आपातकाल में ग्वालियर केन्द्रीय कारागृह के संस्मरण |

गिरफ्तारी के बाद शिवपुरी टीआई शर्मा जी ने अत्यंत ही शालीनता का परिचय दिया ! प्रशासन ने ओवरलोड शिवपुरी जेल के स्थान पर मुझे सीधे ग्वालियर केन्द्रीय कारागृह को रवाना किया ! टीआई  महोदय ने अतिरिक्त उदारता दिखाते हुए, बिना हथकड़ी लगाए ले जाने का निर्देश कांस्टेबिलों को दिया ! उनमें से एक का नाम हरिहर ही था, तो उससे स्वाभाविक ही मित्रता हो ही गई ! सार्वजनिक परिवहन की बस द्वारा हम लोग सायंकाल रवाना हुए और रात्रि लगभग आठ बजे जेल में प्रविष्ट हुए ! 

वहां पहुंचकर जिन महाशय को मैंने सबसे पहले देखा, उन्हें देखकर मेरे अचम्भे का ठिकाना न रहा ! वह महानुभाव थे, रमेश सिंह सिकरवार ! वे ही रमेश सिंह, जो पूर्व में युवक कांग्रेस के बेनर तले शिवपुरी महाविद्यालय के अध्यक्ष रह चुके थे ! वे बेचारे कांग्रेस की आन्तरिक गुटबाजी में फंसकर कृष्णजन्मस्थली का लुत्फ़ उठा रहे थे, समाजवादी मीसाबंदियों के साथ अपने दिन काट रहे थे ! बाद में मालूम हुआ कि उनके अतिरिक्त अशोकनगर के तीन वरिष्ठ कांग्रेस नेता भी मीसाबंदी थे, जिन्हें अन्य लोग पीठ पीछे गांधी जी के तीन बन्दर कहा करते थे ! खैर रमेश सिकरवार साहब ने बड़ी आत्मीयता प्रदर्शित की ! चूंकि विलम्ब से रात्रि में पहुंचे थे, अतः जेल प्रशासन की ओर से ओढ़ने बिछाने को उस समय मुझे कुछ नहीं दिया गया ! 6 जनवरी की रात, और वह भी ग्वालियर की, स्वाभाविक ही पर्याप्त ठण्ड थी ! कामरेड बादल सरोज व शैलेन्द्र शैली, समाजवादी सर के पी सिंह व कांग्रेसी रमेश सिकरवार ने अपने अपने हिस्से के कम्बलों में से एक एक मुझे दिया, और इस प्रकार कारागृह की पहली रात्रि व्यतीत हुई ! 

दूसरे दिन सुबह हमारे समविचारी मीसाबंदियों को मेरे आगमन का समाचार मिला और वे लोग आकर मुझे अपने साथ ले गए ! शिवपुरी जिला संघ चालक बाबूलाल जी शर्मा, जनसंघ नेता बाबूलाल जी गुप्ता, विधायक जगदीश वर्मा आदि शिवपुरी वासियों के साथ रहने की व्यवस्था हुई ! पूरे ग्वालियर संभाग के नेता गण व सामाजिक कार्यकर्ता वहां थे ! संविदकाल में मंत्री रहे ग्वालियर के नरेश जौहरी, भाऊ साहब पोतनीस, गंगाराम बांदिल, स्वरुप किशोर सिंघल आदि जनसंघ नेता तथा मुरार के प्रतिष्ठित डॉ. मराठे, प्रख्यात सर्जन डॉ. केशव नेवासकर, शिक्षाविद महीपति बालकृष्ण चिकटे, दादा बेलापुरकर, प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी, चिंतामणि केलकर, काशीनाथ मोघे, दिवाकर वर्मा, राजाराम मोघे व टेम्बे जी जैसे वरिष्ठ संघ अधिकारियों के साथ रहना अपने आप में एक गौरव पूर्ण अनुभूति दे रहा था ! 

