आज भी कान्हा के होने का अहसास दिलाती श्री बांके बिहारी मंदिर स्थित मूरत


वृंदावन का सबसे आलौकिक और प्राचीन मंदिर है श्री बांके बिहारी मंदिर ! इस मदिर की मान्यता के अनुसार यदि आआपने इस मंदिर के नियमों का पालन नहीं किया तो आपको इसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है ! मंदिर परिसर में कुछ विशेष नियमों का पालन नहीं करते हैं, तो आपकी आंखों की रोशनी भी जा सकती है ! भले ही यह सुनने में यह बेहद अजीब लगता हो परन्तु हर वह इन्सान जिसने यह सजा झेली है इसे सच साबित करते है ! 

लेकिन ऐसा क्यों होता है ? इसी कड़ी में सर्व प्रथम हम जानते है बांके बिहारी के प्रकट होने की कथा !

वृंदावन में बांके बिहारी जी का एक भव्य मंदिर है ! इस मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की एक प्रतिमा है ! इस प्रतिमा के विषय में मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं, इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है !

संगीत सम्राट तानसेन के गुरू स्वामी हरिदास जी भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे ! इन्होंने अपने संगीत को भगवान को समर्पित कर दिया था ! वृंदावन में स्थित श्री कृष्ण की रासस्थली निधिवन में बैठकर भगवान को अपने संगीत से आकर्षित किया करते थे ! भगवान की भक्त में डूबकर हरिदास जी जब भी गाने बैठते तो प्रभु में ही लीन हो जाते ! इनकी भक्ति और गायन से रिझकर भगवान श्री कृष्ण इनके सामने आ जाते ! हरिदास जी मंत्रमुग्ध होकर श्री कृष्ण को दुलार करने लगते ! 

स्वामी जी के अनुयायियों ने एक बार उनसे उनकी साधना को देखने और आनंद लेने के लिए निवेदन किया और कहा कि वे निधिवन में दाखिल होकर उन्हें तप करते देखना चाहते हैं ! अपने कहे अनुसार वे सभी निधिवन के उस स्थान पर पहुंचे भी लेकिन उन्होंने जो देखा वह हैरान करने वाला था ! हरिदास जी श्री कृष्ण की भक्ति में डूबकर भजन गा रहे थे और अचानक उनके सुरों में बदलाव आने लगा और वह गाने लगे – 

'भाई री सहज जोरी प्रकट भई, जुरंग की गौर स्याम घन दामिनी जैसे। प्रथम है हुती अब हूं आगे हूं रहि है न टरि है तैसे।। अंग अंग की उजकाई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसे। श्री हरिदास के स्वामी श्यामा पुंज बिहारी सम वैसे वैसे।।'

वहां स्वामी जी नहीं वरन् एक तेज़ रोशनी थी, इतनी तेज़ मानो सूरज हो और अपनी ऊर्जा से सारे जग में रोशनी कर दे ! इस प्रसंग के बाद ही स्वामी जी के अनुयायियों को उनकी भक्ति और शक्ति का ऐहसास हो गया ! स्वामी जी के निवेदन से ही श्रीकृष्ण और राधा उनके समक्ष प्रकट हुए थे और उन्हें जाते-जाते अपनी एक मूरत सौंप गए ! इस दृश्य को स्वामी जी के सभी भक्तों ने अपनी आंखों से देखा था ! कहते हैं श्रीकृष्ण की मौजूदगी का असर ऐसा था कि कोई भी भक्त अपनी आंखें भी झपका नहीं पा रहा था ! मानो सभी पत्थर की मूरत बन गए हों !

इस तेज से प्रजवलित होकर स्वामी जी ने राधे-कृष्णा से आग्रह किया कि कृपा वे अपने इस रूप को एक कर दें ! यह संसार उन दोनों के इस तेज को सहन नहीं कर पाएगा ! साथ ही वे जाने से पहले अपना एक अंश उनके पास छोड़ जाएं ! स्वामी जी कि इसी इच्छा को पूरा करते हुए राधे-कृष्णा ने अपनी एक काली मूर्ति वहां छोड़ दी, यही मूरत आज बांके बिहारी मंदिर में स्थापित है ! कहते हैं कि जो कोई भी भक्त मंदिर परिसर पर रखी कान्हा जी की इस मूरत की आंखों की ओर अधिक समय तक देखता है वह अपना आपा खोने लगता है ! आज भी इस मूरत की आंखों में उतना ही तेज़ है जो कान्हा की के होने का एहसास दिलाता है !

बांके बिहारी जी की मूर्ति को हर थोड़ी देर में पर्दे से ढक दिया जाता है, आखिर क्योँ ?

