ब्रिटेन में भारत की इज्जत का फलूदा बना रहे देशद्रोही भारतीय |

ब्रिटिश समाचार पत्र द गार्जियन ने एक लेख प्रकाशित क्या हुआ, देश में ट्विटर ट्रेंड हिन्दू तालिबान चल पड़ा | यह निश्चय ही दर्शाता है कि भारत में सबकुछ ठीकठाक नहीं है, और सच में ही हर नागरिक को इस पर विचार करना चाहिए | भारत की जनता को असहिष्णु बताने वाले ये लोग, सरेआम अपना मुंह तभी खोलते हैं, जब इन्हें हिन्दू समाज पर थूकना होता है | इन लोगों में न तो रत्तीभर देशभक्ति है और न ही समाजहित की कोई भावना | अगर है तो केवल निजी स्वार्थ |


इसी की प्रतिध्वनी है एक भारतीय मूल के कांग्रेस समर्थित व्यक्ति अनीश कपूर द्वारा द गार्जियन में लिखा गया यह लेख | जरा विचार कीजिए कि ये महाशय क्या क्या लिख रहे हैं देश और देश के चुने हुए नेता के विषय में और वह भी उस समय जब प्रधानमंत्री ब्रिटेन के दौरे पर हैं | इनका उद्देश्य केवल यह है कि केमरन सरकार भारत के साथ व्यापारिक समझौते न करे | यह लेख कितना देश हित में है जरा विचार करें -

भारत एक हिंदू तालिबान द्वारा शासित है - अनीश कपूर

हिंदूओं के देवता विष्णु के अनेक अवतार हैं, उनमें से कई मानव अवतार भी हैं । ऐसा प्रतीत होता है मानो यह नवीनतम अवतार नरेंद्र मोदी हो। पूरे भारत में दक्षिणपंथी हस्तकों द्वारा “अच्छे दिन आने वाले हैं” बताकर एक आदमी की यही छवि बनाने का प्रयत्न हुआ । लेकिन इस प्रबुद्ध और मजबूत इंसान की छवि वाले मोदी के नेतृत्व में हिंदू प्रभुत्व की भयावह और तीव्र वास्तविकता छुपी हुई है ।

यह सर्वविदित है कि देश में 500 मिलियन से अधिक सामाजिक और धार्मिक अल्पसंख्यक हैं और यह विविधता गंभीर खतरे में है। मोदी के शासन को प्रभावी ढंग से सहन किया जा सकता था, अगर वह उस भगवा चोला पहने, हिंसक और अनुशासित सेना को प्रोत्साहित नहीं करते, जो गोमांस खाने जैसे खाने पीने के मुद्दों के पीछे 'हिंदू राष्ट्र' की भावना छुपाये हुए है ।

ब्रिटेन में, संभवतः लोग भारत के क्रिकेट कौशल, कश्मीर में हो रहे अत्याचारों या हाल ही में हुई भीषण बलात्कार की घटनाओं से परिचित हो सकते है। लेकिन हम उससे ज्यादा जानना भी नहीं चाहते । भारत की वैश्विक छवि चीन की हास्यास्पद नक़ल जैसी है – आकर्षक व्यापार और निवेश के अवसरों के साथ तेजी से उभरती एक वैश्विक आर्थिक शक्ति । नतीजतन, व्यापारके इस तुरुप के पत्ते के कारण डेविड कैमरून सरकार, हिन्दू अत्याचार की बढ़ती लहर और मानव अधिकार के प्रति दुर्लक्ष्य कर रही है ।

यह सब लंदन पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी के लिए अच्छी खबर है। उन्हें गंभीर रूप से मानव अधिकारों के हनन या व्यवस्थित ठगी के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा। उनका डेढ़ वर्ष का शासनकाल अगर किसी एक बात के लिए चिन्हित किया जाएगा तो वह है, जांच या आलोचना के प्रति अनुदारता । वास्तव में, उनका आर्थिक एजेंडा, भारत के भीतर पनप रहे असंतोष और मानव अधिकारों के हनन के प्रति ब्रिटेन की आँख में धुल झोंकने के लिए है ।

