राजस्थान में अरावली पर्वत पर बसा अनोखा स्थल माउंट आबू
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माउंट आबू राजस्थान में अरावली पर्वत पर बसा अनोखा स्थल है। यहां एक और प्रकृतिक सुंदरता है तो दूसरी ओर आध्यात्मिक शांति। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वही स्थल है, जहां महान ऋषि वशिष्ठ रहा करते थे। इसे ऋषियों-मुनियों का आवास स्थल माना जाता है। यह राजस्थान के राजपूत नरेशों का गर्मियों का स्वास्थ्यवर्धक पर्वतीय स्थल था।
माउंट आबू से बहुत-सी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वही स्थल है, जहां महान ऋषि वशिष्ठ रहा करते थे। कहा जाता है यहीं भगवान राम ने अपने दोनों भाइयों समेत शिक्षा ली थी। भगवान राम से जुड़े कई ऐतिहासिक प्रमाण यहां आज भी मौजूद है। माउंट आबू के घने जंगलों में बसा महर्षि वशिष्ठ आश्रम भगवान राम अपने तीनों भाइयों के साथ इसी गुरुकुल में पढे। उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से इसी आश्रम में शिक्षा दिक्षा ली थी।इस आश्रम में जाने के लिए आपको 450 सीढ़ियों से नीचे उतरना होता है।इसकी ऊंचाई समुद्रतल से 1206 मीटर यानी 3970 फीट है और साढे पांच हजार साल पुराना यह ऐतिहासिक मंदिर है। भगवान राम के साक्ष्य यहां कोने कोने में मौजूद है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवता इस पवित्र पर्वत पर भ्रमण करते हैं। कहा जाता है कि महान संत वशिष्ठ ने पृथ्वी से असुरों के विनाश के लिए यहां यज्ञ का आयोजन किया था। जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूजनीय तीर्थस्थल बना हुआ है।
एक कहावत के अनुसार आबू नाम हिमालय के पुत्र आरबुआदा के नाम पर पड़ा था। आरबुआदा एक शक्तिशाली सर्प था, जिसने एक गहरी खाई में भगवान शिव के पवित्र वाहन नंदी बैल की जान बचाई थी।
प्राकृतिक सुषमा और विभोर करनेवाली वनस्थली का पर्वतीय स्थल 'आबू पर्वत' ग्रीष्मकालीन पर्वतीय आवास स्थल और पश्चिमी भारत का प्रमुख पर्यटन केंद्र रहा है। यह स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के साथ एक परिपूर्ण पौराणिक परिवेश भी है। यहाँ वास्तुकला का हस्ताक्षरित कलात्मकता भी दृष्टव्य है ।
आबू का आकर्षण है कि आए दिन मेला, हर समय सैलानियों की हलचल चाहे शरद हो या ग्रीष्म। दिलवाड़ा मंदिर यहाँ के प्रमुख आकर्षण हैं। माउंट आबू से १५ किमी.दूर गुरु शिखर पर स्थित इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं। दिलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियाँ भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। दिलवाड़ा के मंदिरों से ८ किमी. उत्तर पूर्व में अचलगढ़ किला व मंदिर तथा १५ किमी.दूर अरावली पर्वत शृंखला की सबसे ऊँची चोटी गुरु शिखर स्थित हैं। इसके अतिरिक्त माउंट आबू में नक्की झील, गोमुख मंदिर, माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य आदि भी दर्शनीय हैं।
अर्बुदा देवी का मंदिर (अधर देवी मंदिर) :
राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन माउंटआबू माता अर्बुदा देवी के नाम पर है। दरअसल अर्बुदा का अपभ्रंश है आबू जिसके नाम पर माउंटआबू पर पड़ा। अर्बुद पर्वत पर अर्बुदा देवी का मंदिर है जो देश की 52 शक्तिपीठों में छठा शक्तिपीठ है। अर्बुदा देवी देवी दुर्गा के नौ रूपों में से कात्यायनी का रूप है जिसकी पूजा नवरात्र के छठे दिन होती है। समुद्र तल से साढ़े पांच हजार फीट ऊंचा अर्बुद पर्वत यानि अर्बुदांचल पर अर्बुदा देवी का मंदिर स्थित है। यह शक्तिपीठ देश की 52 शक्तिपीठों में से छठा है जहां भगवान शंकर के तांडव के समय माता पार्वती का अधर यही गिरा था।इसलिए इसे अधर देवी के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर साढ़े पांच हजार साल पुरानी है। शहर से लगभग 3 किलोमीटर उत्तर में विशाल चट्टान को काट कर बनाया गया है अधर देवी का मंदिर। करीबन 365 सीढ़ियां चढ़कर जाने के बाद आपको मंदिर के सबसे छोटे निचले द्वार से जाने के लिए झुक कर गुजरना पड़ता है। यह पर्यटकों का प्रिय स्थल है।
गुरु शिखर :
शहर से 15 किलोमीटर दूर राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन की यह सबसे ऊंची चोटी है। गुरु शिखर समुद्र स्तर से लगभग 1722 मीटर ऊपर बसा हुआ है। इस चोटी पर चढ़ने का और वहां से नजारे देखने का अपना ही लुत्फ है। गुरु शिखर अरावली पर्वत शृंखला की सबसे ऊँची चोटी है। गुरु शिखर से कुछ पहले विष्णु भगवान के एक रूप दत्तात्रेय का मंदिर है। शिखर पर एक ऊँची चट्टान है और एक बड़ा-सा प्राचीन घंटा लगा है। गुरु शिखर शहर से 15 किलोमीटर दूर है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 1722 मीटर है । यहां पहुंच कर एसा लगता है जैसे बादलों के पास पहुंच गए हों ।यहां की शान्ति मन को छू लेती है । यहां से नीचे का नजारा बेहद सुंदर दिखता है । माउंटआबू में स्थिति गुरुशिखर-श्री दत्तात्रेय की तपस्या स्थली है जहां उन्होंने साढ़े पांच हजार साल तपस्या की थी।यहां भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय का एक छोटा सा मन्दिर बना है जिसके पास ही रामानंद के चरण चिन्ह बने हुए हैं । मन्दिर के पास ही एक पीतल का घंटा लगा हुआ है जो माउंट आबू को देख रहे संतरी का आभास कराता है ।
दिलवाड़ा जैन मंदिर :
जैनियों के पहले तीर्थंकर (जैनी प्रचारक) आदिनाथ को समर्पित दिलवाड़ा मंदिर परिसर में उत्कृष्ट नक्काशीवाले संगमरमर के 2 विशाल मंदिर शामिल हैं। मध्य में स्थित मंदिर में आदिनाथ की प्रतिमा स्थापित है। यहां वर्ष भर जैन धर्मावलंबियों के अलावा अन्य धर्मालुओं का आना-जाना लगा रहता है। दिलवाड़ा मंदिर पाँच मंदिरों का एक समूह है।इतिहास के लिहाज से यह मंदिर बहुत पुराने हैं । इसकी एक चीज जो सबसे खूबसूरत है वह है मंदिरों के लगभग 48 स्तम्भों में नृत्यांगनाओं की बनी आकृतियां जो सबको अपनी और आकर्षित करती हैं । दिलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियां मंदिर निर्माण कला का उत्तम उदाहरण हैं ।
रघुनाथ मंदिर :
