कश्मीर तथा भारतीय राजनीति - श्रीमती क्षमा कौल

शेख अब्दुल्ला ने भारत के शत्रुओं को 370 की सौगात दी तो उसका बेटा फारुख अब्दुल्ला Autonomy का ग्रन्थ लेकर सामने आया | जब यह विधानसभा में जोरशोर से पारित हुआ, उस समय NDA की सरकार थी | किन्तु उसके बाद यह संसद द्वारा ठुकरा दिया गया | लेकिन संसद तक इस पुलिंदे का पहुंचना भी बेहद भयानक और आश्चर्यजनक बात है | स्वयं देश के अहित में धाराएं और लेख संसद के पटलों पर रखे जाते हैं, ऐसा आत्मघाती है हमारा लोकतंत्र, कार्यपालिका या संसदीय पद्धति | 

कश्मीरी हिन्दुओं का Genocide हुआ, यह संविधान और संसद की असफलता है | उनकी व्यर्थता को सिद्ध करता है | अलगावबाद प्रोत्साहित होकर पनप रहा है, यह संविधान की कमजोरी है, जिसने एक भूखंड के लोगों में यह दम भर दिया कि वे एक अलग अस्मिता हैं | भारतीय संविधान कश्मीर में भारतीयता की रक्षा नही कर पाया, मूल कश्मीरी हिन्दू जिनकी सांस्कृतिक धारा इतिहास पूर्व से है, उनकी अस्मिता की रक्षा कर नहीं पाया | 

1996 में भारतीय संसद में एक सशक्त संकल्प पारित हुआ कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है | इसमें अगर कोई असमाप्त काम है, तो वह है, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस प्राप्त करना | जब कारगिल का युद्ध हुआ, वह पाकिस्तान द्वारा युद्ध विराम का खुला उल्लंघन था | अतः वही स्वर्णिम अवसर था, जब उपरोक्त संकल्प के अधूरे काम को पूरा किया जा सकता था | हमारे राष्ट्र राज्य ने उस समय भी ढीलापन ही दिखाया | युद्ध हम सैनिकों के कारण जीते | इससे यह भी सिद्ध होता है कि भारतीय संसद में इस प्रकार के जो भी प्रस्ताव पारित होते हैं, उनमें राष्ट्र की सम्मान वापसी, दृढ़ता तथा संप्रभुता की रक्षा जैसी पदावलियाँ कोरी बातें ही होती हैं, उनका वस्तुतः कोई अर्थ नहीं होता | वे सत्य निष्ठा से पारित नहीं होते | यह भारत राष्ट्र एवं भारतीय जनता का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है |

पकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर का बड़ा हिस्सा भारत विरोधी गतिविधियाँ चलाने के लिए चीन को लीज पर दे दिया है | जहां से वह लद्दाख में घुसपैठ कर रहा है | अब भारतीय राजनीति का यह भी स्वरुप देखिये कि लद्दाख की जनता भारतीय है, किन्तु वहां होने वाले विकास कार्य चीनी सैनिक आकर रुकवाते हैं | चीनी सशस्त्र सैनिक लद्दाख के एक गाँव दमचौक तक पहुँच गए थे | दूरदर्शन पर गाँव का एक बासिन्दा सर पीट कर गुहार लगा रहा था कि उसे गाँव छोड़ने के लिए विवश होने की स्थिति से बचाएं | पर भारतीय राजनीति को क्या कहें ? बैसे यह चार वर्ष पूर्व के उन दिनों की बात है, जब हमारे सैनिकों के सिर काटे जाने का उत्सव पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को बिरयानी खिलाकर मनाने वाले सलमान खुर्सीद विदेश मंत्री थे |

प्रदेश सरकार तो लद्दाख के भारतीय मन के लोगों की रक्षा करने से रही | वहां के लोग भारत के साथ हैं, पर भारतीय राजनीति को न भारतीय क्षेत्र की पड़ी है, न भारतीय लोगों की | लोग कहते हैं कि अब फर्क पडेगा, मगर हमारे देखने और अनुभव में कुछ बैसा नहीं आता | वास्तविकता यह है कि आज भी सरकार गद्दार लोगों को ही पाल रही है तथा राष्ट्र के निष्ठावान लोगों को उपेक्षित कर रही है |

अब जम्मू को बुरी तरह से घेरा जा रहा है | वहां जनसांख्यकीय संतुलन तेजी से परिवर्तित हो रहा है | सरकारी पार्कों सहित कदम कदम पर मस्जिदों का निर्माण हो रहा है | दो संविधान के पाटों में कश्मीर के हिन्दू पिस चुके, अब जम्मू के हिन्दुओं की बारी है | भारतीय राजनीति का यह स्वरुप भी देखिये कि 2002 में घटित गुजरात की घटनाओं को नरसंहार बताकर संसद गुंजा दी गई, किन्तु सात लाख कश्मीरी हिन्दुओं को Genocide के अंतर्गत लाने में तथाकथित हिन्दू हितैषी पार्टी ने भी रोका | इस समय के वित्त मंत्री अरुण जेटली को हमारी भीषणतम त्रासदी को genocide कहने में एतराज था |

मित्रो क्या आप कभी अपने मन की अतल गहराईयों में इस बात पर चिंतन करते हैं कि ऐसा क्यों ? भारत के भीतर ही हिन्दू शरणार्थी बनकर अपनी जान बचाने के लिए मारा मारा क्यों फिर रहा है ? क्यों उससे उसकी भूमि, उसका आसमान छीना गया ? जब इस प्रश्न का उत्तर हिन्दूस्तान में हिन्दू होना मिलता है, तब आपको कैसा लगता है ? क्या आपके रक्त में, मस्तिष्क में, हृदय में, मन में कोई खलबली मचती है ? और सच यह है कि जब हम आये तो हमारी हिन्दुओं के बीच ही घोर उपेक्षा हुई | भीषण उपेक्षा | यह भी जाना कि उन्हें हमारा समाचार ही नहीं | जिस जिसको समाचार है, वे सबकेसब सेक्यूलर हैं और हमसे ऐसे व्यवहार कर रहे हैं, जैसे हम अस्पृश्य हों | 

यहाँ हमने जाना कि जिन हिन्दुओं के भीतर हम अपने लिए सहानुभूति और संवेदना की अपेक्षा करते हैं, वे स्वयं जातिवाद के जहर में सने हैं | क्या हिन्दू इतना अभिशप्त है कि हम कश्मीरी हिन्दू जोकि अद्भुत रूप से एक जातिविहीन हिन्दू समाज है, जहां अस्पृश्यता, जातिवादी विषमता लेशमात्र भी नहीं | वहां मोची भी पंडित है, कुम्हार और लोहार भी पंडित है | हर हिन्दू पंडित है | उस हिन्दू के अद्भुत मॉडल को दूसरे मजहब का आतंक लील रहा है | क्यों न हम कश्मीर का हिन्दू मॉडल पूरे देश में लागू कर एक संगठित और एकत्व से भरा सशक्त समाज के निर्माण की दिशा में प्रयास करें ?

कैसी राजनैतिक व्यवस्था है हमारी ? क्या आप स्वयं सोचकर आश्चर्यचकित नहीं हो रहे कि पाकिस्तान परस्त मुफ्ती सईद इस देश का गृहमंत्री बन जाता है ? यह कौन लोग थे, जिन्होंने इतनी बड़ी सुरंग बनाई और इस देश की सुरक्षा से जुड़े सबसे अहम मंत्रालय, गृह मंत्रालय तक एक पाकिस्तानी एजेंडे का व्यक्ति पहुँच गया ? और सबसे पहला काम उस व्यक्ति ने क्या किया ? कश्मीर से लाखों हिन्दुओं का जिनोसाईड करवाया | अपनी बेटी के अपहरण का नाटक रचवा का खूंखार आतंकवादियों को छुड़वाया | कहाँ थे भारत के लोग उस समय ? जनता और राजनीति के बीच इतनी गहरी खाई थी या फिर सेक्यूलर चरित्र का भयावह सम्मोहन ? क्या मुफ्ती मोहम्मद सईद को इस अपराध के लिए जेल की सलाखों के पीछे नहीं पहुंचाना चाहिए था ? उसपर पूरी कौम का सफाया करने का आपराधिक मुक़दमा नहीं चलना चाहिए था ? क्या यह पता नहीं लगाया जाना चाहिए था कि मुफ्ती ने कैसे भारतीय राजनीति में घुसकर भारत को खतरे में डाल दिया था ? 

आब आज की परिस्थिति देखिये, जिसने हमें बर्बाद किया, कश्मीर में आतंक को शक्तिशाली किया, कश्मीर को नष्ट किया, उसके साथ भारत हितैषी पार्टी के लोग गले मिलकर राज्य स्थापित करते हैं | तथाकथित कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में वे सब बातें निकाल फेंकते हैं, जिनके चलते जनता भाग भाग कर बड़ी आशा से उन्हें वोट देने के लिए गई थी | 

क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से आये हिन्दू शरणार्थी, आज भी शरणार्थी बनकर जी रहे हैं ? वे भारत के नागरिक हैं, किन्तु राज्य के नागरिक नहीं | प्रदेश सरकार उन पर बराबर नजर रखे हुए है, कि कहीं वे नागरिकता न प्राप्त कर लें | वे कश्मीर भाग के हिन्दू हैं, किन्तु धारा 370 के चलते वे अपना घर भी नहीं ले पा रहे हैं, वोट नहीं दे पा रहे हैं | यह एक भयानक षडयंत्र है कि अंततः इन्हें जम्मू भी छोड़ना पडेगा | हर चुनाव में राष्ट्रीय पार्टी आकर इन्हें आश्वासन का झुनझुना पकडाती हैं कि इनकी समस्या अब हल होगी, तब हल होगी | इस बार के चुनाव में आशाओं का ज्वार बहुत अधिक ऊंचा था | लेकिन दो विपरीत ध्रुवों की पार्टियों के गठबंधन को देखकर उतनी ही निराशा हुई | उस कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में से धारा 370 पर चर्चाएँ (हालांकि यह अभी तक भी केवल चर्चाओं तक ही सीमित थी), कश्मीरी हिन्दुओं की वापसी, पुनर्वास और 1947 के हिन्दू शरणार्थियों का पुनर्वास तथा प्रदेश की नागरिकता जैसे गंभीर विषय गायब हैं |

अगर हैं तो वही बातें, जिनसे हिन्दुस्तानियों का खून खोले | जैसे आतंकवादियों की रिहाई | ये जो कहा जा रहा है कि 120 व्यक्तियों के कातिल मसर्रत आलम को दोबारा गिरफ्तार किया जाएगा, सब ड्रामा है, झूठ है | अफस्मा को हटाना भी एजेंडे में शामिल है, जो कि खतरनाक है | राजतरंगिणी के अद्वितीय भाष्यकार डॉ. रघुनाथसिंह जी लिखते हैं कि यदि कश्मीर अरक्षित हो गया तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा | कश्मीर के भीतर जो सांस्कृतिक संहार का कार्यक्रम चला, उसे भारतीय राजनीति अभी भी सही कदम उठाकर रोक सकती है |

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