अनोखा है बिहार का पूर्णिया शहर, यहाँ के लोग करते है 10 भाषाओं में बातचीत

हमारे देश में आमतौर पर किसी एक इलाके में एक या दो मातृभाषाएं मौजूद होती हैं पर किसी एक इलाके में 10 भाषाएं एकसाथ मौजूद हों और बड़ी संख्या में बोली और समझी जाती हों तो ये बड़े अचम्भे की बात होती है ! ऐसी ही भाषाई और भौगोलिक हकीकत है बिहार राज्य के पूर्णिया में ! बिहार का पूर्णिया शहर और यह पूरा प्रमंडल 10 मातृभाषाओं का संगम और समन्वय स्थल है !

इस इलाके में मैथिली, बांग्ला, अंगिका, नेपाली, उर्दू, संथाली, सुरजापुरी, किशनगंजिया, भोजपुरी और मगही भाषा और भाषी दोनों मौजूद हैं ! चूंकि इस इलाके की सीमा नेपाल, बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल, मिथिलांचल, अंग, संथाल परगना से लगी हुई है, इसी कारण नेपाली, मैथिली, बांग्ला, अंगिका, नेपाली, उर्दू, संथाली, भाषाओं का यहाँ प्रभाव दिखाई देता है जबकि सुरजापुरी और किशनगंजिया बोली यहां की स्थानीय पहचान मानी जाती है !

भोजपुरी और मगही भाषी यहां आकर बसे हैं ! बड़ी संख्या में यहां मुसलमान उर्दू और संथाल संथाली भाषा से जुड़े हैं जबकि अधिक भौगोलिक जुड़ाव से यहां ज्यादातर भाषाएं मौजूद हैं ! पूर्णिया प्रमंडल चार जिलों कटिहार-अररिया-किशनगंज-पूर्णिया का इलाका इन 10 भाषाओं से आच्छादित है और ये बिहार और इसकी भाषाई विविधता का एक विशेष क्षेत्र परिचय रखता है !

यहां के भूगोल में जितनी भाषाएं हैं, उतने ही संस्कृति वर्ग के लोग भी यहां बसते हैं ! सबसे बड़ी बात यह है कि हिंदी यहां की सभी भाषाओं के बीच समन्वय करती है ! इस इलाके से हिंदी के साथ-साथ अन्य भाषाओं के साहित्यकार भी होते आए हैं ! इलाके के प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु के लेखन में इन तमाम भाषा-संस्कृति की झलक मिलती है !

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