ईश्वर से प्रेम – पर ये प्रेम है क्या ? क्या है प्रेम की परिभाषा ?




सबसे पहले तो हमें अंग्रेजी के “LOVE” और प्रेम के अंतर को समझना होगा | अमेरिकन हेरिटेज डिक्शनरी " में प्रेम की जो परिभाषा दी गई है, उसके अनुसार “पारिवारिक या व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर किसी अन्य व्यक्ति के प्रति गहन स्नेह" को LOVE कहा गया है । पश्चिमी धारणा के अनुसार सामान्यतः यह "तीव्र स्नेह" दूसरे व्यक्ति के प्रति यौन आकर्षण की वजह से उपजता है । हम किसी को LOVE इसलिए करते हैं, क्योंकि वह हमें अच्छा लग रहा है, और इसी प्रकार दूसरा हमें LOVE इसलिए कर रहा है, क्योंकि हम उसे आकर्षित कर रहे हैं । भारतीय दृष्टिकोण से प्यार की यह शब्दकोशीय परिभाषा अपूर्ण है | क्योंकि इस परिभाषा में शर्त है |

सशर्त प्यार का तात्पर्य है कि; हम केवल उन्हें प्यार कर सकते हैं, जो हमारी किसी अपेक्षा को पूर्ण करते हों | दूसरे शब्दों में, हम किसी से इसलिए प्यार करते हैं, क्योंकि वह सुंदर हैं, या वह मेरी अच्छी तरह से देखभाल करता है, या वह बहुत हंसमुख है | हमारा इस प्रकार का प्यार न केवल सशर्त होता है बल्कि चंचल भी | इसमें बदलाव की पूर्ण संभावना है | आज हम किसी को प्यार कर रहे हैं, तो कल वह प्यार समाप्त भी हो सकता है | एक को छोड़कर हम किसी दूसरे को प्यार करने लग सकते हैं | प्यार की इसी परिभाषा के कारण आज समाज में तलाक की दर बढ़ रही है |

भारतीय परंपरा में तो शादी जन्म जन्मान्तरों का सम्बन्ध माना गया, एक व्रत के रूप में स्वीकार किया गया | यहाँ फोन पर तलाक तो दूर की बात है, पति की मृत्यु के बाद अगले जन्म में मिलने की खातिर अग्निस्नान करने वाली पत्नियों के उदाहरण भी इतिहास में मौजूद है | यह प्यार की पराकाष्ठा है | मौत भी हमें जुदा नहीं कर सकती, यह भावना है | 

ईश्वर के प्रति प्रेम तो इस प्यार से भी बहुत आगे की चीज है | "बिना शर्त" प्यार को समझाने के लिए हमें माता-पिता द्वारा अपने बच्चों के प्रति प्रेम को समझना होगा | समय अच्छा हो या बुरा, बच्चे अच्छे हों या बुरे, माता-पिता का स्नेह उनके प्रति कायम रहता है | हो सकता है के वे हमारी उम्मीदों पर खरे न उतरें, लेकिन उनके प्रति प्यार कम नहीं होता | बल्कि उल्टा होता है | अगर हमारे तीन बच्चे हैं, उनमें जो जितना कमजोर, माता=पिता का प्यार उसके प्रति उतना ही ज्यादा | हम किसी दूसरे के सुंदर, सुधड़ और बुद्धिमान बच्चे को अपने बच्चे जैसा प्यार कर पाते हैं क्या ? 

भगवान के प्रति प्यार को समझने के लिए तो प्यार की समस्त मानवीय परिभाषायें अपूर्ण हैं । वह परमपिता जो सदैव हम पर अकारण करुणा करता है | अगर मन की आँख खुली हो तो जिसकी कृपा वर्षा हम प्रति दिन, प्रति क्षण, सदैव अनुभव कर सकते हैं | हमारी समस्त बुराईयों के बाद भी जिसका प्रेम हम पर कभी कम नहीं होता, हम उससे किस परिभाषा के अनुसार “प्रेम” करें ?


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