एक और कथा जो बहुत मान्य है वृंदावन में वो ये कि बांके बिहारी जी की मूर्ति को हर थोड़ी देर में पर्दे से ढक दिया जाता है ताकि बिहारी जी अपना स्थान छोड़ कर कहीं चले ना जाएं ! कहते हैं कि अगर कोई श्री बांके बिहारी के मुखाविंद को लगातार देखता रहे तो प्रभु उसके प्रेम से मंत्र मुग्ध होकर उनके साथ चल देते हैं इसलिए हर कुछ देर में पर्दा स उनको ढक दिया जाता है ! भगवान भक्तों की भक्ति से अभिभूत होकर या उनकी व्यथा से द्रवित हो भक्तों के साथ ही चल देते है ! बांके बिहारी जी भक्तों की भक्ति से इतना प्रभावित हो जाते हैं कि मंदिर में अपने आसन से उठकर भक्तों के साथ हो लेते हैं, इसीलिए मंदिर में उन्हें परदे में रखकर उनकी क्षणिक झलक ही भक्तों को दिखाई जाती है ! 

पुजारियों का एक समूह दर्शन के वक्त लगातार मूर्ति के सामने पड़े पर्दे को खींचता-गिराता रहता है और उनकी एक झलक पाने को बेताब श्रद्धालु दर्शन करते रहते हैं और बांके बिहारी हैं, जो अपनी एक झलक दिखाकर पर्दे में जा छिपतें हैं ! लोक कथाओं के अनुसार कई बार बांके बिहारी कृष्ण ऐसा कर भी चुके हैं, मंदिर से गायब हो चुके हैं ! इसीलिए ये पर्देदारी की जाती है !
विस्मित से भक्त बता रहे हैं, एक बार राजस्थान की एक राजकुमारी बांके बिहारी जी के दर्शनार्थ आईं लेकिन वो इनकी भक्ति में इतनी डूब गई कि वापस जाना ही नहीं चाहती थीं ! परेशान घरवाले जब उन्हें जबरन घर साथ ले जाने लगे तो उसकी भक्ति या कहें व्यथा से द्रवित होकर बांके बिहारी जी भी उसके साथ चल दिए ! इधर मंदिर में बांके बिहारी जी के गायब होने से भक्त बहुत दु:खी थे ! आखिरकार समझा बुझाकर उन्हें वापस लाया गया ! भक्त बताते हैं कि उन पर यह पर्दा तभी से डाल दिया गया, ताकि बिहारी जी फिर कभी किसी भक्त के साथ उठकर नहीं चल दें और भक्त उनके क्षणिक दर्शन ही कर पाएं, सिर्फ झलक ही देख पाएं !

अपनी तरह का पहला मंदिर जहाँ कान्हा को हौले हौले बालक की भांति दुलार करके उठाया जाता है, नहीं बजाया जाते है घंटे !

भक्त बताते है कि यह मंदिर शायद अपनी तरह का पहला मंदिर है, जहाँ सिर्फ इस भावना से कि कहीं बांके बिहारी की नींद मे खलल न पड़ जाए इसलिए सुबह घंटे नही बजाए जाते बल्कि उन्हें हौले-हौले एक बालक की तरह उन्हें दुलार कर उठाया जाता है, इसी तरह संझा आरती के वक्त भी घंटे नहीं बजाए जाते ताकि उनकी शांति में कोई खलल न पड़े !

बांके बिहारी जी अर्ध रात्री गोपियों संग रासलीला करने जाते है निधिवन 

भक्त बताते है 'यह जानकर शायद आप हैरान हो जाएंगे कि बांके बिहारी जी आधी रात को गोपियों के संग रासलीला करने निधिवन में जाते हैं और तड़के चार बजे वापस लौट आते हैं !' 

विस्फरित नेत्रों से अपनी व्याख्या को वे और आगे बढ़ाते हुए बताते हैं 'ठाकुर जी का पंखा झलते-झलते एक सेवक की अचानक आँख लग गई, चौंककर देखा तो ठाकुर जी गायब थे पर भोर चार बजे अचानक वापस आ गए ! अगले दिन वही सब कुछ दोबारा हुआ तो सेवक ने ठाकुर जी का पीछा किया और ये राज़ खुला कि ठाकुर जी निधिवन में जाते हैं !' तभी से सुबह की मंगल आरती की समय थोड़ा देर से कर दिया, जिससे ठाकुर जी की अधूरी नींद पूरी हो सके !

अकसर भक्तगण कान्हा की बांसुरी की धुन, निधिवन में नृत्य की आवाज़ें आदि के बारे मे किस्से यह कहकर सुनाते हैं कि 'हमे किसी ने बताया है !' ऐसे कितने ही किस्से कहानियां वृंदावन के चप्पे-चप्पे पर बिखरी हुई हैं !'


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