भारत का स्विट्ज़रलैंड खजियार


देवताओं की प्रिय स्थली – आर्यावर्त यानी भारत ! इस भूमि मे स्थित सुदूर उत्तर मे बसा प्रदेश जिसे देवभूमि भी कहा जाता है यानी हिमाचल प्रदेश ! हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले का एक बेहद खूबसूरत स्थान है खजियार ! समुद्रतल से दो हजार मीटर की ऊंचाई लिए यह स्थल पश्चिम हिमाचल की धौलाधार पर्वत श्रृंखला पर बसा है ! खजियार का नाम यहां स्थित ‘खजी नाग’ के मंदिर के कारण पड़ा माना जाता है ! इस स्थल की भौगोलिक संरचना के कारण इसे ‘भारत का मिनी स्विट्जरलैंड’ भी कहा जाता है ! एक ही स्थान पर झील, चारागाह और वन- इन तीनों पारिस्थितिक तंत्र का होना एक दुर्लभ संयोग की तरह है जो इसकी सुंदरता में और भी निखार लाता है ! खजियार और इसके आस-पास बहुत-सी सुंदर जगहें और भी हैं, जिन्हें घूमे बगैर आपकी यात्रा अधूरी मानी जाती है !

चीड़ और देवदार के ऊँचे-लंबे हरे-भरे पेडों के बीच बसा खजियार दुनिया के 160 मिनी स्विट्ज़रलैंड में से एक है ! यहाँ आकर सैलानियों को आत्मिक शांति और सुकून मिलता है ! अप्रैल के बाद मई की झुलसाने वाली गर्मी से छुटकारा पाना है तो यह स्थान आपके लिए सपनों के शहर जैसा नजर आएगा !

पहाड़ी स्थापत्य कला में निर्मित 10 वीं शताब्दी के यह धार्मिक स्थल खज्जी नागा मंदिर के लिए जाना जाता है ! यहाँ नागदेव की पूजा होती है ! दिल्ली से 560 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान खूबसूरती और हरियाली के मामले में अपना अलग स्थान रखता है। सर्दी के मौसम में यहाँ बेहद ठंड रहती है ! इसीलिए अप्रैल से जून के महीनों में यहाँ आना सबसे ज्यादा अच्छा माना जाता है ! यह शहर अभी भी शिमला या मनाली की तरह पूरी तरह व्यावसायिक नहीं है अतः पर्यटको के लिए अत्यंत ही रमणीय, मनोरम और प्राकृतिक सुषमा से भरपूर है !

जब देवदार के घने वृक्ष आपको यह अहसास दिलाते है कि आप किसी देवस्थल मे देवी देवता बने घूम रहे हैं ! पेड़ों के पीछे से अभी अभी निकले सूर्यदेव की छन छन कर आती रश्मियों से नहाई पहाड़ियों को देखना ऐसा अद्भुत मंजर है जो आपको असीम आनंद की अनुभूति प्रदान करता है ! ऐसा आनंद जो वर्णनातीत है !

चीड़ और देवदार के पेड़ों के बीच स्थित झील पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है ! इस पाँच हजार वर्गफुट क्षेत्रफल में फैली झील को खजियार लेक के नाम से जाना जाता है ! झील के बीचोबीच स्थित टापू पर बैठकर सैलानी घंटों इस प्रकृति की अनुपम धरोहर को निहारते रहते हैं ! 

यही कारण है कि चंबा के तत्कालीन राजा ने खजियार को अपनी राजधानी बनाया था ! गर्मी के मौसम में शाम के समय जब हल्के कपड़ों में टहलने के लिए निकलते हैं तो यहाँ की ठंडी और अजीब से हवाएँ तन और मन दोनों को तरोताजा कर देती हैं ! रोमांच के शौकीन लोग पहाड़ी पगडंडियों पर चलकर ट्रैकिंग का मजा ले सकते हैं ! पर यहां कब किसी जंगली जानवर से सामना हो जाए, कहना मुश्किल है !

सड़क मार्ग से यहाँ आने के लिए चंबा या डलहौजी पहुँचने के बाद मुश्किल से आधा घंटे का समय लगता है ! चंडीगढ़ से 352 और पठानकोट रेलवे स्टेशन से मात्र 95 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खजियार में खज्जी नागा मंदिर की बड़ी मान्यता है ! मंदिर के मंडप के कोनों में पाँच पांडवों की लकड़ी की मूर्तियाँ स्थापित हैं ! मान्यता है कि पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहां आकर ठहरे थे ! 

यहाँ के सार्वजनिक निर्माण विभाग के रेस्ट हाउस के पास स्थित देवदार के छह समान ऊँचाई की शाखाओं वाले पेड़ों को पाँच पांडवों और छठी द्रोपदी के प्रतीकों के रूप में माना जाता है ! यहाँ से एक किमी की दूरी पर कालटोप वन्य जीव अभ्यारण्य में 13 समान ऊँचाई की शाखाओं वाले एक बड़े देवदार के वृक्ष को 'मदर ट्री' के नाम से जाना जाता है ! यहाँ एक बार आने वाला बार-बार आना चाहेगा !

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें