जूनागढ़ की एक अन्य पन्नाधाय, ऐसी कहानी जो बहुत कम लोग जानते है!

आप सभी मेवाड़ की पन्नाधाय की कहानी तो जानते ही है जिसने राजकुमार उदयसिंह की जान बचाने के हेतु अपने स्वयं के पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था ! लेकिन क्या आप इतिहास में दर्ज एक ऐसी अन्य कहानी को जानते है जिसमे एक माँ ने पन्नाधाय का उदाहरण दुहराया ! आइये जानते है एक ऐसी कहानी जो बहुत कम लोग जानते है !

यह बात उन दिनों की है जब जूनागढ़ के राजा राव महिपाल सिंह थे ! राजा राव महिपाल सिंह साहसी एवं प्रजावत्सल थे ! उनकी न्यायप्रियता एवं कुशल प्रशासन की ख्याति अन्य राज्यों में भी फैल चुकी थी ! एक समय की पाटन के राजा ने जूनागढ़ पर आक्रमण कर दिया ! राव महिपाल सिंह अपने सैनिकों के साथ शत्रुसेना का सामना करने की लिए युद्ध भूमि में पहुँचे ! संख्याबल में अधिक शत्रु सेना का राजा राव महिपाल सिंह ने वीरता का परिचय देते हुए डटकर सामना किया परन्तु वह शत्रुसेना पर विजय न प्राप्त कर सके !

राजा महिपाल सिंह जो की अपनी सेना के प्रधान नायक थे एवं उनके मरते ही जूनागढ़ के सैनिकों का जोश समाप्त हो गया ! तत्पश्चात बिना राजा के वे टिक नहीं सके और भाग खड़े हुए !

शत्रुसेना विजय की पताका फहराती जूनागढ़ के राजमहल पहुँच गयी, राजमहल में अल्पवयस्क राजकुमार नौघण और महारानी महामाया की रक्षा हेतु मंत्री धर्मदेव ने प्राणों की बाजी लगाकर राजकुमार और महारानी को गुप्तमार्ग द्वारा महल से बाहर निकाला एवं अपने साथ वह उन्हें लेकर गिरनार के जंगल में पहुँच गया ! गिरनार के जंगलों में बसे एक छोटे से गाँव विजयपुर में उसने दोनों को एक अहीर रामनाथ के मकान में छिपा दिया !

अहीर रामनाथ गायो का दूध बेचकर अपनी गुजर बसर करता था ! उसने मंत्री धर्मदेव को राजकुमार नौघण और महारानी की रक्षा करने का वचन दिया ! महामंत्री वहाँ से रवाना हुए एवं दुर्भाग्य से बीच में ही शत्रुसेना के हाथों में फंस गए ! सैनिक उन्हें अपने सेनापति के पास ले गए ! सेनापति ने उनसे पूछा -बताओ राजकुमार नौघण और महारानी कहाँ पर है ?

परन्तु महामंत्री ने बताने से इंकार कर दिया ! शत्रुसेना के सेनापति ने उन्हें प्रलोभन दिए और न बताने पर मार डालने की धमकी दी, परन्तु महामंत्री अपना कर्तव्य पालन करते रहे तथा तनिक भी विचलित नहीं हुए ! अंत में सेनापति ने उन्हें तलवार से मौत के घाट उतार दिया ! महामंत्री धर्मदेव आखरी दम तक अपने कर्तव्य पथ से नहीं हटे !

एक दिन जूनागढ़ के सेनापति को ज्ञात हुआ कि राजकुमार नौघण और महारानी महामाया गिरनार के जंगलों में स्थित एक गाँव में किसी अहीर के यहाँ छिपे है ! वह तुरंत अपने सैनिकों के साथ वहाँ गया और गाँव को घेर लिया ! सेनापति ने अहीर रामनाथ को राजकुमार और महारानी को अपने सुपुर्द करने को कहा !

अहीर रामनाथ ने ऐसा करने से इनकार कर दिया ! सेनापति ने आदेश दिया कि अहीर को पकड़कर खम्भे से बाँध दो और उनके घर के कोने कोने को छानकर राजकुमार का पता लगाओ ! रामनाथ को तुरंत अपने धर्म और वचन का स्मरण हो आया !उसने अपनी पत्नी को बुलाया और नेत्रों की भाषा में ही अपनी पत्नी को कुछ समझाया तत्पश्चात जब उसे विश्वास को गया की पत्नी सब कुछ समझ गयी है और उनके मन में अपने धर्म के पति गहरे भाव है, तो उसने स्पष्ट शब्दों में पत्नी को आदेश दिया कि - जा कर राजकुमार नौघण को शीघ्र यहाँ ले आओ ! चतुर अहीर की पत्नी ने न केवल पति का वास्तविक संकेत समझ लिया था अपितु, स्वयं उसके भीतर भी राजभक्ति की लहरे हिलोरे लेने लगी थी ! उसने अपने इकलौते पुत्र को राजकुमार के वस्त्र पहनाकर सेनापति के समक्ष उपस्थित किया !

बलिदानी माता- पिता का बेटा भी बलिदान की भावना से ओत−प्रोत था ! जब सेनापति दस वर्षीय अहीर पुत्र से उसका परिचय पुछा तो उसने अपना परिचय राजकुमार नौघण के रूप में दिया ! क्रूर सेनापति ने उसी क्षण माता-पिता के सामने उस वीर बालक का वध कर डाला, अपने इकलौते लाल को स्वयं अपनी आँखों के सामने मौत के मूंह में जाता देख भी माता -पिता मूक बने रहे, उनकी आँखों से एक आंसू भी नहीं गिरा मात्र इस लिए की ऐसा हुआ तो कहीं सेनापति को उन पर शक न हो जाए !

सेनापति व उसके सैनिक जब चले गए तब अहीर व उसकी पत्नी के धैर्य का बाँध टूट गया ! वे दहाड़े मारकर रोने लगे ! छाती से चिपटाया पुत्र का शव वे किसी भी रूप में दूर नहीं कर पा रहे थे, परन्तु वे उस बात से गर्वित थे कि उन्होंने अपने देश के राजकुमार की सत्यधर्म से रक्षा की !

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