भविष्य की चिंता में दुबले कांग्रेस के दिग्गज - सुरेश हिन्दुस्थानी


कांग्रेस पार्टी की वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावना का विचार करते उसके वरिष्ठ नेताओं की बेचैनी अब साफ़ झलकने लगी है | इसका मुख्य कारण यह है कि कांग्रेस की कमान बहुत जल्दी विरासती पृष्ठभूमि से उपजे राजनेता राहुल गांधी को मिलने वाली है। और इसके साथ ही कांग्रेस में अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय व्यतीत करने वाले नेताओं के सामने जीवन मरण का प्रश्न उपस्थित हो गया है। राहुल जी को नेतृत्व की कमान मिलने की संभावना से जहाँ एक ओर ऐसे नेता तो प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं, जिन्हें अपनी क्षमताओं पर विश्वास नहीं हैं | मजे की बात यह कि ऐसे अस्तित्व हीन नेता कांग्रेस में बहुत हैं, जो संक्षिप्त मार्ग से पद और प्रतिष्ठा प्राप्त करने की लालसा रखते हैं, उनके लिए यह स्थिति बहुत ही मुफीद भी है | 

लेकिन जो नेता अपना राजनीतिक प्रभाव रखते हैं, वे आत्म मंथन के दौर से गुजर रहे हैं । क्योंकि कांग्रेस की भावी राजनीति के बारे में यह कहा जाने लगा है कि जब राहुल गांधी के हाथों में कमान आएगी तब वे ही लोग कांग्रेस को चलाएंगे जो राहुल गांधी के आसपास रहते हैं। और राहुल जी की क्षमताओं का जिस प्रकार उपहास हो रहा, ऐसे में कांग्रेस का भविष्य क्या होगा, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है | 

भारत की राजनीति में कांग्रेस नेता राहुल गांधी आम जनता में अभी तक कोई छाप छोड़ पाने में असमर्थ ही प्रमाणित हुए हैं। इस बात को कांग्रेस के कई नेता दबे स्वर में स्वीकार कर रहे हैं। खुलकर बोल पाने का सामर्थ्य संभवत: बहुत कम कांग्रेसी नेताओं में हैं। इन बहुत कम में अगर पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश का नाम शामिल किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जयराम रमेश ने एक प्रकार से अपना दुखड़ा व्यक्त कर ही दिया। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस में साठ वर्ष से ऊपर के नेताओं का जमाना चुक गया है। अब केवल राहुल गांधी जैसा चाहेंगे, वैसी ही कांग्रेस पार्टी बनेगी। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि भविष्य में राहुल गांधी ही कांग्रेस में प्रमुख भूमिका में रहेंगे। 

यह बात जयराम रमेश ने इसलिए भी कही होगी कि उनको शायद कांग्रेस का भविष्य दिखाई देने लगा है। अगर यही सब कांग्रेस में दिखाई देगा तो यकीन के साथ कहा जा सकता है कि कांग्रेस में दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल, अशोक गहलौत, शीला दीक्षित, मोतीलाल बोरा, सलमान खुर्शीद आदि ऐसे अनेक नेताओं को या तो घर बैठना होगा या फिर उन्हें राहुल गाँधी की जी हजूरी करनी होगी। वैसे यह बात भी मानी जा रही है कि कांग्रेस में जो दिग्गज राजनेता हैं वे सभी समय के अनुसार चलने के लिए महारत हासिल किए हुए हैं। तो ऐसे में यह सभी नेता अपने आपको राहुल का विश्वास पात्र बनने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे।

हालांकि वर्तमान में तो किसी कांग्रेस नेता की हिम्मत नहीं कि वह तमाम खामियों के बाद भी राहुल गाँधी के बारे में कोई विरोधी राय निकाल सके । वह जानता है कि राहुल गांधी के विरोध का परिणाम क्या होगा । ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में केवल जयराम रमेश ही कंपकंपा रहे हों, कांग्रेस में कई ऐसे नेता हैं, जो इसी प्रकार उपेक्षा का दंश भोग रहे हैं। वास्तव में जयराम रमेश की बातों का मतलब निकाला जाए तो यह बात आसानी से समझ में आ सकती है कि कांग्रेस में अब केवल अनुभवहीन नेताओं की ही चलेगी, वरिष्ठ नेताओं को लगभग किनारे लगाने की पूरी तैयारी कर ली गई है। जिसका प्रत्यक्ष दर्शन राहुल गांधी की योजना के मुताबिक बहुत जल्दी ही राजनीतिक पटल पर दिखाई देगा। 

राहुल गांधी के बारे में यह बात सभी को मालूम है कि वे न तो लोकसभा चुनाव में अपना राजनीतिक अस्तित्व बचा पाए और न ही राज्यों के विधानसभा चुनावों में ही अपना राजनीतिक कौशल दिखा पाए। ऐसे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को चिन्ता होना स्वाभाविक ही है। कांग्रेस में आज भी वरिष्ठों की एक लम्बी फौज है, जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत भी कांग्रेस के साथ की और आज भी उसी के साथ खड़े दिखाई देते हैं। जयराम रमेश का यह कहना कि राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष कब बनेंगे, यह कांग्रेस में केवल सोनिया गांधी या राहुल गांधी ही बता सकते हैं। इसका अर्थ भी साफ है कि कांग्रेस में आज कोई नेता कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो, कांग्रेस में चलेगी केवल सोनिया और राहुल की ही। 

राहुल के बारे में एक बात पूरे देश ने मान ली है कि वे देश के महत्वपूर्ण अवसरों पर विदेश घूमने में मस्त रहते हैं। उन्हें देश के बारे में किसी प्रकार की चिन्ता तक नहीं रहती। देश में समस्या के समय भागने की राहुल गांधी की इस आदत से उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता का ही बोध होता है। कांग्रेस के अंदरखाने में यह बात अब खुलकर होती है कि वर्तमान में कांग्रेस महज एक परिवार की पार्टी बनकर रह गई है। कहने को कांग्रेस भले ही बहुत बड़ा राजनीतिक संगठन हो लेकिन सत्य यही है कि यह बहुत बड़ा शब्द कांग्रेस में तो सोनिया और राहुल के सामने बौना ही दिखाई देता है।

वर्तमान में जिस प्रकार से राहुल गांधी को कांग्रेस में नंबर एक पर विराजमान किया जा रहा है, कमोवेश उस तरीके को लोकतांत्रिक कतई नहीं माना जा सकता। केवल सोनिया गांधी के संकेत पर किए जाने सारे निर्णयों से यही बात सामने आती है कि कांग्रेस में सांघिकता का अभाव है। वहां महत्वपूर्ण निर्णयों में संगठन की भूमिका का कोई महत्व नहीं है। ऐसे में आज जयराम रमेश ने मुंह खोला है, भविष्य में कांग्रेस का अन्य कोई वरिष्ठ नेता मुंह खोल दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। 

जैसे जैसे राहुल जी की ताजपोशी का समय नजदीक आता जा रहा है, कांग्रेसी दिग्गजों की घबराहट छुपाये नहीं छुप रही | राहुल का नाम आज न केवल सोशल मीडिया, वरन आम जन में भी हास परिहास का विषय बन गया है | शायद इसी बेचैनी का प्रगटीकरण है माखनलाल फोतेदार द्वारा इंदिराजी की इच्छा बताकर प्रियंका का नाम फिजा में उछालना | लेकिन वे इसलिए भी चिंतित हैंकि प्रियंका को आगे लाने पर उनके साथ नत्थी बाड्रा के बदरा बरस गए तो क्या होगा ? कहीं उलटे लेने के देने ना पड़ जाए ? 

कांग्रेस के लिए इससे बुरा क्या होगा कि बिहार चुनाव में लालू और नीतीश जैसे क्षेत्रीय नेता इस राष्ट्रीय पार्टी के सर्वेसर्वाओं के साथ मंच साझा करने से भी कन्नी काटते दिखाई दे रहे हैं | सचमुच कांग्रेस का राहुकाल चल रहा है | 

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)



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