संभाग के अन्य महत्वपूर्ण लोगों में मुरेना के जहार सिंह शर्मा, बाबूलाल जी व उनके पुत्र राधेश्याम जी, भिंड के सदाबहार मस्तमौला प्रभूदयाल उपाख्य पी.डी. सर, रामभुवन सिंह कुशवाह एवं मेहगांव के एडवोकेट शिवकुमार शुक्ला जी, नाथूराम जी मंत्री, उनके भाई रामजीलाल जी तथा बेटे केशव जी, एक ही परिवार के तीन लोग मीसाबंदी थे ! इनके अतिरिक्त हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता गंगाधर दंडवते, गुना के नवल किशोर विजयवर्गीय व समाजवादी नेता बाबू धर्मस्वरूप, विजयपुर के बाबूलाल मेवरा आदि भी स्मृतियों में सुरक्षित हैं ! दंडवते जी ने स्वेच्छा से अन्य सामान्य कैदियों के साथ रहना तय किया ! वे प्रतिदिन उनके साथ सामूहिक भजन कीर्तन व रामायण पाठ करते, प्रवचन भी देते ! इस कारण उनका इतना अधिक सम्मान था कि सभी कैदी उनके भक्त बन गए, साथ ही अधिकारियों ने भी उनको सम्पूर्ण जेल परिसर में कहीं भी घूमने फिरने की स्वतंत्रता दी थी ! एक सर्वाधिक विशिष्ट व्यक्ति थे सरदार आंग्रे, वे बुजुर्ग सरदार आंग्रे जिन्होंने किसी समय स्टेटकाल में इस जेल परिसर की आधारशिला रखी थी , समय का चक्र देखिये कि उसी जेल में कुछ समय बंदी रहे ! उनका इतना मान जरूर रखा गया कि जब वे एक परिसर से दूसरे परिसर में जाते तो उनके लिए गेट पूरा खोला जाता, जबकि अन्य लोग गेट में बनी खिड़की से ही आवागमन करते थे, और वह भी विशेष अनुमति मिलने पर ! मसलन बीमार होने पर होस्पीटिल जाने को या भोजन सामग्री लाने के लिए ! 

अलग अलग बैरकों में रहने वाले संघ स्वयंसेवक प्रतिदिन प्रातःकाल अधिकारियों वाली बैरक में इकट्ठे होकर प्रातः स्मरण करते, उसके बाद सामूहिक संधियोग व रूचि के अनुसार खेलकूद में भाग लेते ! वरिष्ठ नेता जहारसिंह जी को बोलीबॉल में महारत थी तो टेम्बे जी को फुर्ती के साथ रिंग खेलते देखना रोमांच पैदा करता ! आखिर खिलाड़ियों की होंसला अफजाई के लिए दर्शक भी तो चाहिए न, तो मुझ जैसे अनाडी वह भूमिका बखूबी निबाहते ! कभी कभी आग्रह ज्यादा हो जाता तो रिंग खेलने जरूर उतर जाता ! इसी प्रकार प्रति शनिवार को दोपहर में "मेरे सपनों का भारत" विषय पर परिसंवाद होता अथवा काव्य गोष्ठी या किसी चयनित विषय पर बौद्धिक होता ! दूसरे दिन उस विषय पर चर्चा भी होती ! 

काराग्रह में मीसावंदियों को अत्यंत ही कठिनाईयों में रहना पड़ रहा था ! एसे में विधिवेत्ता श्री बाबूलाल जी शर्मा की विद्वत्ता तथा चतुरता ने पूरे देश के मीसावंदियों को सुविधा प्रदान कराने में महती भूमिका निर्वाह की ! उस समय तक मीसावंदियों को लिखने पढ़ने की कोई सुविधा नहीं थी ! बाबूलाल जी ने समाचार पत्रों के अलिखित खाली भाग की कतरनों पर एक रिट पिटीशन जनहित याचिका लिखी ! इस याचिका में मीसावंदियों की दारुण कथा का कारुणिक वर्णन था ! इस याचिका को भूमिगत रहकर कार्य कर रहे तत्कालीन प्रचारक श्री लक्ष्मण राव जी तराणेकर ने देल्ही सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत कराने की व्यवस्था की ! सर्वोच्च न्यायालय ने कतरनों पर लिखी इस जन हित याचिका को ना केवल स्वीकार किया वरन उस पर एतिहासिक फैसला भी दिया, जिसके कारण पूरे देश में मीसावंदियों के मौलिक अधिकार बहाल हुए, जेल में उन्हें खाने इत्यादि की सुविधाएं मिलने लगीं, लिखने पढ़ने की भी सुविधा प्राप्त हुई ! बाबूलाल जी सबके सम्मानित आचार्य जी बन गए, उन दिनों बढाई हुई उनकी श्वेत धवल दाढी इस संबोधन को सार्थकता भी दे रही थी !

