अब यह कहना कि मैं मातापिता का लाडला था, अनावश्यक है, वह तो स्वाभाविक ही था ! ढाई आदमियों का परिवार, अम्मा बाबूजी और मैं ! पांच वर्ष का ह...
अब यह कहना कि मैं मातापिता का लाडला था, अनावश्यक है, वह तो स्वाभाविक ही था ! ढाई आदमियों का परिवार, अम्मा बाबूजी और मैं ! पांच वर्ष का होते होते नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी जी का यह बेटा, हरदिल अजीज हो गया ! हमउम्र मित्रों में जहाँ धनपतियों के सुपुत्र थे, तो फाकाकशी में गुजारा करने वालों के लखते जिगर भी ! आखिर वह स्थान ही ऐसा था, जहाँ सब लोग समान भाव से आते थे ! दर्जनों चाचा, चाची, ताऊ, ताई, बाबा, दादी, जो मंदिर आते, उनसे सहज रिश्ता जुड़ जाता ! यह इक तरफा व्यापार नहीं था, आत्मीयतापूर्ण सम्बन्ध जो उस समय बने, जीवन के इस उत्तरार्द्ध तक यथावत हैं ! यह अलग बात है कि मुझे उंगली पकड़कर अपने साथ विद्यालय ले जाने वाले पुत्तन अब घनश्याम हैं ! हाँ मेरे लंगोटिया यार श्रीकिशन आज भी मुझे मुन्ना कहकर ही पुकारते हैं !
छः वर्ष का हुआ कि तभी अचानक बाबूजी का ट्रांसफर आदेश आ गया ! शासकीय कर्मचारियों के साथ तो यह हादसा होता ही रहता है ! किन्तु उसके कारण बच्चों पर क्या गुजरती है, यह मैंने अनुभव किया है ! मैंने न कभी अपने जीवन में पतंग उडाई, न कंचे खेले, ना तैरना सीख पाया और नाही किसी खेल या सांस्कृतिक गतिविधि में भाग ले पाया ! यह बाबूजी के बार बार ट्रांसफर के कारण हुआ !
बाबूजी का पहला ट्रांसफर राजगढ़ हो गया था ! पहले तो विचार किया कि नौकरी से त्यागपत्र दिए देते हैं, मंदिर की सेवापूजा छोड़कर क्यों आया जाए, किन्तु फिर बंगलेवाले ताऊजी ने समझाया कि सरकारी नौकरी बड़ी मुश्किल से मिलती हैं, छोड़ना समझदारी नहीं है ! मंदिर की व्यवस्था हम कर लेंगे और कर भी दी गई ! जिन महाराष्ट्रीयन पंडित जी को इस कार्य के लिए रखा गया, उन्हें स्पष्ट कर दिया गया कि जब भी बाबूजी लौटेंगे मंदिर की पूजा व्यवस्था वे ही संभालेंगे ! उन्हें केवल टेम्परेरी रखा गया है !
अभी राजगढ़ पहुंचे बमुश्किल छः माह ही हुए थे कि एक और स्थानान्तरण आदेश प्राप्त हुआ ! इस बार बाबूजी को शाजापुर जाने का फरमान थमाया गया ! राजगढ़ की स्मृति बस इतनी ही शेष है कि जिस मकान में हम रहे, उसके दालान में एक अंजीर का पौधा था ! तथा साप्ताहिक हाट वाले दिन ही हरी सब्जी घर आती थी, अन्यथा तो बस दाल या आलू !
