गणेश का उपनयन ! स्वतंत्रता को सार्थक करने शक्ति का आधार चाहिए !!


प्राचीन वैदिक काल में कहा गया –

यद्देवा अकुर्वन तत करवाणि

अर्थात जैसा देवों ने किया, वैसा ही मैं भी करूं |

साथ ही यह भी कि –

पुरुषो ह नारायणोSकामयत | अतिष्ठेयम सर्वाणि भूतानि अहमेवेदं सर्वं स्यामिति, स एतं प्रुरुषमेघं .....क्रतुमपश्यत ..... तेनाजयत, तेनेष्ट्वा अतितिष्ठत्सर्वाणि भूतानीदम सर्वमभवत | अतितिष्ठत्सर्वाणि भूतानि इदं सर्वं भवति य एवं विद्वान् ||

नारायण की इच्छा हुई कि सभी भूतों पर मेरा शासन हो, मैं सभी सामर्थ्यों से युक्त होऊं, उसके लिए उसने पुरुषमेघ यज्ञ किया और उस यज्ञ के फलस्वरूप उसका सब भूतों पर शासन हुआ | जो अपना सामर्थ्य बढ़ाना चाहे, वह यज्ञ करे | जो यज्ञ करेगा, निश्चय ही उसका सामर्थ्य बढेगा |

इस प्रकार दो बातें ऋषियों ने सिद्ध कीं – एक तो यह कि ईश्वर की महानता और उसका सामर्थ्य भी उसके कर्मों का परिणाम है, और दूसरा यह कि देवताओं के सामान आचरण कर नर भी नारायण बन सकता है |

एक और बात ध्यान देने योग्य है, और वह यह कि ऋषियों के मन्त्रों में शस्त्र रहित देवता की कल्पना ही नहीं है | ऋषियों के सभी उपास्य देव शस्त्रास्त्रों से सज्जित हैं | 

भगवान शंकर विरक्त, योगी, त्यागी और वैरागी हैं, वे श्मशान में रहते हैं, किन्तु ऐसा देव भी धनुष वाण और त्रिशूल से सज्जित है | देवों में उनकी ख्याति भयंकर योद्धा के रूप में है | 

गणेश और कार्तिकेय भगवान शंकर के पुत्र हैं | वे दोनों भी उत्तम सेनापति और योद्धा हैं | जिन देवी देवताओं की कल्पना चार, आठ, अठारह या चौबीस भुजाओं के साथ की गई है, वस्तुतः वे उतने प्रकार के शस्त्र संचालन में प्रवीण माने जाने चाहिए | 

दत्तात्रय भी यद्यपि सन्यासी हैं, किन्तु उनके हाथों में भी त्रिशूल और गदा आदि शस्त्र हैं | विष्णु के सभी अवतार चक्र, गदा, फरसा और धनुष वाण लिए हुए दिखाई देते हैं | वैदिक धर्म में सन्यासी को अहिंसा का पुतला कहा गया है, किन्तु वह भी दण्डधारी है |

लेकिन इनमें से किसी ने भी कभी भी किसी पर भी आक्रमण नहीं किया | शत्रु के आक्रमण से स्वयं को अथवा सज्जन शक्ति को बचाने को ही इन्होने शस्त्रों का उपयोग किया | इंद्र का बज्र और खड्ग, वरुण का पाश, मरुतों की शक्ति, भाला तोमर, फरसे आदि शस्त्रास्त्र वेदों में प्रसिद्ध हैं, ये सभी देवता युद्ध के लिए तैयार हैं, मानो आदेश दे रहे हों कि यह संसार एक युद्ध क्षेत्र है, अतः सदैव स्वसंरक्षण के लिए तैयार रहो | युद्ध के समय अगर माला फेरते बैठे रहोगे तो दुष्ट तुम्हारा नाश कर देंगे | पहले स्वसंरक्षण करो, फिर तत्व चिंतन | जो स्वसंरक्षण नहीं करेगा, वह नष्ट हो जाएगा |

गणेश पुराण में विनायक के उपनयन संस्कार का वर्णन आता है | कश्यप ऋषि के आश्रम में यह उपनयन संस्कार संपन्न हुआ | आजकल के समान ही उन्हें यज्ञोपवीत धारण करवाया गया, कौपीन धारण, मेखला बंधन और दण्डधारण के उपरांत बाल वटू विनायक भिक्षा माँगने भी निकले | आश्रम में एकत्रित लोगों ने उनकी झोली में भिक्षा भी डाली और आशीर्वाद भी दिया | विनायक को भिक्षा में क्या मिला यह द्रष्टव्य है –

विनायक को वरुण ने पाश दिए और साथ ही उस पाश से शत्रुओं को बांधने की रीति भी सिखाई | भगवान् शंकर ने त्रिशूल दिया और उसे चलाने की पद्धति भी सिखाई | परशुराम की माता रेणुका ने फरसा दिया और कहा, इससे तू शत्रुओं का नाश कर | इसी प्रकार वहां उपस्थित व एकत्रित सभी लोगों ने विनायक को अस्त्र शस्त्र दिए और इस प्रकार आशीर्वाद दिया –

उपादिशत दुष्टनाशम कुरुं शीघ्रं विनायकं |

हे विनायक, इन शस्त्रास्त्रों को लेकर तू जल्दी ही दुष्टों का नाश कर |

कल्पना कीजिए, एक आठ वर्ष के बालक की कमर में कमरपट्टा बांधकर, हाथ में लाठी पकडाते हैं और भेंट में नाना प्रकार के शस्त्रास्त्र देकर आशीर्वाद देते हैं कि तू दुष्टों का नाश कर | उपनयन संस्कार अर्थात मां बाप का घर छोड़कर गुरुगृह प्रवेश | यह था वैदिक काल, जिसमें वालकों को विद्या के साथ साथ स्वसंरक्षण की भी शिक्षा दी जाती थी | वह बालक बड़ा होकर न केवल स्वयं का वरन राष्ट्र का भी संरक्षण करता था | इन गुरुकुलों में राजा और रंक सभी के बालक साथ साथ पढ़ा करते थे | सबको एक समान शिक्षा | राज्य का कोई हस्तक्षेप नहीं | 

देवों के चरित्र को पढ़ते समय उसे गुनना भी श्रेयस्कर है | उन जैसा आचरण भी करना उचित है | भले ही देव अमानुषी सामर्थ्य वाले हों, किन्तु वे हमारे लिए आदर्श तो हो ही सकते हैं | हम उनके अनुगामी बनकर थोड़ा बहुत तो कर ही सकते हैं | और शायद हमारा यह थोडा सा प्रयत्न भारत का भाग्य बदल सकता है | 

स्वतंत्रता को सार्थक करने शक्ति का आधार चाहिए |

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