मोदी का ताजा कदम ग्रीनपीस इंडिया का गला घोंटना है | विगत शुक्रवार को संगठन का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है। मानवाधिकारों और पर्यावरण संगठनों के लिए आदर एक देश की लोकतांत्रिक सरकार के लिए अग्निपरीक्षा की तरह है। चिंता की बात यह है कि भारत सरकार ने पर्यावरण प्रतिबंध और अन्य गतिविधियाँ को भारतीय अर्थ व्यवस्था के लिये खतरा बताकर सभी "विदेशी दानदाताओं के धन से संचालित" सेवा कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाने की धमकी दी है | उपद्रवी समूह और विदेशी दुश्मन बताकर नौहजार गैर सरकारी संगठनों का रजिस्ट्रेशन समाप्त किया गया है | 

इतना ही नहीं तो कई भारतीय पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को 'राजद्रोह' के आरोप लगाकर धमकाया और परेशान किया गया है: उदाहरण के लिए, 2002 में जब मोदी गुजरात के मुख्य मंत्री थे, उस समय हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों के लिए न्याय माँगने वाली तीस्ता सीतलवाड़, और छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासियों के खिलाफ पुलिस की बर्बरता को उजागर करने वाले संतोष यादव को सितंबर में गिरफ्तार किया गया तथा हूठे आरोप मढ़े गए । कुछ हफ्ते पहले, शराब की बिक्री पर व्यंग्य गीत गाकर तमिलनाडु राज्य के राज्यपाल की आलोचना करने के कारण एक संगीतकार पर "भारत विरोधी गतिविधि ' का आरोप लगाया गया ।

लोकतंत्र की इस खतरनाक फिसलन से न केवल अल्पसंख्यकों और 'बाहरी' लोग प्रभावित होंगे, बल्कि असहमति का कोई भी आतंरिक स्वर भी खत्म होगा । मैंने अनुभव किया है कि भय की भावना के कारण सामाजिक कार्यकर्ता, कलाकार और बुद्धिजीवी चुप रहने को विवश हो रहे हैं । इसके पूर्व हम यह नहीं जानते थे ।

यह तालिबान का हिन्दू संस्करण नहीं तो क्या है ? एक दोस्त ने मुझे बताया, कि मतभेद रखने वालों का जबरदस्त उत्पीड़न हो रहा है। पिछले महीने मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा और बुद्धिजीवियों पर हमले के बाद, दर्जनों भारतीय लेखकों ने विरोध स्वरुप अपने साहित्यिक पुरस्कार वापस किये ।

भारत 965 मिलियन हिंदुओं और 170 मिलियन मुसलमानों सहित 1.25 अरब लोगों का एक विशाल देश है। मतभेदों के बावजूद, सहिष्णुता की एक लंबी परंपरा के कारण हम हमारे विशाल देश को उठाने में कामयाब रहे हैं । लेकिन सरकार का उग्रवादी हिंदू ब्रांड जिस प्रकार अन्य धर्मों को दरकिनार कर रहा है, उसके कारण गंभीर खतरा पैदा हो गया है । हम में से कई भयभीत हैं, कि पता नहीं क्या होने वाला है ।

ब्रिटेन में हम अपनी जीभ और नहीं काट सकते; बाहर बात करते समय हममें एक जिम्मेदारी का भाव है । और हमें कम से कम दो मोर्चों पर काम करने की जरूरत है: एक तो यह कि हमारी मांग है कि कैमरन मानव अधिकारों की कीमत पर व्यापार समझौते न करें तथा मोदी पर दबाब बनायें कि भारत सरकार के निराशाजनक मानव अधिकार प्रदर्शन को लेकर जवाब दें; साथ ही बढ़ती हिंदू कट्टरता और राज्य के अधिनायकवाद का विरोध करने वाले भारतीय नागरिकों, पत्रकारों और संगठनों का समर्थन करें ।

डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर भारत के विपक्षी समूहों के नेतृत्व में होने वाले प्रदर्शन में आज मैं भी शामिल होऊँगा। मोदी जिन लोगों को चुप रहने को विवश कर रहे हैं, उन लोगों के लिए बाहर बोलना हमारा कर्तव्य है, और हम ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं ।

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