शाजापुर पहुंचकर पहले कुछ समय कसेराओली के एक मकान में तथा बाद में मारवाडा सेरी में भागीरथ पेंटर के मकान में हम लोग रहे ! कसेराओली में रहते समय एक रात बारिश हुई ! मैंने देखा कि मकान के बाहर गली में एक कुतिया मर गई है, और उसके दो पिल्लै क्यांव क्यांव करते बिलख रहे हैं ! मुझे दया आई, और बिना अम्मा को बताये, उन बच्चों को अन्दर लाकर चूल्हे की राख में छुपा दिया ! सुबह अम्मा चूल्हे में छुपाने को लेकर नाराज हुईं, किन्तु उन बच्चों को फिर दूध भी पिलाया ! उस समय तक उनकी आँखें भी नहीं खुली थीं अतः रुई की बत्ती की मदद से किसी प्रकार उनको दूध पिलाया गया ! खैर वे बच गए और बाद में जब हम लोग मारवाडासेरी रहने पहुँच गए, उसके बाद भी उन पिल्लों ने मुझे स्मरण रखा ! वे बड़े होकर काफी खौफनाक दिखाई देने लगे थे, किन्तु जब भी मैं उधर से गुजरता वे पूंछ हिलाते हुए, मेरे चारों तरफ चक्कर लगाते, मेरे कन्धों पर पैर रखकर खड़े हो जाते ! देखने वालों का कलेजा मुंह को आता कि कहीं ये दोनों खतरनाक कुत्ते इस बच्चे को नुक्सान न पहुंचा दें, किन्तु न मुझे डर लगता और न वे मुझसे लाड दिखाने से चूकते !
भागीरथ जी अधिकाँश समय इंदौर रहा करते थे, उनकी धर्म पत्नी लीला बाई अम्मा की मुंहबोली बेटी बन गईं ! उन दिनों घरों में बिजली नहीं थी ! चिमनी की रोशनी में रहना मेरे लिए बड़े कष्ट का विषय था ! कहाँ महादेव मंदिर का खुशनुमा माहौल, और कहाँ खपरैल का आवास ! कच्चे शौचालय में छिपकलियों की भरमार थी ! पहले बाबूजी दीवार थपथपाकर भगाते, तब कहीं जाकर यह डरपोक हरिहर, उसमें अन्दर दाखिल होता ! डरपोक कैसा भी रहा, किन्तु पढ़ने का शौक बचपन से ही लग गया ! पांचवीं कक्षा तक आते आते बाल पत्रिकायें जैसे चंदामामा, पराग, नंदन, चम्पक तो नियमित पढ़ता ही, साथ ही साथ लघु क्रमिक उपन्यास मधुप भी मैं नियमित पढ़ता ! उसका नायक बटमार अरुण मेरे बालमन का जीवित चरित्र सा बन गया था !
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पूज्य अम्मा श्रीमती कौशल्या देवी |
इन सब में अविस्मरणीय रही शाजापुर के लोगों की आत्मीयता ! जल्द ही अम्मा वहां की आध्यात्मिक गतिविधियों में रच बस गईं ! नित्यानंद स्वामी आश्रम का सत्संग हो अथवा रामायणी हरिहर महाराज की रामकथा, अम्मा हर गतिविधि में सम्मिलित होतीं थीं | मारवाडासेरी के जिस मकान में हम रहते थे, उसके ठीक पीछे था लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर ! हम दोनों पिता पुत्र नियमित संध्या आरती में सम्मिलित होते ! अन्य लोगों के साथ समवेत आरती व राम कृष्ण स्तुतियाँ भाव विभोर कर देतीं ! इसी प्रकार अक्सर हम लोग रोड़ेश्वरी माता के दर्शनों को भी जाते ! मंदिर के पीछे एक छोटा सा शिव मंदिर भी था, जहाँ कम ही लोग जाते थे ! हम लोग उस शांत वातावरण का लाभ लेकर मनोयोग से शिव महिम्न व "नमामि शमीशान, निर्वाण रूपं" आदि स्तोत्रों का पाठ करते ! यही कारण था कि दस वर्ष की आयु में ही मुझे राम रक्षा स्तोत्र व शिव महिम्न स्तोत्र कंठस्थ हो गए थे !
लोग अम्मा बाबूजी को अत्रि अनुसुईया की जोडी कहा करते थे ! बाबूजी की कार्य कुशलता को देखकर सेल्सटेक्स ऑफीसर ने उन्हें अपना रीडर नियुक्त कर दिया ! उन दिनों रीडर की पोस्ट अर्थात ऊपरी इनकम का बेहतरीन जरिया ! किन्तु बाबूजी तो दूसरी ही मिट्टी के बने हुए थे ! उनकी ईमानदारी की धाक थी ! घर का वातावरण बच्चों को कैसा प्रभावित करता है, इसे प्रदर्शित करता है यह रोचक वाकया ! एक व्यापारी ने डाबर के दो बहुत सुन्दर कैलेण्डर बाबूजी को दिए ! संभवतः मैं उस समय तीसरी कक्षा का विद्यार्थी रहा होऊंगा ! मैंने रो रोकर घर सर पर उठा लिया ! मेरा आरोप था कि आपने ये कैलेण्डर रिश्वत में लिए हैं ! अंततः बाबूजी को वे कैलेण्डर वापस करने पड़े, तब ही मैं शांत हुआ ! अब सोचता हूँ कि क्या दिन थे वे भी और क्या था मैं भी ? बाद में जब सरकारी कार्यालयों में अपने जायज काम के लिए भी रिश्वत देनी पडी, तब वह प्रसंग याद कर केवल खिसियाई मुस्कान ही चहरे पर आती थी ! उफ़ !
