तुम कौन हो - स्व. सुमंत मिश्रा

उषा के गाल पर
लाज की लाली बिखराते
स्वर्णाभ किरणों से
कर देते
प्रकृति को अनावृत्त
निखर पड़ता
अप्रतिम सौंदर्य
ताप देकर प्राणियों के
उर्जस्वित करते मनों को
संचरित करते
प्रबल जीनें कि आश
साँझ होते ही
विरह व्याकुल
प्रणयी बन
समा लेते
अंकपाश में
प्रकृति को
कवि हो पुरुष हो
या कि ईश्वर
स्रष्टा
तुम कौन हो

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