भारत की आजादी और राजे रजवाड़े – भाग 2


15 अगस्त १९४७ के दिन गुजरात के जूनागढ़ के नवाब ने ऐसा कार्य किया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती ! उनके द्वारा कारित कार्य की जानकारी दो दिन बाद अखबारों में प्रकाशित ख़बरों से सामने आई ! जूनागढ़ के नवाब ने अपनी रियासत को पाकिस्तान के साथ जोड़ने का फैसला लिया यह सुनकर देश के चारों कोनों में अफरातफरी मच गयी ! 

आजादी के महज 3 दिन पूर्व तक ४ रियासतें भारत का हिस्सा नहीं थी यह रियासतें थी जम्मू काश्मीर, जूनागढ़, भोपाल और हैदराबाद ! 

जूनागढ़ का भारत में विलय :

जूनागढ़ जिसकी उस समय की आबादी 6 लाख ७० हजार थी ! आजादी के समय जूनागढ़ का नवाब मुहम्मद महावद खान पाकिस्तान के इशारे पर हिन्दू बहुसंख्यक आबादी को पाकिस्तान में मिलाने के खेल का मोहरा बन गया था ! नवाब खान अपनी दो आदतों के लिए बड़ा प्रसिद्ध था ! एक जानवरों से विशेष प्रेम और दूसरा नाच गाना !
एक और भारत आजाद हो रहा था दूसरी और अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए क़ानून लेप्स ऑफ़ पैरामाउंटसी के द्वारा भ्रम फैलाया जा रहा था ! जूनागढ़ के नवाब ने इसी का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान में शामिल होने का ऐलान कर दिया था ! उसके इस कदम से देश के लोग पशोपेस की स्थिति में आ गए थे ! 

17 सितम्बर १९४७ को इस विषय को लेकर एक विशेष बैठक बुलाई गयी ! बैठक में इस बात की चर्चा हुई कि पाकिस्तान ने जूनागढ़ के बिरावल में बंदरगाह को डेवलप करने 25 हजार सैनिकों का ठिकाना तैयार करने के लिए नवाब को 8 करोड़ रुपये दिए है ! जिन्ना की इस ब्लैकमेलिंग का अंत क्या हो ? जिन्ना ने भारत को फ़साने हेतु यह जाल बिछाया है ! जब तक जूनागढ़ में सैन्य कार्यवाही नहीं की जाती तब तक पाकिस्तान की ब्लैकमेलिंग जारी रहेगी ! सरदार पटेल ने इस बैठक में कहा कि “हमें जूनागढ़ में सख्त कार्यवाही करनी चाहिए वर्ना हमारी नरमी की कीमत हमें कश्मीर, भोपाल व हैदराबाद में चुकानी पड़ेगी ! इस पर माउंटबेटन ने आपत्ति जताते हुए कहा कि जूनागढ़ पर सैन्य कार्यवाही जिन्ना के जाल में फसने जैसा ही होगा ! सरदार पटेल सैन्य कार्यवाही के पक्ष में थे परन्तु माउंटबेटन नहीं ! पाकिस्तान के लिए जूनागढ़ मात्र मोहरा था जबकि उसकी नजर कश्मीर पर थी !

पटेल गृहमंत्री के साथ रियासती मामलों के मंत्री भी थे ! पटेल ने जूनागढ़ पर सैन्य कार्यवाही यह सोचकर टाल दी कि इसकी कीमत कहीं कश्मीर में चुकानी न पड़ जाए परन्तु जूनागढ़ की सीमाओं पर चौकसी व नाकेबंदी बढाने का प्रस्ताव रखा ! इसी बैठक में वी.पी. मेनन को जूनागढ़ भेजने का फैसला लिया गया जिससे यह पता चल सके कि जूनागढ़ की बगावत के पीछे आखिर किसका हाथ है ? नवाब या उनके दीवान शाहनवाज भुट्टो (पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमन्त्री बेनजीर भुट्टो के दादा) ?

