पेरिस हमला: आई एस के खिलाफ अंतिम युद्ध लड़ना ही होगा ! – उपानंद ब्रह्मचारी

Finish ISIS Globally

ओह फ्रांस, ओह रूस, ओह यूरोप! आईएसआईएस द्वारा छेड़े गए जिहाद से निबटने का एक ही उपाय है, और वह है आईएसआईएस को इस दुनिया से समाप्त करना । गैर मुस्लिम दुनिया को इसके लिए एकजुट होना ही होगा । 
13 नवंबर, शुक्रवार को पेरिस में हुए जघन्य हत्याकांड की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने स्वीकार की है, और कहा है कि उसने सीरिया हमलों के जवाब में ये हत्याएं की हैं । प्राप्त समाचारों के अनुसार बहुत ही सुनियोजित तरीके से 'गोलियों की बारिश और बम धमाकों से कम से कम 153 लोग मारे गए हैं | अल्लाहो अकबर के नारों के साथ गोलियां बरसाते, बमबारी करते हत्यारों का मानना थाकि उन्होंने दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए कुरान में बताए गए इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार यह किया है । 

इस्लाम का इतना भयानक, बदसूरत और बर्बर चेहरा सामने आने के बाद गुमराह होने का कोई कारण नहीं है | अब उन्होंने हमारे सामने कोई रास्ता नहीं छोड़ा है । यह केवल पेरिस में या फ्रांस के लोगों पर हुआ हमला नहीं है। स्पष्टतः यह मानवता और सभ्यता परकिया गया हमला है। इसकी गिनती करने की जरूरत नहीं, कि कितने लोग मरे । कितने ईसाई, हिंदू, बौद्ध, यहूदी, नास्तिक या यहां तक कि कुछ मुसलमान भी इस इस्लामी तबाही में मारे गए हो सकते है, इसलिए इस गणना का कोई अर्थ नहीं है । यहां यह समझने की जरूरत है कि अपने इस्लामी राज्य या आईएसआईएस की खिलाफत का लक्ष्य पाने के लिए कैफे, खेल के मैदान, थिएटर हॉल या रेस्तरां में निरपराध आम लोगों को मारने के लिए वे हैवानियत की पराकाष्ठा कर सकते हैं । 

खून का यह सैलाव केवल पेरिस की गलियों में बह रहा हो ऐसा नहीं है, इसे भारत, जर्मनी, ब्रिटेन, जापान, इसराइल, चीन, पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर कहीं भी दुनिया के हर कोने में जहाँ मौक़ा मिलता है, वहां उन्हें इस्लामी जिहाद का उपयोग करते हम देख सकते हैं । अगर हम शान्ति से रहना चाहते हैं तो हमें ठीक से सोचना चाहिए । 

2008 में जिस दिन मुम्बई में 26/11 का आतंकवादी हमला हुआ, उस दिन मैं पुणे में था। पिछली रात मैंने दिल्ली में 13/11 के पेरिस हमले की खबर सुनी । दोनों दृश्य टीवी और इंटरनेट के माध्यम से मैंने देखे । दोनों ही इस्लामिक हमलों में मैंने एक समान डरावनी उत्तेजना का अनुभव किया, एक समान कलाश्निकोव की फायरिंग, एक समान आईईडी विस्फोट, हताहतों की संख्या बढाने के लिए अधिकतम आबादी वाले स्थानों का चयन कर अलग-अलग स्थानों पर एक ही समय एक साथ किये गए हमले, दोनों जिहाद में समानता दिखी । इससे साबित होता है कि उन्होंने स्थायी जिहाद के लिए कितनी गंभीरता से तैयारी की है । लेकिन, हम अभी भी इस जिहाद को रोकने के लिए गंभीर नहीं हैं। अगर गंभीर होते, तो इसी वर्ष 7 जनवरी को पेरिस में ही हुए चार्ली हेब्दो हमले के इतने कम समय बाद यह जेहादी आपरेशन कैसे हो सकता था ? दरअसल हम कट्टरपंथी इस्लाम के खिलाफ कार्रवाई करना भूल जाते हैं और मुसलमानों के लिए हमारे मन में कोमल भावनाएं उमड़ने लगती हैं । 

मुंबई में हुए 26/11 के हमलों और 13/11 के पेरिस हमलों में बहुत थोड़ा अंतर है, मुम्बई में हमलावर पडौस के इस्लामी राज्य पाकिस्तान से आये थे, जबकि पेरिस में हमलावर आई एस प्रभावित सीरिया, लेवांत के इस्लामी राज्य से । लेकिन दोनों ही मामलों में यह महान समानता है कि निश्चित रूप से हमलावर जालिम और रक्तपिपासु जेहादी थे। इसके बाद भी हम यह सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं कि नागरिक समाज के भविष्य और अस्तित्व को प्रभावित करने वाले इस जिहाद को लेकर हम प्रतिक्रिया व्यक्त करें या नहीं ? 

