बिहार चुनाव - जातिवाद बनाम राष्ट्रवाद !


सम्पादकीय (मासिक पत्रिका - विचार सुगंध)

बिहार में हुए 2010 के चुनावों में जदयू और भाजपा के गठबंधन ने भारी जीत हासिल की थी | जनता दल यू के 115 तो भाजपा के 91 विधायक जीते थे । जबकि विपक्षी राजद के 22, लोजपा के तीन और कांग्रेस के महज चार विधायक ही विधानसभा की दहरीज पर पहुँचने में सफल हुए थे | 

यह भी ध्यान देने योग्य है कि 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल यू ने 141 सीटों पर लड़कर 115 सीटें जीती थीं, व उसे 22.61 प्रतिशत वोट मिले थे | इस बार वह केवल 100 सीटों पर चुनाव मैदान में है | राष्ट्रीय जनता दल ने पिछली बार 168 सीटों पर लड़कर महज 22 सीटें जीती थीं, इस बार वह 100 सीटों पर चुनाव लड़ रही है | उसका वोट प्रतिशत था 18.84 प्रतिशत | कांग्रेस ने सबसे अधिक 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था किन्तु उसे सफलता मिली थी मात्र 4 सीटों पर | उसका वोट प्रतिशत था 8.38 प्रतिशत | 

इस बार दृश्य बदला हुआ था | 2010 में RLSP और HAM पार्टियों का अस्तित्व ही नहीं था, और लोजपा इस बार भाजपा के साथ है | जबकि जदयू, राजद और कांग्रेस साथ साथ हैं । 20 वर्षों से एक दूसरे के विरोधी रहे लालू प्रसाद और नीतीश की नई नई दोस्ती हुई है | जदयू और राजद में से प्रत्येक 101 सीटों चुनाव लडे तो कांग्रेस सबसे छोटी पार्टी बनकर महज 41 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी | जबकि भाजपा खेमे में भाजपा 158 सीटों पर रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी 41 पर, RLSP 23 पर और हम 21 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरे | 

स्मरणीय है कि लोकसभा चुनाव में राजग ने एक प्रकार से क्लीन स्वीप किया था | राज्य की कुल 40 सीटों में से भाजपा ने 22 पर सफलता पाई थी | लोक जनशक्ति पार्टी को छह और RLSP तीन सीटों पर विजई हुई थी | जबकि अलग अलग चुनाव लडे नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू दो, लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल चार, कांग्रेस दो और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एक सीट पर सिमट गई थी | 

इस भीषण पराजय से विपक्षियों ने सबक सीखा और भाजपा विरुद्ध सब का फार्मूला अपनाया | स्मरणीय है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा केवल 31 प्रतिशत वोट के आधार पर 283 सीटें जीती थी, इसके पूर्व 1967 में कांग्रेस 40 प्रतिशत वोट पाकर 284 सीटें जीती थी | इस प्रकार 2014 में न्यूनतम वोट पाकर पूर्ण बहुमत में आई सरकार देश को मिली | स्वाभाविक ही पराजय का स्वाद चखने के बाद विरोधी पार्टियों ने इसे समझकर बिहार चुनाव में भाजपा के विरूद्ध मिलकर चुनाव लड़ने का निश्चय किया | 

इस अंकगणित में वे सफल हुए  | लेकिन अब देश को कुछ गंभीर मुद्दों पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत के जिस आरक्षण संबंधी बयान को गलत ढंग से प्रचारित करने की कोशिश की गई, उसकी तह तक जाने की आवश्यकता है | श्री भागवत ने कहा था कि आजादी के इतने वर्ष बाद भी वास्तविक जरूरतमंदों तक आरक्षण का लाभ नहीं पहुँच रहा है, अतः आरक्षण नीति की पुनः समीक्षा की जाना चाहिए | इस बयान में कहीं भी उन्होंने आरक्षण को समाप्त करने की बात नहीं की | उनका आशय यह रहा था कि आरक्षण का लाभ केवल कुछ गिने चुने लोग बारबार उठा रहे हैं | एक नया क्रीमी वर्ग बन गया है, जो इस सुविधा को स्वयं हड़प कर वास्तविक जरूरत मंदों तक उसका लाभ नहीं पहुँचने दे रहा | क्रीमी लेयर को आरक्षण की सुविधा न दी जाए, इस विषय पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी एकाधिक बार राय दे चुका है | इसे चुनाव में गलत ढंग से प्रचारित कर तात्कालिक सफलता भले ही प्राप्त कर ली गई हो, उस पर देरसबेर विचार करना ही होगा |

चुनावों में अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की जो राजनीति सामने आई है, उसके दुष्परिणाम भी दिखाई देंगे | धर्मनिरपेक्षता के नाम पर चलाया जा रहा विपक्षियों का घनघोर सांप्रदायिक एजेंडा देश को नुकसान ही पहुंचाएगा | अतः मोदी जी को और सजग होकर जनता का विश्वास अर्जित करना होगा | काश भविष्य में मोदी विरोधी पार्टियां अंध विरोध का मार्ग छोड़कर राष्ट्रनिर्माण महायज्ञ की समिधा बनें |


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1 टिप्पणियाँ

  1. सुन्दर लेख


    शायद व्8हार के लोग विकास में विश्वास रखते है या फिर नितीश में

    खैर दोनों ही अलग नही ह

    जवाब देंहटाएं