देशद्रोहियों के खिलाफ उबला भोपाल !


आज समूचे मध्यप्रदेश के समान भोपाल में भी भारतीय जनता पार्टी ने हर मंडल में धिक्कार दिवस का आयोजन किया, जिसमें प्रमुख स्थानों पर वक्ताओं ने भाषण द्वारा जेएनयू में घटित राष्ट्रविरोधी घटनाओं पर आक्रोश व्यक्त किया |

किन्तु सर्वाधिक चर्चित कार्यक्रम रहा एक गैर राजनैतिक कार्यक्रम | हम हिन्दुस्तानी के बेनर तले आज भोपाल के चार स्थानों से तिरंगा यात्रा प्रारम्भ होकर भारत माता चौराहे पर एकत्रित होकर एक जनसभा में परिवर्तित हो गई | इस यात्रा में हजारों की संख्या में दोपहिया व चौपहिया वाहनों ने भाग लिया | जनसभा को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री अशोक पांडे ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हम संविधान की मूल धारणा के विपरीत चले गए हैं | जिस स्वतंत्रता व संविधान को पाने के लिए महापुरुषों ने अपना बलिदान दिया है, ऐसे बलिदानों को ही हमने बलि चढ़ा दिया है | मदन मोहन मालवीय जी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु अपना पूरा जीवन खपा दिया, आज की परिस्थिति में इस बात पर विचार करने की आवश्यकता है कि हमें भारत के चिरंतन चिंतन से युक्त संस्थानों की आवश्यकता है, अथवा जेएनयू जैसे संस्थानों की ? इसी अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास है यह तिरंगा यात्रा !

श्री अशोक पांडे ने कहा कि वेशक संविधान का अनुच्छेद 19 (1) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, किन्तु जब चीन युद्ध के बाद भी आज जैसी ही परिस्थिति कम्यूनिस्टों ने पैदा की, तब 1963 में इसमें उप धारा 2 व 3 जोडी गईं | जिनके अनुसार यदि अभिव्यक्ति से देश की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा और मित्र देशों से सम्बन्धों को खतरा हो तो अनुच्छेद 19 (1) में वर्णित स्वतंत्रता प्रभावशील नहीं होगी | 

जेएनयू में सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर जब नारे लगे भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी या अफजल हम शर्मिन्दा हैं, तेरे कातिल ज़िंदा हैं, तो यह सरासर भारतीय संविधान और कानूनों का उल्लंघन था | इस कार्यक्रम के आयोजकों पर देशद्रोह का मुक़दमा कायम किया जाना ही चाहिए |

श्री पांडे ने कहा कुछ संगठन युवाओं का उपयोग महज चुनावी राजनीति के लिए करना चाहते हैं और इसके लिए वे राष्ट्रघाती शक्तियों के साथ भी खड़े हो जाते हैं | वे यह भूल जाते हैं कि हमारे देश का विभाजन इसी प्रकार की मानसिकता के कारण हो गया था | हद तो यह है कि हमारे कई नेताओं को वोट की खातिर अपने देश की संसद पर हमला करने वाले लोगों के समर्थकों के साथ खड़ा होने में भी कोई परहेज नहीं है | 

इस बात पर विचार होना चाहिए कि क्या हमारा आदर्श वह व्यक्ति होगा, जिसने देश की संसद पर हमला किया ? जिस राष्ट्र विरोधी व्यक्ति को देश की न्यायपालिका ने सजा सुनाई, स्वयं राष्ट्रपति ने जिसकी दया याचिका ठुकराई, उसका समर्थन कर क्या ये लोग न्यायपालिका व राष्ट्रपति के प्रति असम्मान जाहिर नहीं कर रहे ? अगर हम अफजल को अन्याय का शिकार बताते हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि हम न्यायपालिका व राष्ट्रपति को भी कठघरे में खड़ा कर रहे हैं | इस अनुत्तरदाई मानसिकता का विरोध होना ही चाहिए | 

इस अवसर पर बोलते हुए उत्तिष्ठित जागृत शोध पीठ के संयोजक श्री राजीव सिंह ने कहा कि देश की बहुआयामी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले शान्तिनिकेतन जैसे शिक्षा केंद्र हमारे देश में विद्यमान हैं | देश को दिशा देने में भारतीय चिंतन ही कारगर सिद्ध हो सकता है, हमें मार्क्स और लेनिन जैसे विदेशी विचारकों से प्रेरणा लेने की आवश्यकता नहीं है | जेएनयू जैसे शिक्षा केंद्र व उनमें पनपते राष्ट्र विरोधी तत्व इसी का प्रमाण हैं |

देश की वर्तमान परिस्थिति में हमें सतर्क व सावधान रहने की आवश्यकता है | हमें जागरुक रहकर देखना होगा कि अपने अपने केम्पस, अपने परिवार में कोई अपना बंधू या साथी जाने अनजाने में देश विरोधी गतिविधि में सम्मिलित तो नहीं हो रहा ?

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