होलिकोत्सव-नवसस्योष्टि पर्व "होली"

सनातन हिन्दू धर्म का प्रमुख त्यौहार है, होली ! एक ऐसा त्यौहार जिसकी लोग बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते है ! हिन्दुस्तानी संस्कृति में त्योहारों व उत्सवों का आदिकाल से ही विशेष महत्व रहा है ! हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि हमारे सभी त्यौहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढाते है !

होली का परम पावन पर्व प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के ठीक चालीस दिन पश्चात फाल्गुन पूर्णिमा को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है ! इस पर्व का वैदिक नाम "नवान्नेष्टि" है, अर्थात नवीन अन्न प्राप्त होने पर किया जाने वाला यज्ञ !

भारत में आषाडी शस्य (असाढ़ी) की फसल सभी फसलों में श्रेष्ठ मानी जाती है ! अकाल पड़ने पर भी इस फसल पर सबसे कम असर होता है ! यह फसल न केवल भारत बल्कि किसी समय धनधान्य से संपन्न माने जाने वाले यूरोपीय देशों सहित अन्य विदेशों तक करोड़ों टन की मात्रा में भारत से ही पहुंचाई जाती थी !

संस्कृत में अग्नि से भूने हुए अर्धपक्क अन्न को "होलक" (होला) कहते है ! होला स्वल्पवात है ! यह मेद (चर्बी), कफ एवं श्रम (थकान) को दूर करता है ! सत्तू का प्रयोग भी इसी पर्व से प्रारम्भ किया जाता है, सत्तू ग्रीष्म ऋतू का विशेष आहार है एवं यह पित्तादी दोषों को दूर करता है !

प्राचीन काल से भारत में यह प्रथा चली आ रही कि नवीन वस्तुओं को देवों को समर्पित किये बिना उपयोग में नहीं लाया जाता ! जिस प्रकार मानव देवों में ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार भौतिक देवों में अग्नी सर्वप्रधान है ! अग्नी विद्युत रूप से ब्राह्मण में व्याप्त है, भूतल पर साधारण अनल, जैम में बड़वानल, तेज में प्रभानल, वायु में प्राणापानानल एवं सभी प्राणियों में वैश्वानर के रूप में विद्यमान रहती है ! देव यज्ञ का प्रधान साधन भौतिक अग्नि ही मानी जाती है ! अग्नि को सभी देवों का दूत माना गया है ! अग्नि के माध्यम से ही होम के सभी दृव्यों को देवों तक पहुंचाया जाता है ! अतः नवांगत अन्न सर्वप्रथम अग्नि को ही समर्पित किये जाते है तदुपरांत मानाव्देव ब्राह्मण को भेंट कर उपयोग में लाये जाते है ! कहा जाता है -

"केवलाघो भवति केवलादी"
अर्थात - अकेला खाने वाला केवल पाप खाने वाला है !

आषाडी की नवीन फसल आने पर नए यवों को होमने के लिए इस अवसर पर प्राचीन काल में नवसस्येटि, होलकेष्टि या होलकोत्सव होता था !

होली पर सभी लोग उंच-नीच, छोटे-बड़े का विचार त्याग कर स्वच्छ ह्रदय से एक दुसरे से मिलते है ! किसी कारणवश यदि बैर-विरोध ने मन में स्थान बना लिया है तो उसे अग्निदेव को साक्षी मानकर भस्मसात कर दिया जाता है ! अतः होली प्रेम प्रसार का पर्व है !

होली पर्व का पौराणिक रूप भी बड़ा शिक्षाप्रद है ! हमारे त्योहारों के साथ कुछ महापुरुषों से सम्बंधित घटनाएं भी कालान्तर में जुडी है ! 

दैत्यराज हिरण्यकशिपु ने अपने परमेशप्रेमी पुत्र प्रहलाद के सजीव दाह के लिए अपनी मायाविनी भगिनी होलिका द्वारा चिता रचवाई थी ! उसने सोचा था कि होलिका अपनी राक्षसी माया से प्रहलाद को जलवाकर चिता में से सुरक्षित निकल आएगी, किन्तु परमात्मा की असीम कृपा से भक्त शिरोमणि प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ एवं राक्षसी होलिका उस चिता में भस्मसात हो गयी ! उसी दिन से होलिका राक्षसी के दाह व भक्त प्रहलाद के सुरक्षित रहने के उपलक्ष्य में होलिकोत्सव प्रचलित हुआ !

इस पौराणिक कथा से हमें सत्य पर दृढता से अडिग रहने व सत्याग्रह की सीख लेना चाहिए ! भले ही कितने ही संकट क्योँ न आयें, विपत्तियों की आंधी चले, लोक निंदा हो परन्तु एक सत्यव्रती का यह कर्तव्य है कि वह अपने निश्चित पथ से कभी विचलित न हो ! यदि पिता या अन्य गुरुजन भी सत्यपथ से हटाकर कुमार्ग की और ले जाए तो उनकी बात नहीं माननी चाहिए, सत्यवीर प्रहलाद का अनुकरणीय आदर्श हमारे समक्ष है ! अतः होली हमें सत्याग्रह की विजय का भी स्मरण दिलाती है !

आज सारा देश हिरण्यकशिपु बना हुआ है ! प्रहलाद जैसा तो कोई नजर ही नहीं आता ! सभी लोग रूपये-पैसे, धन-दौलत, वैभव, सत्ता प्राप्ति में ही लगे हुए है भले ही उसका मार्ग चाहे कोई भी क्योँ न हो ! लालची, कंचन व कामिनी के मद में चूर लोगों ने केवल अपने हितों को साधने के लिए देश राष्ट्र के हितों की बलि दे डाली है ! तथाकथित राजनेता, उनके सगे सम्बन्धी, बड़े-बड़े उद्योगपति भ्रष्टाचार किये जा रहे है, करोडो अरबों रूपये हजम कर उस राशि को विदेशों में जमा करा कर न सिर्फ देश को निर्धन कर रहे है बल्कि अर्थव्यवस्था को भी भीषण क्षति पहुंचा रहे है !

हम लोग इस बात को समझना ही नहीं चाहते कि इस क्षणभंगुर जीवन में अराष्ट्रीय कार्य करके अपने देश को क्योँ क्षति पहुंचाई जाए, जबकि इस जीवन का क्या भरोसा, पता नहीं कब यह कच्चे घड़े की तरह नष्ट हो जाए ! किसी संत ने कहा है -

"नर तन है कच्चा घडा, लिए फिरे है साथ ||
लागा फुटिया, कछु न आवे हाथ ||

व्यक्ति अगर नर है तो समाज ही नारायण है | आज के परिप्रेक्ष में समाज भक्ति ही नारायण भक्ति है ! होली का पावन पर्व हमारे अन्तःकरण में सत्याग्रही प्रहलाद सी नारायण भक्ति की भावना का उदय करे | 

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