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कौन देगा महाराष्ट्र को छत्रपति शिवाजी जैसा सुराज ? - श्री अनिल माधव दवे

 
छत्रपति शिवाजी महाराज की कर्मभूमि रहे महाराष्ट्र का आमजन नवीन राज्य व्यवस्था का चयन कर रहा है | ऐसे में यह स्मरण करना प्रासंगिक होगा कि शिवाजी महाराज के राज्य में कैसी व्यवस्था थी ? कैसा था शिवाजी महाराज का सुराज ?
जिसके कारण वे आज भी प्रातः स्मरणीय वन्दनीय महापुरुष माने जाते है |
प्रजा केन्द्रित विकास ही सुशासन का मूल तत्व है | प्रजा की भागीदारी के बिना किसी भी राज्य ने प्रगति नहीं देखी | हमारे सभी महा नायकों ने इस तथ्य को अच्छी तरह से जाना और समझा | छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी समाज आधारित सुशासन की स्थापना कर इतिहास में अपनी अमिट छाप छोडी | एशियन डवलपमेंट बैंक के अनुसार सुशासन के चार घटक हैं : जवाबदेही, पारदर्शिता, पूर्वानुमान क्षमता और सहभागिता | इन संकल्पनाओं को क्रियान्वित करने में शिवाजी का योगदान अनुकरणीय है | उन्होंने अपने व्यक्तित्व में एक महान शासक के गुणों को समाहित किया था, जिनके बल पर उन्होंने अपने देश को स्वतन्त्रता दिलाई एवं अपने साथियों को विरोधियों से लड़ने के लिए और भी प्रबलता से प्रेरित किया |
शिवाजी को उत्तराधिकार में मावल प्रांत के 36 गाँव मिले थे (जो उनके पिता साहजी के नाम थे) | राज्य विस्तार की शुरूआत में शिवाजी ने आसपास निवास करने वाले मावलों से संपर्क साधा, उनका संगठन बनाया, स्वराज का शासन स्थापित किया और उसे साम्राज्य में बदल दिया | शिवाजी के पास एक समय में 300 से अधिक किले थे, किन्तु एक भी किले का किलेदार उनका नाते रिश्तेदार नहीं था, जबकि औरंगजेब के दूर पास के सारे रिश्तेदार या तो विभिन्न किलों के किलेदार थे या किसी न किसी प्रमुख पद पर आसीन अधिकारी थे | शिवाजी ने जिस राज्य की स्थापना की उसे कोंकण राज्य या मराठी राज्य नहीं कहा, बल्कि उसे स्वराज्य नाम दिया | जिस साम्राज्य पीठ को उन्होंने स्थापित किया उसे हिन्दू पद पादशाही कहा | सिवाजी और औरंगजेब के बीच का यह अंतर केवल दो व्यक्तियों के बीच का अंतर नहीं है, बल्कि यह दो भिन्न भिन्न सोच, समझ और कार्य संस्कृतियों का अंतर है |
शिवाजी महाराज का सार्वजनिक जीवन लगभग 36 वर्षों का है | अभियान, युद्ध व मुहिमों में बिताये गए कुल समय की गणना की जाये तो वह साढ़े छः वर्षों से अधिक नहीं है | शेष लगभग 30 वर्षों का समय उन्होंने स्वराज का शासन तंत्र खडा करने में लगाया | जीवन पर्यंत कार्य प्रवण रहने के ही कारण किसी ने उन्हें “श्रीमान योगी” की उपमा दी है | शासन के पदों और प्रलोभनों के बीच ऐसा सृजन तो कोई योगी ही कर सकता है | भोगी तो केवल शासन को भोगता है, स्वयं की अतृप्त प्यास को शांत करता है और अंत में एक दिन रोते रोते अपनी अतृप्त क्षुधा के साथ इस दुनिया से चला जाता है |
आज अधिकांश लोग व्यवस्था की आलोचना तो करते हैं किन्तु मार्ग नहीं बताते | सार्वजनिक जीवन में सच्चे प्रेरणा केन्द्रों का अभाव हो गया है | अस्वीकार्य नेतृत्व को स्वीकारने की पीड़ा समाज की मजबूरी बन गई | शिवाजी स्वराज की संकल्पना का जन (mass) के साथ साथ गण (Class) में सम्प्रेषण सफलता पूर्वक इस कारण कर पाए, क्योंकि उन्होंने यह नहीं कहा कि “स्वराज मेरी अवधारणा है” | उन्होंने हमेशा स्पष्ट स्वरों में कहा कि “स्वराज यह श्री की इच्छा है” | जबकि आज देश में दृश्य ठीक विपरीत है | सरकार हो या संगठनों के नेता, हर योजना को अपनी बताते हैं, उसके लिए विज्ञापन, होर्डिंग तथा मार्केटिंग के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं | योग्य नायक एक विचार को सबका संकल्प बनाने की योग्यता रखता है | शिवाजी के शासन तंत्र में सिपाही से सेनापति तक, नागरिक से नायक तक सभी अगर आत्मविश्वास से भरे थे तो उसका प्रमुख कारण था, उनकी स्वराज में आस्था | यह आस्था शिवाजी ने भाषण देकर या चौराहों पर स्वयं के चित्र लगाकर खडी नहीं की थी, शिवाजी के मन में स्वराज को लेकर जो पवित्र भाव था, वह सूक्ष्म तरंग बनकर दूर दराज तक फैले स्वराज के हजारों लाखों लोगों के ह्रदय में समा गया था |
भारतीय ऋषियों ने चार अनिवार्य तत्वों को पुरुषार्थ कहा है | धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष | उसमें अर्थ को दूसरे क्रमांक पर रखा है | शिवाजी के शासनकाल में वित्त विभाग बाहर से आयात की जाने वाली वस्तुओं पर सूक्ष्म नजर रखता था | इस कारण उनके राज्य में उत्पादक, व्यापारी व उपभोक्ता के हितों का सदा संरक्षण होता था | एक समय जब उन्हें जानकारी मिली कि गोवा के पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा लाया जाने वाला नमक स्थानीय नमक की तुलना में सस्ता बिक रहा है, तो उन्होंने बाहर से आने वाले नमक पर प्रोटेक्शन टेक्स लगाकर अपने राज्य के व्यापारियों व नमक उत्पादकों का संरक्षण किया |
स्वदेशी जलपोत निर्माण के लिए उन्होंने कल्याण व भिवंडी में जलपोत निर्माण के कारखाने लगवाये | तोपों की आवश्यकता बढ़ने पर उन्होंने पहले अंग्रेजों से तकनीकी सहयोग प्राप्त करने का प्रयत्न किया | अंग्रेजों द्वारा आनाकानी करने पर उन्होंने फ्रांस के सहयोग से पुरंदर किले पर तोप का कारखाना लगवाया | ये सब प्रयत्न स्वराज के संसाधन को स्वराज में ही बनाए रखने और अनावश्यक आयात को नियंत्रित करने के लिए किये गए थे | औद्योगिक स्वावलंबन के कारण शासन में काम करने वाले सभी कर्मचारियों का आत्मविश्वास भी बढ़ा | शिवाजी ने अपने राज्य में समान कर प्रणाली लागू की | आज आजादी के 67 वर्ष बाद भी पेट्रोल डीजल जैसी उपभोक्ता वस्तुओं पर भारत सरकार सारे देश में एक समान कर नहीं लगा पाई है | जबकि शिवाजी ने इस कर प्रणाली को अपने स्वराज में सफलतापूर्वक 350 वर्ष पूर्व खडा कर दिया था |
किसान को विभिन्न आपदाओं  के कारण होने वाली हानि की भरपाई भी राज्य की ओर से विशेष ढंग से की जाती थी | बैल के मरने पर बैल दिया जाता था, बीज नष्ट होने पर बीज दिए जाते थे, हल अथवा कृषि उपकरण नष्ट होने पर वे ही साधन मुआवजे के रूप में दिए जाते थे | नगद राशि मुआवजे के रूप में दिए जाने पर अनावश्यक मदों में अथवा विलासिता पर भी खर्च हो सकती है | किन्तु वस्तु के बदले वस्तु दिए जाने के परिणामस्वरूप कृषक जल्दी ही नुक्सान से उबार कर फिर से सामान्य कृषि कार्य करता है | यह अपने आप में शासन में प्रयुक्त उच्च कोटि का वित्तीय विवेक है | शिवाजी के राज्य में वृद्ध, बीमार व बच्चों को छोड़कर किसी को भी कोई वस्तु मुफ्त में देने का विधान नहीं था | इस कारण प्रत्येक सहायता का सदुपयोग होता था और समाज में अकर्मण्यता भी नहीं बढ़ती थी | जबकि आज प्रचुर मात्रा में मुफ्त में बिजली, मुफ्त में जमीन के पट्टे, मुफ्त में नगद राशि जैसी विभिन्न लाभकारी योजनाओं के बाद भी गरीबी की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है |
शिवाजी के राज्य का गृह मंत्रालय और उसके अंतर्गत आने वाले शासन प्रशासन के विभिन्न विभागों का काम एक सशक्त ढाँचे में गुंथा हुआ था | आगरा में औरंगजेब ने उन्हें धोखे से नजबंद कर दिया | करीब साढ़े चार माह तक शिवाजी आगरा में रहे | नजरबंदी का समाचार पूरे राज्य में फ़ैल जाने के बाद भी राज्य में किसी प्रकार की अव्यवस्था नहीं हुई | असंतोष, बगावत या अराजकता की कोई घटना नहीं हुई | इसी प्रकार शिवाजी अपनी पहली दक्षिण विजय यात्रा में राज्य से छः माह दूर रहे और दूसरी यात्रा में करीब पोने दो वर्ष तक राज्य से बाहर रहे | इस सम्पूर्ण काल में गाँव में लगान बसूल करने वाला शासकीय कर्मचारी हो या किले के द्वारपाल के रूप में रखवाली करता सैनिक. सेना का प्रमुख अधिकारी हो या प्रधान मंत्री के रूप में कार्य देखा रहे महामात्य, सभी अपने अपने स्थान पर वैसे ही काम करते रहे, मानो शिवाजी उनके सामने खड़े हों |
उनके राज्य में सामान्य प्राशासनिक विभागों में नौकरी पाने का प्रमुख आधार गुणवत्ता थी | विश्वसनीयता के लिए व्यक्ति का विस्तृत परिचय अनिवार्य होता था | जीवामहाला असाधारण पट्टेवाज था | शिवाजी ने उसकी इस विलक्षण योग्यता को ध्यान में रखकर उसे राज्य की सेवा में लिया | अफजल खां से भेंट के समय जब उसके निजी सहायक सय्यद बंडा ने शिवाजी पर सीधा हमला किया, तब पलक झपकते जीवामहाला ने एक ही प्रहार में सय्यद बंडा के दो टुकडे कर दिए | भेंट की शर्तों के अनुसार शिवाजी को तलवार धारण नहीं करनी थी | अतः वह एक प्रहार स्वराज के जीवन व मृत्यु के बीच चट्टान बनकर खडा हो गया |
कृषि का उत्पादन बढाने और शासन पर भार कम करने के उद्देश्य से शिवाजी ने अपने सैनिकों को वर्षाकाल के समय कृषि कार्य में लगाने का प्रावधान किया | शान्ति के समय ये सैनिक किले के नीची या अपने अपने गाँवों में कृषि भूमि पर खेती करने जाते थे | वर्षा समाप्ति पर विजयादशमी के दिन फिर से एकजुट होते और अगले सात आठ महीनों के लिए मुहीम पर निकल जाते | श्रम का कृषि में विनियोग और कृषि कार्य पूर्ण होने पर उसका रक्षा व्यवस्था में उपयोग का यह तरीका अपने आप में शासकीय श्रम प्रवंधन का अनूठा उदाहरण है |
हजारों वर्षों से भारत एक सुसभ्य और विकसित देश रहा है | नीति निर्धारकों ने राज्य संचालन करने वाले नायक में न्यायशास्त्र के ज्ञान को अनिवार्य माना | न्यायकर्ता में पद, प्रिय एवं परिवार से प्रभावित हुए बगैर सही निर्णय का साहस होना ही चाहिए | अफजलखां सी हुए युद्ध के बाद जब धटनाओं का विश्लेषण किया गया तो यह बात ध्यान में आई कि खंडोजी खोपडा का आचरण स्वराज के विरुद्ध रहा, उसने राष्ट्र द्रोह किया है | कान्होजी जेधे स्वराज के वरिष्ठ व्यक्ति थे | शिवाजी के पिता शाहजी के संगीसाथी थे | उन्होंने शिवाजी से निवेदन किया कि खंडोजी की जान बख्श दी जाए | सबके सामने अपने वरिष्ठ सहयोगी का मान तो शिवाजी ने रख लिया, किन्तु वे अन्दर से हिल गए | कुछ दिन बाद जैसे ही एक दिन खंडोजी खोपडा उनके सामने पडा शिवाजी ने उसके अपराध पर निर्णय लेते हुए आदेश दिया कि जिस बाएं पैर से यह दुश्मन की ओर बढ़ा था, उसे काट दो और जिस दाहिने हाथ से इसने दुश्मन का सहयोग व स्वराज्य का अहित करने के लिए तलवार उठाई, वह हाथ भी काट दो | आदेश का तत्काल पालन हुआ | व्यथित कान्होजी जेधे शिवाजी के सामने आये और बोले “महाराज ये क्या किया” ? शिवाजी ने कहा कि “आपको इसे मृत्युदंड न देने का वचन दिया था सो उसका पालन किया, किन्तु अगर कोई भी दण्ड ना दिया जाता तो यह सन्देश जाता कि देशद्रोह से परिचय बड़ा है | क्या यह स्वराज्य के लिए उचित होता ?”