कक्षा पांच तक की शिक्षा प्राथमिक विद्यालय क्रमांक पांच में हुई उसके बाद हलाल्पुरा माध्यमिक विद्यालय में कक्षा सात तक अध्ययन किया ! अनेक मित्र बने ! प्राथमिक विद्यालय के मित्र अरविन्द नागर तो केवल स्मृतियों में ही शेष हैं ! हाँ हलालपुरा माध्यमिक विद्यालय के दो मित्र पिछले दिनों फेसबुक की मेहरवानी से फिर मिल गए हैं ! श्री अशोक व्यास भोपाल में बेंक सेवा से सेवा निवृत्त हुए हैं तो एस.एस. नागर शाजापुर में ही हैं ! अलाउद्दीन कुरेशी से काफी समय तक खतोकिताबत रही, किन्तु अब वे भी इस दुनिया से जा चुके हैं, यह जानकारी मिली ! मुकेश दुबे, मोहम्मद और गोपाल राठी भी स्मृतियों में हैं ! शाजापुर से जब गुना स्थानान्तरण हुआ, तब भी एक यादगार प्रसंग हुआ ! कक्षा सात के किसी विद्यार्थी का विदाई समारोह ? जी हाँ यह आत्मीयता और स्नेह प्रदर्शन का बेजोड़ प्रसंग था ! उस समय का वह चित्र अवश्य धूमिल हो गया है, किन्तु उसकी स्मृति जीवन की अमिट थाती है !
कक्षा आठ से कक्षा दस तक गुना रहा ! चन्द्र प्रकाश शर्मा, गोपाल आचार्य, प्रकाश जैन एडवोकेट, गिर्राज माहेश्वरी, सरदार सुरेन्द्र पाल सिंह खनूजा आदि के साथ अध्ययन हुआ, किन्तु अपने से बड़ी आयु के बृजेश उपाध्याय से मित्रता अनूठी थी, सबसे आत्मिक ! गुना में कक्षा दस की बोर्ड परिक्षा में मेरे अंक कक्षा में सर्वाधिक थे !
तभी बाबूजी का सेवा निवृत्ति का समय आ गया ! हम वापस शिवपुरी आ गए और कुछ नानुकुर के बाद मंदिर के पुजारी जी ने वापस बाबूजी को दायित्व सोंप दिया !
यह वह समय था जो मेरे जीवन का टर्निंग पॉइंट बना ! शिवपुरी आने के बाद मेरा सम्बन्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा ! और कक्षा दस तक प्रथम श्रेणी में आने वाला विद्यार्थी कक्षा ग्यारह में द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ ! उन दिनों मेट्रिक में प्राप्त अंकों के आधार पर ही इंजीनियरिंग में प्रवेश प्राप्त होता था,आजकल के समान पीईटी की आवश्यकता नही थी ! अतः कक्षा ग्यारह के बाद घर में बहस हुई कि मुझे इंजीनियरिंग की पढाई के लिए ग्वालियर भेजा जाए अथवा नहीं ? यहाँ यह उल्लेख करना उचित होगा कि शिवपुरी आगमन तक हम पिता पुत्र साथ साथ भोजन करते थे ! बाबूजी ही ग्रास मेरे मुंह में देते थे ! अपने हाथ से खाने तक का अभ्यास नहीं था, तो स्वाभाविक ही इंजीनियरिंग की पढाई के लिए ग्वालियर भेजने को कोई तैयार नहीं हुआ, न अम्मा न बाबूजी !
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मेरी जीवनसंगिनी का नव वधु रूप |
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