एक अकिंचन की राम कहानी - अथ जन्मदाता कथा

SHARE:

आम तौर पर आत्मकथाएं बड़े लोगों की लिखी जाती हैं ! लोगों की दिलचस्पी भी वे बड़े कैसे बने, यह जानने में होती है ! आखिर बड़ा कौन नहीं बनना चाहता...



आम तौर पर आत्मकथाएं बड़े लोगों की लिखी जाती हैं ! लोगों की दिलचस्पी भी वे बड़े कैसे बने, यह जानने में होती है ! आखिर बड़ा कौन नहीं बनना चाहता ? महाजनो येन गतः सा पन्थः ! वे किस मार्ग पर चलकर बड़े बने, यह जानकर हम भी बड़े कैसे बनें, यह मानसिकता भी कुछ की तो होती ही होगी ! यह अलग बात है कि कुछ ही ऐसे होते हैं, जो खुद लिखते हैं, अधिकाँश बड़े लोगों की आत्मकथाएं पेशेवर लिक्खाडों द्वारा विरचित होती हैं !

पर भला हो नवप्रस्फुटित सोशल मीडिया का कि अतिशय साधारण लोग भी आत्मकथ्य करते करते लोगों का ध्यान खींचने लगे ! एक मित्र ने मुझ जैसे अकिंचन को जब आत्मकथा लिखने को प्रेरित किया, तो आश्चर्य भी हुआ, पर उससे कहीं अधिक प्रसन्नता हुई ! आयु की आख़िरी पायदान पर खड़े, एक घोषित सीनियर सिटीजन के जीवन वृत्त में भी कोई दिलचस्पी ले सकता है भला ! वह भी ऐसा बुजुर्ग जिसने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा, जिसके नाम पर कोई चल अचल संपत्ति भी नहीं है !

सच कहूं तो मित्र महोदय ने मन चाही मुराद पूरी कर दी ! लिखने की इच्छा तो काफी समय से मन में दबी थी, पर सोचता था कि क्या फायदा ? लिखूंगा तो छापेगा कौन ? आत्मकथा छप भी गई, तो पढेगा कौन ? पर अब सोचा कि चलो सोशल मीडिया पर तो प्रसारित की ही जा सकती है अपनी राम कहानी ! बला से कोई पढ़े, पढ़े, ना पढ़े, तो ना पढ़े ! अपना क्या जाता है, लिखे देते हैं ! कम से कम जिन मित्र ने आग्रह लिया है, वे तो पढेंगे !

तो लीजिये प्रस्तुत है – एक अकिंचन की राम कहानी का प्रथम सोपान – मेरे जन्मदाता !

सच कहूं तो यहाँ आकर लिखते लिखते मुझे कुछ पल रुकना पड़ा ! आखों में धुंधला पन जो आ गया था ! जिनका स्मरण मात्र रोमांचित करता है, बिव्हल करता है, उनके विषय में लिखना, सचमुच विलक्षण और अद्भुत अनुभूति है ! 

यह कहानी है एक अनाथ बालक मिंटू की, जिनकी मां जन्म देकर होश संभालने से पहले ही इस फानी दुनिया से रुखसत हो गईं ! पिता ने दूसरी शादी कर ली, और बिमाता ने बच्चे को अपनाने से इनकार कर दिया ! पिता भीखाराम जी का इसमें कोई कसूर नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उस समय उनकी आयु ही महज 20-21 वर्ष रही होगी ! मैं बात कर रहा हूँ 1912 – 13 के दौर की जब 18 वर्ष कि आयु में पिता बनना आम बात थी ! 

बिन माँ के बच्चे की परवरिश का जिम्मा संभाला उनकी दादी ने ! लेकिन दुर्भाग्य ने पीछा नहीं छोड़ा ! मिंटू महज सात आठ बरस के हुए थे कि दादी भी किनारा कर गईं, भगवान के घर से उनका भी बुलावा आ गया ! शिवपुरी के नजदीक सतनबाड़ा के नजदीक बसा वह गाँव प्लेग के चलते बेचिराग हो गया ! अब मिंटू की परवरिश का अनचाहा जिम्मा आ गया, उनके चाचाओं पर ! सहज कल्पना की जा सकती है कि क्या दशा हुई होगी बालक की ! एक बानगी देखिये ! कुए से पानी भरते समय एक दिन रस्सी टूट गई और बाल्टी कुए में जा गिरी ! अब इसमें बालक का क्या कसूर, किन्तु चाचा जी ने शेष बची रस्सी से ही जमकर धुनाई की ! रात का भोजन नहीं मिला सो अलग ! रोते रोते मिन्टू अपनी गुदड़ी पर चुपचाप सो गए !

लेकिन वाह रे ऊपर वाले, तेरी लीला अपरम्पार ! उसके होते कोई अनाथ कैसे हो सकता है ? वह तो सबका पालनहार है ! एक देवदूत की नजर मिंटू पर पड़ी और उन्होंने अनाथवत मिंटू को गोद ले लिया और नया नाम दिया पूर्णचन्द्र उर्फ़ पूरण ! यह देवदूत थे शिवपुरी के नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी नत्थीलाल जी !