माउंटआबू में शहर के बीचोबीच है सर्वेश्वर रघुनाथ मंदिर। नक्की झील के पास रघुनाथ जी का मंदिर है। इसमें रघुनाथ जी की खूबसूरत प्रतिमा है। यह 14वीं शताब्दी में हिंदुओं के जाने-माने प्रचारक श्री रामानंद द्वारा प्रतिष्ठित की गई थी। माउंटआबू के सर्वेश्वर रघुनाथ मंदिर में भगवान राम की 5,500 साल पुरानी स्वयंभू मूर्ति है। दुनिया भर में रघुनाथ यानि भगवान राम की यह इकलौती मूर्ति है जहां भगवान राम अकेले है। यहां रघुवर (राम) के साथ न तो उनकी सिया (सीता) और न ही उनके भाई लक्ष्मण की मूर्ति है।
गौमुख मंदिर :
यहां के गौमुख मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको घाटी में 750 सीढ़ियां चढ़नी नहीं बल्कि नीचे उतरनी पड़ती हैं। माउंट आबू के नीचे आबू रोड की तरफ संगमरमर की गाय के मुंह से एक छोटी नदी बाहर आती है और इस मंदिर का नाम इसी पर पड़ा है। वहां शिव के वाहन नंदी बैल की संगमरमर की एक प्रतिमा भी है। कहा जाता है कि यहां का अग्नि कुंड भी वशिष्ठ मुनि ने बनाया था। वशिष्ठ की मूर्ति के एक तरफ राम, तो दूसरी तरफ कृष्ण की प्रतिमा है।
सनसेट पॉइंट :
माउंट आबू के पर्यटन कार्यालय से 1.5 किलोमीटर दूर सनसेट पॉइंट है, जो कि बहुत लोकप्रिय है। यहां सूर्यास्त के दृश्य को देखने के लिए हर शाम भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं। चाहें तो आप यहां घोड़े से भी जा सकते हैं। यहां के रेस्तरां और होटलों में लोगों की भीड़ रहती है।
संग्रहालय और कला वीथिका :
इस संग्रहालय की आकर्षक वस्तुओं में छठी शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक की देवदासियों और नर्तकियों की नक्काशी की हुई श्रेष्ठ मूर्तियां हैं। यह संग्रहालय दो भागों में बंटा हुआ है।
पहले भाग में स्थानीय आदिवासियों की झोपड़ी का चित्रण है। इसमें उनकी सामान्य जीवन शैली दर्शाई गई है। उनके हथियार, वाद्ययंत्र, महिलाओं के जेवर, कान के झुमके और परिधान वगैरह यहां रखे गए हैं।
दूसरे भाग में नक्काशी की कुछ वस्तुएं रखी गई हैं। और राग-रागनियों पर आधारित कई लघु चित्र, सिरोही की कई जैन मूर्तियां, दरम्याने आकार की ढालें रखी गई हैं।
कैसे पहुंचे :-
रेल मार्ग से : आबू रोड पर बने रेलवे स्टेशन से माउंट आबू तक आने तक 2 घंटे का समय लगता है। पश्चिम और उत्तर रेलवे की लंबी दूरीवाली महत्वपूर्ण गाड़ियां यहां अवश्य ठहरती हैं। यह अहमदाबाद, दिल्ली, जयपुर और जोधपुर से जुड़ा है। माउंट आबू की पहाड़ से 50 मील उत्तर-पश्चिम में भिन्नमाल स्थित है।
हवाई मार्ग से : उदरपुर हवाई अड्डा इसके सबसे नजदीक है। यह माउंट आबू से 185 किलोमीटर दूर है। यहां से पर्यटक सड़क मार्ग से माउंट आबू तक जा सकते हैं।
सड़क मार्ग से : माउंट आबू सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यह नेशनल हाइवे नंबर 8 और 14 के नजदीक है। एक छोटी सड़क इस शहर को नेशनल हाइवे नंबर 8 से जोड़ती है। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से माउंट आबू के लिए सीधी बस सेवा है। राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें दिल्ली के अलावा अनेक शहरों से माउंट आबू के लिए अपनी सेवाएं मुहैया कराती हैं। अच्छी सड़कें होने के कारण टैक्सी से भी जा सकते हैं।
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