मीसाबंदियों ने जेल की मेस से मिलने वाला भोजन करने के स्थान पर स्वयं भोजन बनाना तय किया था ! उस कार्य में सहयोग के लिए जेल अधिकारियों ने कुछ सामान्य बंदी प्रदान किये थे ! भोजन व्यवस्था राजाराम जी मोघे, दादा बेलापुकर तथा दादा दहीफले जैसे वरिष्ठ जन संभाल रहे थे ! जेल मेनुअल के नाम पर मिलने वाली सामग्री के अतिरिक्त जेल अधिकारियों के सहयोग से कुछ बंदियों को बीमार दर्शाकर, उनके नाम पर मक्खन व दूध मिल जाता था ! उस कारण प्रतिदिन सुबह सबको दूध तथा सप्ताह में एक दिन विशेष भोजन बन जाता था ! 

चिकटे जी व काशीनाथ जी मोघे मीसाबंदियों के अघोषित शिक्षक थे ! कोई उनसे अंग्रेजी सीखता तो कोई मराठी, काशीनाथ जी विज्ञान व गणित के विशेषज्ञ थे तो उनसे वही सीखने को मिलता ! मजा यह कि यह दोनों भी तस्करी के आरोप में गिरफ्तार एक कैदी से जर्मनी सीखते थे ! डॉ. मराठे ने मेरी रूचि देखकर विशेष रूप से मेरे लिए अपने घर से ऋग्वेद पढ़ने को मंगवाया ! यद्यपि वह मराठी में था, किन्तु संस्कृत निष्ठ मराठी समझना मुझे अधिक कठिन नहीं हुआ ! जहाँ कोई बात समझ में न आती तो मदद के लिए इतने मराठीभाषी हर पल साथ थे ही ! चिंतामणि केलकर उपाख्य चिंतू भैया का मुझपर विशेष स्नेह था ! उनकी प्रेरणा से जेल में ज्योतिष का अध्ययन करने का भी सुअवसर प्राप्त हुआ !  

एक प्रसंग ने ज्योतिष पर मेरी आस्था भी दृढ कर दी ! हुआ कुछ यूं कि जेल जीवन के अंतिम दौर में माधव शंकर इन्दापुरकर (मधु भैया) कुछ समय के लिए हमारे साथ रहे ! वे तथा शेजवलकर जी बेगमगंज जेल से ट्रांसफर होकर ग्वालियर आये थे ! एक दिन मधु भैया ने मुझे एक जन्मपत्री दी और कहा कि इसे देखकर बताओ कि इसकी विशेषता क्या है ? मैंने कुछ देर उसे देखा और फिर कहा, इसमें सप्तम भाव में सूर्य और केतु है, अतः इन सज्जन के भाग्य में धन संपत्ति भरपूर होते हुए भी, दाम्पत्य सुख नहीं है ! वह जन्मकुंडली मधु भैया के भाई की थी, जो जीवन भर अविवाहित ही रहे ! इसी प्रकार जब चुनावों की घोषणा हो गई, तब किसी को विश्वास नहीं था कि इंदिरा गांधी पराजित हो सकती हैं ! मैंने ख़म ठोककर कहा कि अगर वे पराजित न हुईं तो मेरा अध्ययन व्यर्थ है, मैं अपनी इन पुस्तकों को आग के हवाले कर दूंगा !

अप्रैल में शिवपुरी जेल के मित्रगण भी ग्वालियर कारागृह में हमारे साथ आ मिले, फिर तो हमारे पौबारह हो गए ! मस्ती और मौज का ठिकाना नहीं रहा ! हर दिन होली और रात दीवाली ! शिवपुरी की हमारी टोली की मौजमस्ती जहाँ अन्य लोगों के मनोबल को बनाए रखने में मददगार थी, तो वरिष्ठ जनों को कई बार नागवार भी गुजरती ! हम लोगों की मस्ती को दर्शाता एक रोमांचक अनुभव साझा करता हूँ - 

एक दिन रात को एक बजे बाबूलाल जी शर्मा, गोपाल डंडौतिया, गोपाल सिंघल, अशोक पांडे, दिनेश गौतम तथा मैं स्वयं प्लेंचिट करने बैठे ! एक केरम बोर्ड पर बीच में ॐ लिखा गया व उस पर एक कटोरी रखी गई ! इसके दोनों तरफ yes और no लिखा गया ! केरम बोर्ड के चारों ओर अंग्रेजी के अल्फाबेट तथा अंक लिखे गए थे ! अब केरम के चारों ओर बैठकर चार लोगों ने अपनी उंगली से आहिस्ता से बीच में रखी कटोरी को स्पर्श किया ! सबने मन ही मन यह आव्हान करना प्रारंभ किया कि कोई पवित्र आत्मा आये और हमारा मार्गदर्शन करे ! कुछ समय बाद कटोरी में हलचल होने लगी ! शायद हमारी उँगलियों को किसी आत्मा ने अपना मीडियम बना लिया था ! फिर शुरू हुआ प्रश्नोत्तर का क्रम ! पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में कटोरी अलग अलग शब्दों पर जाकर ठिठकती और इस प्रकार वाक्य समझ में आते, कि उत्तर क्या दिया जा रहा है ! लेकिन कोई सार्थक उत्तर नहीं मिलते देख बाबूलाल जी ने कहा कि अगर हमें भविष्य में झांकना है, तो क्यों न किसी जाने माने ज्योतिषी की आत्मा का आव्हान करें ? 

और सब लोगों ने तय किया कि वराह मिहिर की आत्मा का आव्हान किया जाए ! आपको हँसी आ सकती है, किन्तु उस दिन जो रोंगटे खड़े कर देने वाला अनुभव वहां उपस्थित लोगों को हुआ, उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है ! आव्हान के कुछ समय बाद ही कटोरी में अत्यंत तेज हलचल शुरू हुई ! वह केरम बोर्ड के एक कोने से दूसरे कोने तक तेज गति से मानो दौड़ाने लगी ! 

बाबूलाल जी ने पूछा कि क्या आप वराह मिहिर है ? 

कटोरी yes पर जाकर ठिठकी और उसके बाद फिर चकरघिन्नी होने लगी ! 

बाबूलाल जी ने फिर पूछा कि क्या आप हमारा मार्ग दर्शन करेंगे ? 

कटोरी एक बार फिर yes पर आकर ठिठकी, किन्तु उसके तुरंत बाद उसने वाक्य बनाया - 

but first i want a man. 

अब सबकी साँस की गति बढ़ने लगी, लेकिन बाबूलाल जी ने पूछा कि क्या आप बलि चाहते हैं ? कटोरी का मूमेंट रुक गया, किन्तु वह न yes पर गई न no पर ! कुछ समय उपरांत बाबूलाल जी ने कहा कि क्या आप गोपाल डंडौतिया को स्वीकार करेंगे ? 

कटोरी तुरंत yes पर जाकर रुक गई ! 

गोपाल जी पता नहीं कि मन ही मन सकपकाए या नहीं, लेकिन उनके चहरे पर मुस्कान ही रही ! बाबूलाल जी के अगले वाक्य ने हम सबको हतप्रभ कर दिया, वे कह रहे थे -

ठीक है हम सहमत हैं आप ले लीजिये गोपाल जी को ! 

लेकिन न तो कटोरी में कोई मूमेंट हुआ न गोपाल जी पर कोई प्रभाव पड़ा ! कुछ समय प्रतीक्षा के बाद बाबूलाल जी ने फिर कहा - 

क्या हम गोपाल जी को लिटा दें ? आप इन्हें कैसे स्वीकार करेंगे ? 

पर उसके बाद कटोरी टस से मस नहीं हुई ! उस दिन तो केवल इतना ही घटनाक्रम चला, किन्तु जब दूसरे दिन यह चटखारे दार समाचार अन्य मीसाबंदियों ने सुना, फिर तो यह खेल ही बन गया ! जो देखो वह प्लेंचिट करता दिखता ! आम तौर पर सबके पूछे जाने वाले सवाल एक समान ही होते - मेरी पेरोल कब आयेगी, या रिलीज कब होगी, या फिर घर परिवार के हालचाल ! उस दौर में मुझे एक अच्छा मीडियम मान लिया गया ! मैं न केवल कटोरी के माध्यम से बल्कि हाथ में कलम पकड़कर हाथ को ढीला छोड़ देता तो भी कलम के मूमेंट से अक्षर बनकर प्रश्नों का उत्तर प्राप्त होता ! आम तौर पर जब एक "हर" नामक आत्मा आकर प्रश्नों का उत्तर देती, तो अक्सर वे सही निकलते ! मुझे लगा कि यह कोई पवित्र आत्मा है तथा किन्हीं कारणों से इस योनि में है, मुझे इनके लिए कुछ करना चाहिए ! मैंने कुछ प्रदोष वृत उनके निमित्त करना तय किया ! 