इसी प्रकार दक्षिण विजय से लौटते समय बेदनूर गढ़ी की जागीरदारिनी सावित्री देवी पर उनकी सेना के एक सरदार सखोजी गायकवाड ने बुरी नजर डाली | शिवाजी के संज्ञान में जब यह विषय आया तो उन्होंने उसकी आँखें निकालने का आदेश देकर उसे जेल में डाल दिया | सेना में अनुशासन, नारी के प्रति सम्मान और परम्पराओं का पालन जैसी सब बातों का विचार कर यह सजा दी थी |
शिवाजी ने दूर व पास के शत्रुओं को पहचाना | उनका मत था कि आदिलशाही और कुतुबशाही तो भारत के ही धर्मान्तरित मुसलमान हैं | उनके पूर्वज भय अथवा प्रलोभन के कारण धर्मान्तरित हुए हैं | आदिल व कुतुबशाही में शिया मुसलमानों का प्रभाव था | जबकि औरंगजेब स्वयं को तुर्क मुसलमान मानता था | वह सुन्नी था और हनफी पंथ को मानने वाला था | शिवाजी ने कूटनीति दिखाते हुए आदिलशाही व कुतुबशाही से संधि की और मुगलों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल फूँका | आदिलशाही के अनियंत्रित होने पर उसे दण्डित भी किया और हर्जाने के रूप में खंडी वसूल की |
शिवाजी ने सांघिक लक्ष्य को आकार दिया, जिसके कारण उनकी किसी भी मुहीम में हमला करते समय या पीछे हटते समय बिखराव नजर नहीं आता | बहलोल खान से युद्ध करते समय प्रतापराव गुर्जर वीर गति को प्राप्त हुए | पीछे हटती मराठा सेना के पीछे आदिलशाह की सेना लग गई | ऐसे समय में पंचहजारी सरदार हंसाजी मोहिते ने आदिलशाही सेना पर हमला कर पराजय को जय में बदल दिया | प्रतापराव की मृत्यु से दुखी महाराज को जब इस पराक्रम की सूचना मिली तो उन्होंने हंसाजी का नाम बदलकर “हम्बीरराव मोहिते” रखकर उन्हें सरसेनापति बना दिया | सेना में शस्त्र नही लड़ते, उसके पीछे खडा व्यक्ति लड़ता है और इस व्यक्ति के पीछे उसका मन व मस्तिष्क लड़ता है |
शिवाजी के वाकचातुर्य के अनेक उदाहरण हैं | हैदरावाद में दक्षिण विजय के उपलक्ष्य में हाथियों की भिडंत का खेल आयोजित हुआ | कुतुबशाह ने अपने एक विशाल हाथी को दिखाते हुए शिवाजी से कहा “क्या आपके राज्य में ऐसा कोई हाथी है ?” शिवाजी ने येशाजी कंक की ओर देखकर कहा, “हाँ ये है न |” मैदान में हाथी और येशाजी को उतारा गया | द्वंद्व प्रारम्भ होने का संकेत होते ही येशाजी कंक ने एक ही वार से हाथी की सूंड काट दी | कुतुबशाह ने येशाजी की भूरिभूरि प्रशंसा करते हुए शिवाजी से उन्हें मांग लिया | महाराज ने प्रत्युत्तर में न ‘हां’ कहा और न ‘न’ | उन्होंने कुतुबशाह से कहा कि “मैंने श्रेष्ठ मोतियों की माला बनाई है | आप बीच का मोती मांग रहे हैं, इसे कैसे दे दूं ?” इस प्रकार शिवाजी ने कुतुबशाह को नाराज भी नहीं किया और अपने साथियों को भी सन्देश दे दिया कि वे उन्हें कितना स्नेह करते हैं |

औरंगजेब ने जब जजिया कर लगाया तो सन 1669 में शिवाजी ने उसे एक पत्र लिखा | उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं – “अगर आपका पवित्र ग्रन्थ कुरआन पर विश्वास हो तो उसमें ईश्वर का वर्णन रब-उल-आलमी अर्थात सभी लोगों का ईश्वर – इस रूप में किया गया है | रब-उल-आलमी का मतलब केवल मुसलमानों का ईश्वर नहीं है | मस्जिद या मंदिर में उसकी ही पूजा होती है | किसी के धर्म को दोष दिया तो इसका मतलब जो ईश्वर ने बताया है, उसे नकारना है | लोगों पर जुल्म हुआ तो वे दुखी होंगे, इस दुःख से धुआँ निकलेगा, इस धुएँ से आपका शासन जितना जलेगा, उतना शायद प्रत्यक्ष आग से भी नहीं जलेगा | गरीब लोग कमजोर होते हैं | उन्हें दुखी करने में कोई बड़प्पन नहीं है |”
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