१९४४ में कुरआन पर प्रतिबन्ध की मांग के बाद हटा सत्यार्थ प्रकाश पर से प्रतिबन्ध !


मुस्लिम लीग के कराची अधिवेशन में आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती विरचित ग्रंथ ‘सत्यार्थप्रकाश’ पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पारित किया गया ! जिन्ना ने इस पुस्तक के विषय में, विशेषकर इसके चौदहवें समुल्लास को इस्लाम मजहब के विरुद्ध बताते हुए पुस्तक को प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव रखा ! 15 तथा 16 नवंबर को 1943 को मुस्लिम लीग की एक सभा दिल्ली में हुई ! इसमें भी भारत सरकार से इस पुस्तक के उक्त समुल्लास में भी ‘सत्यार्थप्रकाश’ पर प्रतिबंध लगाने की बात व्यक्त की गयी, किन्तु हिन्दुओं के विरोध को देखते हुए इस प्रश्न को भारत सरकार के पास भेज दिया गया !

इन सब विरोधों के विरोध में आर्यसमाज भी उठ खड़ा हुआ ! उसने भी अपने धार्मिक ग्रंथ के समर्थन में प्रदर्शन किए, प्रस्ताव पारित किये तथा वाइसराय के पास प्रार्थना पत्र भेजे ! 19 एवं 20 फ़रवरी को 1944 को दिल्ली में अखिल भारतीय सम्मेलन हुआ ! इसमें सत्यार्थप्रकाश की रक्षा तथा प्रचार का संकल्प लिया गया ! इसके साथ ही तीन लाख रुपए की राशि इस कार्य के लिए एकत्रित की गई तथा सरकार को चेतावनी दी गई कि इस पवित्र पुस्तक के विरुद्ध कोई भी निर्णय लेने पर उसके गंभीर परिणाम होंगे !

इस विरोध को देखकर सिंध सरकार ने घोषणा कर दी की वह ‘सत्यार्थप्रकाश’ के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करेगी, किन्तु आर्यसमाजियों को उदासीन देखकर उसने 4 नवंबर को एक आदेश निकाल दिया कि जब तक चौदहवां समुल्लास हटा न लिया जाए, तब तक सत्यार्थ प्रकाश की एक भी प्रति न छापी जाए !

इससे आर्य समाज के अनुयायियों में रोष उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था ! अतः 20 नवंबर को सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा ने इस आज्ञा का विरोध तथा अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एक समिति गठन करने का पूर्ण अधिकार श्री घनश्यामदास गुप्त को प्रदान कर दिया ! इसके साथ ही उन्हें सभी आवश्यक कार्यवाहियों के लिए भी अधिकार दे दिए गए !

भाई परमानंद ने इस प्रश्न को केंद्रीय धारा सभा में भी उठाया कि सिंध सरकार का उक्त निर्णय अन्यायपूर्ण है ! जब भाई परमानंद के स्थगन प्रस्ताव पर बहस हो रही थी, तो कांग्रेसी नेता अपनी ढुल-मुल नीति के कारण वहाँ से कन्नी काट गए ! यद्यपि यह प्रस्ताव पारित न हो सका, किन्तु इससे लोगों तथा भारत सरकार का ध्यान इस ओर अवश्य आकर्षित हुआ। !महात्मा गाँधी के साथ ही कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं तथा कुछ निष्पक्ष मुसलमानों ने भी सिन्ध सरकार के इस आदेश की आलोचना की !

हिन्दू समाज के अभिन्न अंग आर्यसमाज का सिंध सरकार द्वारा किया गया यह अपमान वीर सावरकर के लिए असहनीय था ! उन्होंने एक सार्वजनिक सभा में उद्घोष किया—“जब तक सत्यार्थप्रकाश पर सिंध में प्रतिबंध नहीं हटता, तब तक कांग्रेस शासित प्रदेशों में कुरान पर प्रतिबंध लगाने की प्रबल माँग करनी चाहिए !“

इसके बाद उन्होंने सिंध प्रांत के गवर्नर तथा भारत के वाइसराय को भी तार भेजे ! इन तारों में उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किया कि सिंध में सत्यार्थप्रकाश से प्रतिबंध न हटाया गया तो हिन्दू कुरान पर प्रतिबंध लगाने के लिए आंदोलन आरंभ कर देंगे ! अतः सत्यार्थप्रकाश पर प्रतिबंध अविलम्ब हटा लिया जाए ! इसके साथ ही वीर सावरकर ने इस उद्देश्य के लिए 27 नवंबर,1944 को वाइसराय से भेंट की और जब लगा कि हिन्दू कुरान पर प्रतिबन्ध लगाने कि मांग कर सकते हैं तब सत्यार्थप्रकाश पर से प्रतिबन्ध हटाया गया !


साभार www.hindumahasabhaa.org

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