हमारा समाज जरूरत से कुछ ज्यादा ही सभ्य है | हम 'सहिष्णुता', 'दया', 'मानव अधिकार', 'सहिष्णुता' जैसी ढेर सारी विशेषताओं को सर पर लेकर घूमते हैं । लेकिन अगर सच कहा जाए तो, अगर हम असहिष्णुता को सहन करेंगे, हत्यारों के प्रति दया दिखाएँगे, लोगों की खुशियाँ छीनने वालों के मानव अधिकारों की चिंता करेंगे और कट्टर पंथियों को अनुमति देंगे तो इससे पाप ही बढेगा । यही कट्टरपंथी इस्लाम के साथ किया जा रहा है हमें इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। 

मानव अधिकारों और शरणार्थी कल्याण के नाम पर, हम यूरोप में यही कर रहे है। और विशाल संख्या में यूरोप में सफलतापूर्वक प्रवेश करने वाले ये मुस्लिम शरणार्थी भूमि जिहाद का प्रारम्भिक युद्ध जीत चुके हैं । अब आने वाले दिनों में यूरोप को 13/11 के पेरिस जैसे हमले झेलने को तैयार रहना चाहिए! कौन आश्वस्त कर सकता हैं कि यूरोप में आये इन 90% मुसलमानों शरणार्थियों में न्यूनतम 10% इस्लामी जिहादियों की हिस्सेदारी नहीं होगी ? और यह तो न्यूनतम अनुपात है, वास्तविक आंकड़े इससे कहीं अधिक हो सकते हैं | पेरिस जैसे इस्लामी आक्रामण से बचने के लिए, और यूरोप के लोगों की सुरक्षा की खातिर यूरोप को उनके देश से सबसे पहले शरणार्थियों को बाहर निकालने का निर्णय लेना होगा। उन लोगों पर लानत भेजिए जो झूठी मानवता की बात कह रहे हैं, उन्हें बता दीजिए, कि किसी भी देश के लिए उसके नागरिकों की सुरक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। क्या गैर-मुसलमानों के मानव अधिकार नहीं हैं, मानवता का असली संस्करण क्या है, इस पर विचार करें। 

आज, मैं जामा मस्जिद क्षेत्र और दिल्ली से सटे मुस्लिम बहुल इलाकों में टहलने निकला | मैं 13/11 की पेरिस क्रूरता के बाद उनकी प्रतिक्रया जानना चाहता था । मैंने कहीं भी क्षोभ, अथवा निंदा का भाव नहीं दिखा | इसके विपरीत मैंने आईएसआईएस के प्रेस नोट या वीडियो क्लिपिंग जैसा बयान दिल्ली में एक ऑटो रिक्शा चालक से सुना | अख्तर मुझे बता रहा था कि अभी अगला विस्फोट और हमला मास्को में भी होगा और आईएसआईएस पर हमला करने वाला 'फ्रांस एक पापी है और यह उन पर अल्लाह का कहर है'। मुझे नहीं मालूम कि कितने मुसलमान अख्तर की राय से नाइत्तफाकी रखते होंगे, अगर होंगे भी तो उनका प्रतिशत बहुत कम होगा । 

फ्रांस, रूस, ब्रिटेन, अमरीका, इसराइल और आईएसआईएस के विरोधी कुर्दों जैसे मुसलमानों द्वारा शुरू किये गए आईएसआईएस के खिलाफ युद्ध के दौरान भारत, चीन, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में बड़ी संख्या में रहने वाले मुसलमानों की सहानुभूति किसके साथ होगी ? 

मुंबई पर 26/11 का हमला हो, 13/11 का पेरिस हमला हो अथवा 9/11 का न्यूयार्क हमला, इनकी पुनरावृत्ति रोकने के लिए गैर इस्लामी शक्तियों को मानव समाज विरोधी आईएसआईएस और अन्य इस्लामी संगठनों पर अंतिम हमले शुरू करना चाहिए। 

इस युद्ध क्षेत्र में आक्रमण करते समय हमारा सभ्य समाज यह स्मरण रखे कि कांटे को काँटा ही कहा जाए । अगर एक मुस्लिम आईएसआईएस और जिहाद के खिलाफ नहीं है, तो उसके साथ एक कप चाय भी साझा करना उचित नहीं है। 

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