्था में भी मन शांत नहीं रह पाता, मन में चंचलता आ जाती है | अति हर्ष के बाद सदा दुःख ही आता है | हँसी और आंसू का घनिष्ठ सम्बन्ध है | मनुष्य बहुधा एक अति से दूसरी अति की ओर भागता है | चित्त प्रसन्न रहे पर शांत हो |

- वेदान्त का प्रतिपाद्य है ‘विश्व का एकत्व’, विश्व बंधुत्व नहीं |

- बच्चे का पांच वर्ष की अवस्था तक लालन, दस वर्ष की अवस्था तक ताडन किया जाना चाहिए | जब लड़का सोलह वर्ष का हो तो उससे मित्र के समान व्यवहार करना चाहिए | - चाणक्य

- वेश्यापुत्र वशिष्ठ (महाभारत आदिपर्व)और नारद (श्रीमद्भागवत), दासीपुत्र सत्यकाम जाबाल (छान्दोग्योपनिषद), धीवर व्यास (महाभारत आदिपर्व), कृप, द्रोण और कर्ण आदि सबने अपनी विद्या या वीरता के प्रभाव से ब्राम्हणत्व या क्षत्रियत्व पाया |

- गर्व से बोलो कि मैं भारतवासी हूँ और प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है | बोलो कि अज्ञानी भारतवासी, दरिद्र भारतवासी, ब्राम्हण भारतवासी, चांडाल भारतवासी, सब मेरे भाई हैं | भारतवासी मेरे प्राण हैं, भारत के देव देवियाँ मेरे ईश्वर हैं, भारत का समाज मेरी शिशु सज्जा, मेरे यौवन का उपवन और बार्धक्य की वाराणसी है | भाई बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण में मेरा कल्याण है | और रात दिन कहते रहो – हे गौरीनाथ ! हे जगदम्बे ! मुझे मनुष्यत्व दो, माँ मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो, मुझे मनुष्य बनाओ |

- आत्मा और स्वतंत्र अस्तित्व का विचार हिब्रुओं में, मालुम होता है, मिस्त्री लोगों के उच्चतर रहस्यमय उपदेशों के द्वारा और मिस्त्रियों ने उसे भारत से ग्रहण किया | और वह विचार अलेक्जेंड्रिया के रास्ते आया | कहा जाता है कि पायथागोरस ही प्रथम यूनानी है, जिसने यूनान देश वासियों – हेलेनों – को पुनर्जन्म का सिद्धांत सिखाया | वे आर्य जाती के होने के कारण पहले ही अपने मुरदों को जलाते थे और जीवात्मा के सिद्धांत को मानते थे; अतः उन यूनानियों के लिए, पायथागोरस के उपदेश से पुनर्जन्म का सिद्धांत मान लेना आसान था | अपूलियस के अनुसार पायथागोरस भारत में आये और वहां के ब्राम्हणों से शिक्षा ग्रहण की थी |

- एक एव सुह्राद्धर्म निधनेप्यनुयातियः (धर्म ही एकमात्र सखा है जो मृत्यु के बाद भी साथ जाता है)

- दुर्लभं त्रयमेवैतत देवानुग्रहहेतुकम |

मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः || (विवेक चूडामणि)


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