आम तौर पर सब लोग दोपहर को भोजन उपरांत विश्राम करते थे, किन्तु मुझे दिन में सोने के वजाय पुस्तकें पढ़ना पसंद था ! एक प्रदोष वाले दिन दोपहर में मैं कोई पुस्तक पढ़ रहा था, बगल में ही एक मित्र सोये हुए थे ! कि तभी अचानक मेरे दिमाग में एक सवाल कुलबुलाया ! मैं जो प्रदोष कर रहा हूँ, इनसे "हर" महाशय की आत्मा को कोई लाभ हो भी रहा है या नहीं ? 

मैंने मनहीमन कहा कि हे हर महाशय, यदि आपको मेरे वृत से कोई लाभ हो रहा हो तो मेरे बगल में सो रहे मेरे मित्र जाग जाएँ ! इधर मैंने सोचा और दूसरे ही क्षण गहरी नींद में सो रहे मेरे मित्र घबराकर बैठ गए ! वे पसीने से लथपथ थे ! 

मैंने पूछा - क्या हुआ ? 

वे बोले - मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे थप्पड़ मारकर उठा दिया हो ! 

मैंने कहा - सो जाओ सो जाओ, कोई बुरा सपना देखा होगा ! 

मित्र तो सो गए, किन्तु मुझे काटो तो खून नहीं ! मैंने सोचा कि प्रकृति में बहुत कुछ ऐसा है, जहां तक मानव नहीं पहुँच सकता और यह खेल तो कतई नहीं है ! मैंने उसी दिन से फिर कभी यह प्रयोग न करना तय किया और किया भी नहीं ! किन्तु एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि जब भी उन दिनों प्रश्न किया गया कि हम लोग कब छूटेंगे, जबाब एक ही आता था, अप्रैल 77 ! जो बाद में सत्य भी प्रमाणित हुआ !

अब जेल जीवन का एक विशेष प्रसंग -

सत्याग्रह करके मीसाबंदी बने श्री लक्ष्मीनारायण गुप्ता यूं तो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे | किन्तु जेल मैं ही उन्होंने सम्पूर्ण गीता कंठस्थ कर ली | उनकी स्मरण शक्ति विलक्षण थी | साथ ही वे स्वभाव से भी विनोदी थे |ग्वालियर जेल मैं ही लक्ष्मीनारायण गुप्ता का हर्निया का ओपरेशन हुआ | ओपरेशन के बाद विश्राम की दृष्टि से उन्हें वरिष्ठ जनों वाली बैरक मैं आरामदेह बिस्तर पर रखा गया | कुछ स्वस्थ होने पर वे अक्सर हम लोंगो की बैरक मैं आ जाया करते थे | एक दिन जब वे हम लोगों से ऊंचे स्वर मैं हंसी मजाक कर रहे थे, ठहाके लगा रहे थे, तब बैरक मैं सो रहे एक अन्य वन्धु नाराज हो गए व बोले मेरी नींद ख़राब कर दी, चला जा नहीं तो लात दूंगा | श्री गुप्ता ने उनकी बात को मजाक मैं लिया और बोले सुबह के ९ बज चुके हैं , यह कोई सोने का समय थोड़े ही है, और लात क्या केवल तुम्हारे पास है | दूसरे साथी आपा खो बैठे व उनको मारने दौड़े | बमुश्किल हम लोग उन्हें रोक पाए |

उस दिन शिवपुरी के कार्यकर्ताओं का भोजन परोसने का क्रम था | जब सब लोग भोजन करने या कराने मैं व्यस्त थे तभी कुछ लोगों ने लक्ष्मीनारायण गुप्ता जी के साथ निर्मम मारपीट कर दी | हाल ही ओपरेशन से उठे श्री गुप्ता को पेट मैं भी मुक्के मारे गए | उन्हें भीषण शारीरिक व मानिसक कष्ट हुआ | इस घटना से आहत लक्ष्मीनारायण जी ने भोजन करने से मना कर दिया | सभी वरिष्ठ नेता उनको समझा कर हार गए, किन्तु वे भोजन करने को तैयार नहीं हुए व बिस्तर पर बैठकर आंसू बहाते रहे |

भोजन परोसने की जिम्मेदारी से मुक्त होकर मैं उनके पास पहुँचा व उनसे कहा भैया यह जेल है तथा यहाँ सभी प्रकार के लोग हैं | जब भी तुम्हारी इच्छा हो मुझे बता देना अपन साथ मैं ही भोजन करेंगे | इसके बाद मैं नल पर जाकर हाथ मुंह धोने लगा | तभी लक्ष्मीनारायण जी खुद के साथ मेरी भी थाली कटोरी लेकर वहां पहुँच गए और बोले चलो भोजन करते हैं | वे भूल चुके थे अपनी सारी पीड़ा , सारा अपमान, अपना दुःख | उन्हें याद था तो केवल इतना कि मेरे भोजन न करने पर हरिहर भी भूखा रहेगा | मेरी आँखों मैं आंसू छलछला आये | आज भी वह प्रसंग मुझे द्रवित करता है | जेल से छूटने के बाद लक्ष्मीनारायण गुप्ता सन्यासी हो गए | वे आज स्वामी भैरवानंद सरस्वती के नाम से जाने जाते हैं तथा वर्तमान मैं कांगड़ा के पास उनका आश्रम है, पर कब तक ? पता नहीं ! बहता पानी, रमता जोगी !!

अन्य रोचक घटनाएं - 
(1) सत्याग्रह का दौर था, मुरैना में एक सत्याग्रही जत्था नारे लगाता हुआ जा रहा था ! उन्हें नारे लगाते देखकर रतीराम नामक अनुसूचित जाति के शासकीय कर्मचारी को भी अत्यंत जोश आ गया ! उन्हें एक अच्छा नारा सूझा, जो उन्होंने पर्ची पर लिखकर एक सत्याग्रही को दे दिया कि यह नारा लगाओ ! सीआईडी वालों को लगा कि वास्तविक नेता यही है व इसके मार्गदर्शन में ही यह सत्याग्रह हो रहा है ! नतीजतन गरीबमार हो गई, और रतीराम जी भी गिरफ्तार कर लिए गए ! मजा यह कि सत्याग्रही तो जमानत पर छूट गए, किन्तु मुख्य नेता मानकर रतीराम जी मीसाबंदी हो गए ! 
इस विकट परिस्थिति में कौन नहीं टूट जाएगा ! बेचारे रतीराम जी भी मानसिक रूप से अत्यंत ही विचलित हो गए ! वे भोजनोपरांत शीर्षासन लगाते ! जब उन्हें कोई टोकता तो कहते तुम लोग तो मूर्ख हो, अरे मैं दिमाग को भोजन पहुंचा रहा हूँ ! प्रतिदिन मैदान में हाथ फैलाकर हिलाते हुए दौड़ते, पूछने पर कहते कि उड़ने का अभ्यास कर रहा हूँ, देखना एक दिन उड़कर जेल की दीवार पार कर जाऊँगा ! 

(2) जेल में साहित्यकार जगदीश तोमर और डॉ. जदुपतिसिंह भी थे ! दोनों ही महानुभाव शिवपुरी वालों की मस्ती और मौज से अत्यंत प्रभावित होकर हमारे साथ हमारी ही बैरक में रहते थे ! लेकिन आखिर आजिज आकर जगदीश जी को कहना ही पडा कि मुझे यहाँ ऐसा प्रतीत होता है, मानो में चौबीसों घंटे किसी चौराहे पर बिता रहा हूँ, याकि महाराज बाड़े पर रहने लगा हूँ ! 

(3) शिवपुरी वालों की मस्ती ने एक दिन तो धमाल ही कर दिया ! कभी कभी हमारे कुछ मित्र सामान्य कैदियों से भंग प्राप्त कर लेते थे ! एक दिन भंग की तरंग में हमारे एक शिवपुरी के मित्र गेट के पीछे बने एक आले में छुप गए ! सब तरफ उनको ढूंढा जाने लगा कि आखिर वे गए तो कहाँ गए ? यहाँ तक कि जेल अधिकारियों तक भी बात पहुँच गई कि एक मीसाबंदी कम है ! जेल में पगली हो गई, अर्थात तेज घंटी जिसका अर्थ था अब सबको अपनी अपनी बैरक में पहुंचना है, सबकी गिनती होगी ! साथ ही सारे गेट बंद कर दिए गए ! जब गेट बंद हुए तब जाकर उन महाशय के दर्शन हुए, जो अत्यंत प्रफुल्लित मुद्रा में खिलखिला रहे थे, गोया उन्होंने कोई बहुत बड़ा तीर मार लिया हो ! 