अब दो शब्द नत्थीलाल जी के वेषय में –

स्व.नत्थीलाल जी

ग्वालियर के महाराज माधवराव जी सिंधिया को सीपरी का सुरम्य प्राकृतिक वातावरण अत्यंत प्रिय था ! उन्होंने सीपरी कसबे को शिवपुरी नाम देकर बसाने का निश्चय किया ! उनके सौतेले भाई बलवंतराव जी ने भी इस कार्य में रूचि ली व राजस्थान के कुछ संपन्न धनपतियों को शिवपुरी में बसने के लिए आग्रह किया ! उनके आग्रह का मान रखते हुए कुछ वैश्य समाज के लोग आकर शिवपुरी में बसे तथा यहाँ व्यापार व उद्योगों की नींव रखी ! इनमें से ही एक परिवार आज बन्गलेवाला परिवार कहलाता है ! ये लोग राजस्थान से आये तो अपने साथ एक ब्राह्मण किशोरीलाल जी को भी साथ लाये ! इस परिवार ने शिवपुरी में गणेश आयल मिल के नाम से उद्योग तो प्रारम्भ किया ही, एक भव्य नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर का भी निर्माण करवाया तथा किशोरीलाल जी को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया ! 

किशोरीलाल जी के इकलौते पुत्र थे नत्थीलाल जी ! परम शिवभक्त नत्थीलाल जी ने आजीवन विवाह नहीं किया ! किशोरीलाल जी के देहावसान के पश्चात मंदिर की सेवापूजा के अतिरिक्त वे बंगलेवालों की भोजन व्यवस्था भी संभालते थे ! यह पढ़कर अगर किसी को यह लगता है कि वे सेठ जी के कर्मचारी थे, तो यह अंदाज गलत होगा ! उनकी भूमिका कुल पुरोहित जैसी थी ! जब तक पंडित जी स्वयं भोजन ग्रहण नहीं कर लेते, तब तक किसी को भोजनालय में प्रवेश की अनुमति नहीं होती थी ! यह अलग बात है कि उन्होंने कभी कोई पारिश्रमिक भी नहीं लिया ! हाँ शादी विवाह आदि समारोहों में अवश्य प्रथम भेंट पंडित जी को ही प्राप्त होती !

अस्तु पंडित नत्थीलाल जी ने बालक मिंटू को गोद लिया, उसके बाद तो मिंटू उपाख्य पूरन याकि पूर्णचंद्र के दिन फिर गए ! राजसी खानपान, शिक्षा की समुचित व्यवस्था, खेलकूद आदि की सुविधा ने मानो उनकी दुनिया ही बदल दी ! किशोर पूरन सुमधुर बांसुरी बादन के अतिरिक्त फूटबोल बोलीबाल के भी बेहतरीन खिलाड़ी बन गए ! उनकी टीम हमेशा फूटबोल में उन्हें फोरवर्ड रखती तो बोलीबोल में भी उन्हें सेंटर में रखा जाता ! 

मूल परिवार ने भारतीय विद्यालय के नाम से पोहरी कसबे के नजदीक एक गाँव गोबर्धन में विद्यालय प्रारम्भ किया ! पूर्णचंद्र जी ने पहले तो वहां अध्ययन किया, उसके बाद कुछ समय अध्यापन कार्य भी किया ! इसी दौरान ग्वालियर के उपनगर मुरार के एक प्रतिष्ठित परिवार में उनका विवाह हो गया ! पत्नी कौशल्या देवी जितनी आकर्षक थीं उतनी ही खुश मिजाज व बुद्धिमान भी ! विवाह के समय पूर्णचंद्र जी की आयु 18 वर्ष तथा कौशल्या देवी की आयु महज 13 वर्ष थी ! 

नत्थीलाल जी वस्तुतः देवदूत ही थे ! उन्होंने न केवल अनाथ मिंटू को हरफनमौला पूर्णचंद्र बनाया, बल्कि एक अनाथ बालिका गिन्दोडी बाई का भी कन्यादान लिया व उन्हें अपनी धर्म की बेटी बनाया ! यह परिवार भी आज शिवपुरी का एक जाना माना परिवार है ! गिन्दोडी बाई के एक सुपुत्र श्री शीतल चन्द्र मिश्रा तो शिवपुरी नगर पालिका के सीएमओ भी रहे !

समय बीतता गया, पूर्णचंद्र जी कस्टम में क्लर्क बन गए तथा बाद में जब कस्टम भंग हुआ तो सेल्सटेक्स विभाग में एलडीसी बन गए ! समय के प्रवाह में देवदूत नत्थीलाल जी भी ओझल हो गए ! एक दिन मंदिर में पूजन के उपरांत प्रणाम करने को झुके और दिव्य ज्योति में विलीन हो गए ! महापुरुष इसी प्रकार अपना जीवन चक्र पूर्ण करते हैं !