मेनन जूनागढ़ पहुंचे परन्तु भुट्टो ने उन्हें यह कहकर नवाब से मिलने से रोका कि नवाब का स्वास्थ्य खराब है ! मेनन ने उन्हें काफी समझाया और कहा कि नवाब के इस फैसले से काठियावाड की जनता बेहद आक्रोशित है और कहीं जनता ने क़ानून अपने हाथ ले लिया तो इसका नतीजा यह होगा कि नवाब और उनके पूरे वंश के साथ उनके सम्पूर्ण साम्राज्य का खात्मा ! यह कहकर मेनन वापस आ गए परन्तु वापस आने से पूर्व उन्होंने जूनागढ़ की दो छोटी जागीर मंगलोर और बावडियाबाड को हिन्दुस्तान में शामिल कर लिया ! इसके जवाब में नवाब ने इन दोनों जागीरों में अपनी फौजों को भेज दिया जिसके चलते इन दोनों जागीरों के शेखों ने भारत के साथ हुए समझौते को ख़ारिज कर दिया ! 

तब सरदार पटेल ने सुझाव दिया कि हमें इन दोनों जागीरों में अपनी फौजें भेज देनी चाहिए, क्यूंकि यह भारत के विरुद्ध युद्ध है ! 24 सितम्बर को जूनागढ़ की घेराबंदी शुरू कर दी गयी ! पकिस्तान भारत के इस कदम के लिए तैयार नहीं था, परन्तु भारत को धक्का तब लगा जब माउंटबेटन ने भारत को इस कार्यवाही से बचने की सलाह दी और इस मुद्दे को यूनाइटेड नेशन में ले जाने का सुझाव दिया ! इस पर पटेल ने कडा रुख अपनाते हुए साफ़ शब्दों में कहा कि “जूनागढ़ के सहारे पकिस्तान ने हमारे विरुद्ध युद्ध का विगुल बजाया है इस मुद्दे को यूनाइटेड नेशन में ले जाना भूल होगी हमें उसे सख्ती से जबाब देना होगा ! हमें अपने हक़ के लिए किसी और के आगे हाथ फैलाने की आवश्यकता नहीं है ! पटेल ने माउंटबेटन की एक नहीं सुनी ! 

हिन्दुस्तानी फौज ने जूनागढ़ के चारों और नाकेबंदी प्रारम्भ कर दी ! एक और तो हिन्दुस्तानी फौज और दूसरी और नवाब के विरुद्ध उसकी ही जनता का विरोध ! नवाब डर गया और उसने हिन्दुस्तान से भागने का फैसला लिया ! भागते भागते नवाब एक बड़ी दिलचस्प कहानी छोड़ गया ! कहते है नवाब अपनी एक बीबी और बच्चे को महल में ही छोड़ गया और अपने साथ जहाज में कुत्ते को ले गया ! 

अब रियासत चलाने के लिए बचे दीवान शाहनवाज भुट्टो ! भुट्टो ने पाकिस्तान से मदद की गुहार लगाईं ! न जिन्ना का जवाब आया न ही कोई मदद ! 7 नबम्बर १९४७ को भुट्टो ने भारत से जुड़ने की पेशकश कर दी और खुद कराची जा कर बैठ गये ! इस तरह से जूनागढ़ को पाकिस्तान से मिलने से रोका गया ! इसके पश्चात फरवरी १९४८ में भारत सरकार के द्वारा जूनागढ़ में रायशुमारी भी की गयी ! इस रायशुमारी में हिन्दुस्तान के पक्ष में एक लाख उन्नीस हजार वोट आये जबकि पाकिस्तान के पक्ष में सिर्फ इक्यानवे !

त्रावणकोर के बगावती सुर 

इसी क्रम में जहाँ सर्वप्रथम त्रावणकोर ने स्वयं को भारत और पाकिस्तान में न मिलने व स्वयं एक आजाद देश बनाने की घोषणा यह कहकर की थी कि हम समुद्र किनारे है और हम आजाद होकर अपना स्वयं का संविधान बनायेंगे ! ऐसी घोषणा वहां के दीवान सी.पी. रामास्वामी अइय्यर ने आजादी के लगभग २ माह पूर्व 11 जून १९४७ को की !
इनकी इस घोषणा के बाद ही देश के टूटने की आशंका सच साबित होने लगी ! सवाल यह था कि क्या त्रावणकोर की जनता भी भारत से अलग आजाद देश चाहती थी ? इस सवाल का जवाब त्रावणकोर की जनता ने जल्द ही दे दिया ! जनता ने महाराज व दीवान के फैसले का भारी विरोध किया और आजादी से मात्र 20 दिन पूर्व ही वह घटना घटित हुई जिसकी कल्पना दीवान रामास्वामी अइय्यर ने कभी नहीं की होगी ! 

रामास्वामी अइय्यर पर जानलेवा हमला हो गया जिससे वह तिलमिला गए लेकिन उन्हें अपने फैसले की आलोचना का अनुमान हो गया ! आखिरकार त्रावणकोर के महाराज ने आजादी से महज 3 दिन पूर्व ही भारत में शामिल होने की अपनी सहमती प्रदान कर दी ! 

भोपाल के नवाब के बगावती तेवर 

त्रावणकोर के भारत में शामिल हो जाने से ही भारत की मुश्किलें समाप्त नहीं हुई थी ! भारत के बीचों बीच एक रियासत थी भोपाल ! भोपाल के नवाब ने तय किया कि या तो वो आजाद रहेंगे या पाकिस्तान में शामिल हो जायेंगे ! 

भोपाल के नवाब का नाम था हमीदुल्लाह खान ! खान जिन्ना के बेहद करीबी थे ! इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिन्ना ने उन्हें पकिस्तान का सेक्रेट्री जनरल बनाने की पेशकश की थी ! माउंटबेटन से भी हमीदुल्लाह की घनिष्ट मित्रता थी ! इस हाल में आजादी से महज ४ दिन पूर्व माउंटबेटन ने हमीदुल्लाह को चिट्ठी लिखी कि आप १४ अगस्त की आधी रात से पूर्व अलग देश बनाने के कागजों पर हस्ताक्षर कर मुझे भेज दें ! इन्हें में संभाल के रखूँगा एवं 25 अगस्त से पूर्व इन कागजों को रियासत विभाग के हाथों नहीं सौपूंगा ! 

25 अगस्त तक यदि आपके फैसले में बदलाव आता है और आपको भारत में शामिल नहीं होना हो तो में सारे दस्तावेज आपको सौपं दूंगा ! माउंटबेटन की चिट्ठी ने भोपाल को एक नया रास्ता दे दिया था कि वह चाहे तो भारत से बाहर निकल जाए जो कि भारत के लिए बेहद खतरनाक बात थी ! 

दिन गुजर रहे थे हैदराबाद, जम्मू कश्मीर भारत से बाहर थे और भोपाल के पास वायसराय का खुला प्रस्ताव था कि वह चाहे तो भारत से अलग हो सकता है ! देश भोपाल के रुख से परेशान था तभी भोपाल नवाब का एक पत्र सरदार पटेल को मिला ! जब उन्होंने पत्र खोला तो हालात बिलकुल बदल गए ! इस पत्र में नवाब ने लिखा –

“पटेल जी, में इस बात पर अब ज्यादा पर्दा नहीं डाले रखना चाहता हूँ कि जब विवाद चल रहा था तब अपनी रियासत को आजाद बनाए रखने के लिए मैंने तमाम कोशिशें की ! अब मैंने हार को मान लिया है और में आपको यकीन दिलाता हूँ कि में पहले जितना कट्टर दुश्मन था अब उतना ही करीबी दोस्त रहूँगा !”
सरदार पटेल ने भी इस पत्र का जवाब देते हुए कहा –

“प्रिय हमीदुल्लाह, में ऐसा हरगिज नहीं मानता कि आपके भारतीय साम्राज्य के साथ शामिल होने के निर्णय से आपकी हार हुई है और हमारी जीत ! आखिरकार विजय तो सत्य और उचित की हुई है और इसके लिए हमने अपनी अपनी भूमिका निर्वाहन की है !”
आपका बल्लभ भाई पटेल 
भोपाल के हिन्दुस्तान में शामिल होने से एक समस्या तो ख़त्म हुई लेकिन देश के सामने एक और बहुत बड़ी समस्या थी ! हैदराबाद सियासत के निजाम मेरे उस्मान अली बहादुर जो किसी भी हालत में भारत के साथ जुड़ने के लिए राजी नहीं थे !
हैदराबाद का भारत में विलय कैसे हुआ इसे हम आगामी लेख में पढेंगे !


!!क्रमश!!

साभार https://www.youtube.com/watch?v=MtYjNgITxMQ 
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