(4) जेल में कुछ अप्रिय प्रसंग भी हुए ! एक वरिष्ठ छात्र नेता ने आरोप लगाया कि भोजन व्यवस्थापक विशेष भोजन के अवसर पर बने रसगुल्ले मिलाई के दौरान अपने घर वालों को पहुंचाते हैं ! यह नितांत मिथ्या आरोप था, किसी को भी उनके इस कथन पर भरोसा नहीं हुआ ! हाँ इतना अवश्य हुआ कि फिर विशेष भोजन में इस प्रकार का मिष्ठान्न बनना बंद हो गया, वहीं उक्त छात्र नेता का कैरियर चोपट हो गया ! जेल जीवन के बाद उन्हें कोई भी जिम्मेदारी संगठन ने नहीं सोंपी ! 

(5) मीसाबंदी परिवार की महिलाओं ने एक बार कलेक्टर शिवपुरी अतुल सिन्हा से भेंटकर मीसाबंदियों की रिहाई की मांग की ! उनमें मेरी पूज्य अम्मा भी थी ! अम्मा ने जब कलेक्टर को बताया कि मैं उनका इकलौता बेटा हूँ तो अतुल सिन्हा जी को मुझसे सहज सहानुभूति हो गई ! शायद उसका एक कारण यह भी था कि सिन्हा साहब भी अपने माता पिता की इकलौते पुत्र थे ! उनकी सद्भावना का मुझे पर्याप्त लाभ मिला ! यह जानते हुए भी कि मेरी कोई सगी बहिन नहीं है, उन्होंने मेरी ममेरी बहिनों को राखी पर मुझसे मिलने की अनुमति दी ! जिन बहिनों ने मुझे जेल के बाहर कभी राखी नहीं बाँधी, उन्होंने भी मुझे जेल में आकर राखी बांधी ! 

इतना ही नहीं तो एक अन्य प्रसंग पर भी उनकी सद्भावना का लाभ मुझे मिला ! मीसा में बंद होते हुए भी मुझ पर डीआईआर का मुक़दमा चलाया गया ! पहली तारीख पर मुझे लेने के लिए कोर्ट के आदेश पर चार सिपाही आये व मुझे ले जाकर न्यायालय शिवपुरी में पेश किया ! न्यायाधीश ने पूछा कि आपके वकील कौन हैं ? मैंने इनकार में सिर हिलाया और कहा कोई नहीं ! उस समय एक वकील साहब आरोप पत्र पढ़ रहे थे ! उसमें उल्लेख था कि मैंने महाविद्यालय परिसर में पर्चे बांटे ! साथ ही वह पर्चा भी नत्थी था ! वकील साहब ने वह परचा पढ़ा जो इस प्रकार था -

ओढ़कर क़ानून का चोगा खडी चंगेजशाही,
न्याय का शव तक कचहरी में नजर आता नहीं है !
कुन्तलों की छांह में बैठे न निन्दियाते रहो तुम,
फिर शहीदों को जगाने का ज़माना आ गया है !!

पर्चा पढ़कर वकील साहब के मुंह से बेसाख्ता निकला - इसमें गलत क्या है ! न्यायाधीश महोदय ने मुस्कुराकर कहा - तो क्या आप इनके वकील बन रहे हैं ?

वकील साहब एकदम घबराकर वहां से ऐसे रफूचक्कर हुए कि देखते ही बना ! लेकिन वहीं एक दूसरे वरिष्ठ वकील रामजीलाल चौकसे भी खड़े थी ! उन्होंने तुरंत आगे बढ़कर कहा कि मैं इनकी तरफ से पैरवी करूंगा और उन्होंने तुरंत अपना बकालत नामा लगा दिया !  इस पहली तारीख के बाद कलेक्टर महोदय ने आदेश प्रसारित कर दिया कि जब भी मेरी तारीख हो, मुझे तीन दिन की पैरोल दे दी जाए ! एक दिन पूर्व से एक दिन बाद तक ! फिर क्या था अपनी पौबारह हो गई ! न्यायाधीश महोदय ने भी लगभग हर माह तारीख लगाना प्रारम्भ किया और मुझे हर माह परिवार से मिलने का अवसर हाथ लग गया ! 