बाबूजी स्व. पूर्णचंद्र शर्मा

अब सेल्सटेक्स कर्मचारी के साथ साथ पूर्णचंद्र जी महादेव मंदिर के पुजारी का दायित्व भी निर्वाह करने लगे ! अभी तक उनकी आवास व्यवस्था बंगले के ही एक भाग में थी, किन्तु मंदिर की व्यवस्था सुचारू चले इस दृष्टि से मंदिर के ही एक हिस्से में उनके लिए विशेष रूप से एक कक्ष बनवा दिया गया ! बंगले वाले परिवार के तीनों भाई बालकिशन जी, राम किशन जी व घनश्याम जी उन्हें भी अपना भाई ही समझते थे ! सबसे छोटे घनश्याम जी हमउम्र होने के कारण मित्रवत थे !

समय बीतता गया ! युगल दंपत्ति को अगर कोई कष्ट था तो केवल यह कि विवाह के 20 – 22 वर्ष बाद भी कोई संतान नहीं हुई ! दोनों रात दिन भगवान् से प्रार्थना करते कि कमसेकम नत्थीलाल जी का वंश चलाने को एक संतान तो हो ! कौशल्या देवी नियमित मन्त्र जाप करतीं –

देवकीसुत गोविन्द बासुदेव जगत्पते,
देहि मे तनयं कृष्ण, त्वां हम शरणं गतः !

आखिर कब तक नहीं पसीजते ? ईश्वर को भी दया आ ही गई ! कौशल्या देवी ने 36 वर्ष की आयु में पुत्र को जन्म दिया ! आज के समय के समान चिकित्सकीय सुविधाएँ तो थीं नहीं ! अधिक आयु के कारण रक्तस्त्राव अत्याधिक हुआ, जिसके चलते बाद में नेत्र ज्योति मंद पड़ गई ! लश्कर नई सड़क पर स्थित त्रिवेदी नर्सिंग होम में 1 दिसंबर 1953 को इस अकिंचन हरिहर ने मां की गोद में स्थान पाया और धरती माँ को स्पर्श किया !

COMMENTS

BLOGGER: 1
Loading...
नाम

अखबारों की कतरन,40,अपराध,3,अशोकनगर,24,आंतरिक सुरक्षा,15,इतिहास,158,उत्तराखंड,4,ओशोवाणी,16,कहानियां,40,काव्य सुधा,64,खाना खजाना,21,खेल,19,गुना,3,ग्वालियर,1,चिकटे जी,25,चिकटे जी काव्य रूपांतर,5,जनसंपर्क विभाग म.प्र.,6,तकनीक,85,दतिया,2,दुनिया रंगविरंगी,32,देश,162,धर्म और अध्यात्म,244,पर्यटन,15,पुस्तक सार,59,प्रेरक प्रसंग,80,फिल्मी दुनिया,11,बीजेपी,38,बुरा न मानो होली है,2,भगत सिंह,5,भारत संस्कृति न्यास,30,भोपाल,26,मध्यप्रदेश,504,मनुस्मृति,14,मनोरंजन,53,महापुरुष जीवन गाथा,130,मेरा भारत महान,308,मेरी राम कहानी,23,राजनीति,90,राजीव जी दीक्षित,18,राष्ट्रनीति,51,लेख,1126,विज्ञापन,4,विडियो,24,विदेश,47,विवेकानंद साहित्य,10,वीडियो,1,वैदिक ज्ञान,70,व्यंग,7,व्यक्ति परिचय,29,व्यापार,1,शिवपुरी,904,शिवपुरी समाचार,324,संघगाथा,57,संस्मरण,37,समाचार,1050,समाचार समीक्षा,762,साक्षात्कार,8,सोशल मीडिया,3,स्वास्थ्य,26,हमारा यूट्यूब चैनल,10,election 2019,24,shivpuri,2,
ltr
item
क्रांतिदूत : एक अकिंचन की राम कहानी - अथ जन्मदाता कथा
एक अकिंचन की राम कहानी - अथ जन्मदाता कथा
https://2.bp.blogspot.com/-Ig-DaMbNdlI/VwjBVX_l6tI/AAAAAAAACyc/_oT0Lt8bgEwG1C5pdNnSLaJktVD7aS1qw/s400/7.jpg
https://2.bp.blogspot.com/-Ig-DaMbNdlI/VwjBVX_l6tI/AAAAAAAACyc/_oT0Lt8bgEwG1C5pdNnSLaJktVD7aS1qw/s72-c/7.jpg
क्रांतिदूत
https://www.krantidoot.in/2016/04/autobiography-of-harihar.html
https://www.krantidoot.in/
https://www.krantidoot.in/
https://www.krantidoot.in/2016/04/autobiography-of-harihar.html
true
8510248389967890617
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS CONTENT IS PREMIUM Please share to unlock Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy