दलित मुस्लिम गठजोड़ के प्रयास - दूरगामी परिणाम !



तेलगू दैनिक “साक्षी” में प्रकाशित आज का ताजा समाचार चोंकाने वाला है ! केरल बेस्ड मुस्लिम लीग के नेताओं ने आंध्रप्रदेश के गुंटूर जाकर रोहिथ बेमुला की माँ राधिका वेमुला से भेंट की और उन्हें दस लाख रुपये प्रदान किये ! इतना ही नहीं तो उन्होंने रोहिथ के परिवार को उनके भवन निर्माण का पूरा खर्च उठाने का भी वायदा किया ! 

स्मरणीय है कि हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहिथ ने जनवरी में आत्महत्या कर ली थी ! इस अवसर पर मुस्लिम लीग के नेता थंगल ने आरोप लगाया कि जब से भाजपा केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई है, दलितों और मुसलमानों पर लगातार हमले हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इस तरह के हमलों का सामना करने के लिए तैयार है और वे पीड़ितों का समर्थन जारी रखेंगे ।

राजनीति में कोई भी राजनेता निःस्वार्थ कुछ नहीं करता ! तो सीधी सी बात है कि केरल मुस्लिम लीग भी हातिमताई तो होने से रही कि – नेकी कर दरिया में डाल ! उनका निश्चित राजनीतिक एजेंडा है ! और वह है भारत के दलित समाज को शेष हिन्दू समाज से तोड़ कर अलग करना ! वे मुसलमान बन जाएँ तो सबसे अच्छा, और न भी बनें तो कमसेकम हिन्दू तो ना ही रहें !

पिछले दिनों रोहिथ के परिवार ने हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध बन जाने की घोषणा की थी ! यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि भय व प्रलोभन से धर्मांतरण को कई राज्यों ने अपराध माना है ! यह भी याद रखने की जरूरत है कि महात्मा गांधी के पुत्र जब कुछ समय के लिए मुसलमान बन गए थे, तब गांधी जी ने भी अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि, उनके पुत्र ने तो अपनी बोली लगाई हुई थी, जिसने सबसे ज्यादा कीमत दी, वह उसके साथ हो लिया ! कुछ इसी प्रकार का घटनाचक्र आज भी चलता दिखाई दे रहा है ! कुछ दिन पूर्व रोहिथ के भाई को भी दिल्ली सरकार ने नौकरी देने की पेशकश की थी ! इस निर्णय को बाद में न्यायालय में चुनौती भी दी गई ! और आज का ताजातरीन समाचार यह है कि दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया है कि रोहिथ का भाई दिल्ली सरकार द्वारा दी गई नौकरी करने का इच्छुक ही नहीं है ! क्यों करे नौकरी ? अल्ला देवे खावे को तो कुतका जाय कमावे को ! खैर मूल सवाल यह कि क्या रोहिथ के परिवार को इन लोगों द्वारा हिन्दू न रहने का पुरस्कार दिया जा रहा है ?

कतिपय धर्मनिरपेक्ष तबका सवाल उठाता है कि कोई हिन्दू रहे न रहे, इसमें बहस और चिंता की क्या बात है ? यह नितांत व्यक्तिगत मामला है ! “जिस दिए में तेल होगा, बस वही जल पायेगा” ! लेकिन वे भूल जाते हैं कि सर्वधर्म समन्वय की जिस आधार भावभूमि पर भारत में शान्ति और सद्भाव कायम है, वह हिन्दू चिंतन ही है ! पाश्चात्य जगत भी भौतिक चकाचोंध से त्राण पाने के लिए इधर ही निहारता है ! मुस्लिम उग्रवाद तो मानवता के लिए केवल संकट ही पैदा करता दिखाई दे रहा है ! इसीलिए विश्व में अल्पसंख्यक होते हुए भी हिंदुत्व का चिंतन प्रासंगिक व सहज स्वीकार्य है ! 

केवल वोट की राजनीति की खातिर दलित समाज को हिन्दू से विलग करने का प्रयास चिंतनीय व निंदनीय अपराध है ! जहाँ जहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक हुआ, वहां वहां अशांति है और राष्ट्रघात परवान चढ़ रहा है ! जिसे समझकर सतर्क होना हिन्दू समाज के साथ साथ भारत की सरकार को भी आवश्यक है ! सामाजिक समरसता की पहली और अनिवार्य शर्त हिन्दू बहुसंख्या ही है !

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