मेरी पेरोल के अवसर पर ही मेरा कमलागंज के जुझारू कार्यकर्ताओं से निकट संपर्क बढ़ा ! इन हिम्मती लोगों ने बैठक आयोजित कर मुझे बुलाया ! कंचन खटीक और मेवालाल इसके प्रारम्भिक आयोजक थे, किन्तु उसके बाद तो दलित समाज के अनेक कार्यकर्ताओं की वहां फ़ौज बन गई ! प्रकाश चौधरी, बाबूलाल कुशवाह, ओम प्रकाश खटीक, महेश खस आदि उसी दौरान संपर्क में आये !

(6) जेल में कई प्रकार की अनियमितताएं चलती हैं ! जेल के अस्पताल से बीमार कैदियों को मिलने वाला मक्खन दबंग मेट हथिया लेते और उसका घी बनाकर बेचते ! एक दिग्गज जनसंघ नेता वह घी खरीदकर मिलाई पर आने वाले परिजनों के हाथों घर भिजवाया करते ! असली घी और वह भी बाजार से एक बटा दस कीमत पर ! इसी प्रकार एक जनसंघ नेता को जब पैरोल मिली तो वे जेल का कम्बल अपने साथ ले गए और वापिसी पर कम्बल खोया बताकर दूसरे कम्बल की मांग की !

(7) जिन कार्यकर्ताओं को जेल जीवन में अनेक मर्मान्तक कष्ट झेलने पड़े, उनमें से एक थे दतिया के हरिहर श्रीवास्तव ! वे दतिया के वरिष्ठ वकील व विभाग संघ चालक रामरतन जी तिवारी के जूनियर थे और महज इसी कारण वे गिरफ्तार कर लिए गए ! परिवार के इकलौते कर्ता हरिहर श्रीवास्तव जब जेल में थे, तभी इलाज के अभाव में उनके मासूम बच्चे की मौत हुई ! अपने कष्ट को सीने में दबाये हरिहर चुपचाप दैनंदिन दिनचर्या में लगे रहे ! वे ही प्रतिदिन मीसाबंदियों को दूध बाँटते ! विमलेश जी ने तो उनका नाम ही दूध बाले भैया रख दिया था ! वे प्रतिदिन सुबह चिकटे जी के साथ में सौ सूर्य नमस्कार लगाते ! पसीने से दोनों की आकृति जमीन पर बन जाती ! चिकटे जी सदा उनका विशेष ध्यान रखते, उन्हें अंग्रेजी पढ़ाते, अधिकाँश समय अपने साथ रखते !

(8) अन्य संभागों के भी वरिष्ठ कार्यकर्ता समय समय पर ग्वालियर केन्द्रीय काराग्रह में रखे गए, उनमें से बैतूल के गोवर्धन दास खंडेलवाल, अन्ना जी नासेरी, रामयश द्विवेदी, बुरहानपुर के बृजमोहन मिश्रा जी, के अतिरिक्त महाकौशल के दिग्गज नेता विभाष बैनर्जी मुख्य हैं ! विभाष जी के अतिरिक्त जबलपुर के कुछ समाजवादी कार्यकर्ता भी आये, लेकिन जेल जीवन के बाद वे सभी जनता पार्टी और बाद में भाजपा के कार्यकर्ता बने ! इसमें विभाष दा का व्यक्तित्व ही प्रमुख कारण रहा !

(9) अंत में एक रोचक प्रसंग - नरेश जी जौहरी का दावा था कि प्लेंचिट की कटोरी पर अगर उनकी उंगली का स्पर्श होगा तो कटोरी नहीं घूमेगी ! और सत्य में ही उनके स्पर्श मात्र से कटोरी का मूमेंट रुक जाता था ! इसका कारण क्या है, उन्होंने कभी नहीं बताया, किन्तु डॉ. मराठे मजाक में कहते थे कि ?????? के सामने आने की कौन की हिम्मत होगी ?
हरिहर शर्मा

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