28 मई को मोदी सरकार के दो वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर इण्डिया गेट पर “जरा मुस्कुरा दो” कार्यक्रम आयोजित किया जाने वाला है ! सदी के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन इस कार्यक्रम का संचालन करेगे ! स्वाभाविक ही कांग्रेस को इस पर आपत्ति है, क्योंकि अमिताभ बच्चन की उपस्थिति अर्थात कार्यक्रम की अपार सफलता ! कांग्रेस प्रवक्ता रणजीत सिंह सुरजेवाला ने कहा कि पनामा पेपर लीक्स में नाम आने के बाद अमिताभ का इस प्रकार सरकारी आयोजन को होस्ट करना जाँच एजेंसियों को स्पष्ट संकेत होगा !
अमिताभ को थोड़ी देर एक तरफ छोड़कर आईये मोदी सरकार के दो वर्ष पर नजर दौडाएं ! भारत जैसे विशाल देश की सरकार एक व्यक्ति नहीं चला सकता, यह संयुक्त प्रयास होता है ! इसमें केन्द्रीय मंत्रियों और राज्यों के मुख्यमंत्रियों की भी भूमिका होती है ! अब मैं चूंकि मध्यप्रदेश का निवासी हूँ तो शुरूआत मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री से ही करता हों ! उनके विषय में आज हरिशंकर व्यास जी लिखते हैं –
शिवराजसिंह की सक्रियता का पहलू बहुत गहरा है। हां, हालिया दशकों में ऐसा दूसरा मुख्यमंत्री अपने को याद नहीं आता है जो जनता के बीच इतना रमता रहा जितना शिवराजसिंह रमते हैं। कल्पना नहीं हो सकती है कि कोई मुख्यमंत्री 30 दिन के सिंहस्थ में 20 दिन उज्जैन पर फोकस रखे। साधु-संतों और आस्थावानों के लिए अपने को चौबीसों घंटे तत्पर बताए। अब कोई सोचे कि जनता की नब्ज पर हाथ रख जनता को अपना बनाए रखने का यह खेल है। है तो है। यदि इसे कोई राजनीति कहे, सबको अपना बनाते हुए सबको टोपी पहनाना, सबका मामा बनना बताए तो यह सियासी समझदारी ही कहलाएगी। राजनीति तो कुल मिला कर जनता का दिल ही जीतना है। लोगों से बातचीत, उनके मूड को बूझ अपना मानना है कि मध्यप्रदेश में चुनाव भले ढाई साल बाद हो मगर उज्जैन मंडल और मालवा में तो शिवराजसिंह ने इस सिंहस्थ से नई राजनैतिक जमीन बनाई है। उनकी भागदौड़, सक्रियता ने यह आश्चर्य बनवाया है कि कोई मुख्यमंत्री क्या इतना भागा दौड़ा रह सकता है! सिंहस्थ का समापन हुआ तो अगले दिन उज्जैन पहुंच कर साधु-संतों का चरणस्पर्श, उन्हें धन्यवाद तो अब 29 मई को उज्जैन शहर की पदयात्रा करके, जनता के आगे हाथ जोड़ धन्यवाद का भी प्रोग्राम। मतलब स्थानीय जनता हो, साधु-संत हों या डुबकी लगाने पहुंचे आस्थावान हों, सबके आगे, सबके सामने विनित भाव शिवराजसिंह चौहान ने अपने को जैसे उपस्थित रखा उससे जनता में उनकी जो पुण्यता बनी होगी उसे भोपाल के कांग्रेसी भले समझे हों मगर दिल्ली का कांग्रेस आलाकमान इसे कतई नहीं समझ सकता। आखिर उसने अपने आपको हिंदू निरपेक्ष सेकुलर जो बना डाला है। उसे तो सिंहस्थ का ख्याल तक नहीं आया होगा !
उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि मध्यप्रदेश के जननायक शिवराज आज भी बने हुए हैं ! अब मोदी सरकार की बात ! स्वच्छ भारत, नदी बचाओ, बेटी पढाओ जैसे सामाजिक मुद्दों के साथ साथ रेल अधोसंरचना में विदेशी पूंजी निवेश, रक्षा सौदों में पारदर्शिता के साथ भारत की सामरिक क्षमता वृद्धि, कोयला ब्लोक की सफल नीलामी, मेक इन इण्डिया, स्मार्ट सिटी, उज्वला योजना जैसी अनेक योजनाओं में भारत की सर्वांगीण उन्नति का मोदी सपना साफ़ झलकता है |
किन्तु सांसद आदर्श गाँव योजना का हश्र क्या दर्शाता है ! योजना थी कि प्रत्येक सांसद अपने कार्यक्षेत्र अपने संसदीय क्षेत्र में एक गाँव गोद लेकर उसे मोडल के रूप में विकसित करे, आदर्श और आत्मनिर्भर गाँव बनाए ! ताकि आसपास के अन्य ग्रामवासी भी प्रेरित होकर उसका अनुसरण करें ! किन्तु हुआ क्या ? क्या सांसदों ने इस कार्य में अपेक्षित रूचि ली ? उत्तर नकारात्मक ही है ! इस योजना का असफल होना, दर्शाता है कि मोदी जी एक अकेला चना हैं, जो भाड़ फोड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं ! उनके पास सक्षम सहयोगियों का नितांत अभाव है ! बेशक शिवराज जैसे मुख्यमंत्री अपवाद हैं ! श्री वेदप्रताप वैदिक जी ने सरकार की प्रशंसा भी की है तो कमियाँ भी गिनाई हैं –
जन-धन, स्वच्छता, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और भी न जाने क्या-क्या! किसी अन्य सरकार ने क्या कभी सिर्फ दो साल में इतने अभियान चलाए? मनमोहन सरकार ने मनरेगा चलाकर ग्रामीण मजदूरों को सीधा लाभ पहुंचाया तो मोदी ने ऐसी दर्जन भर योजनाएं चला दीं। इसे कहते हैं, राहत की राजनीति। विपक्षी इसे रिश्वत की राजनीति भी कह सकते हैं। लेकिन तुम डाल-डाल तो हम पात-पात! इसी तरह दो साल में जितने दौरे मोदी ने विदेशों के लगाए, क्या किसी अन्य प्रधानमंत्री ने लगाए? जितनी बड़ी जन-सभाएं मोदी ने वहां की, उतनी बड़ी सभाएं हमारे अन्य प्रधानमंत्री तो क्या, उन देशों के प्रधानमंत्री भी नहीं कर सकते। इसके अलावा भ्रष्टाचार का एक भी मामला अभी तक उजागर नहीं हुआ है। इसलिए उन्हें 10 में से 10 नंबर!
लेकिन 7 प्रतिशत की आर्थिक प्रगति का आंकड़ा नचाने के बावजूद रोजगार एक-चौथाई भी यह सरकार पैदा नहीं कर सकी याने प्रगति किसकी हो रही है? तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम एक-चौथाई हो जाने के बावजूद मंहगाई कम होना तो दूर, तेल के दाम भी कम नहीं हुए। व्यापारी और उद्योगपति सभी हाय-हाय करते दिखाई पड़ रहे हैं। क्यों? पड़ौसी देशों के साथ संबंध सुधारने की ताबड़-तोड़ कोशिश लेकिन तनाव बढ़ता ही चला जा रहा है। भाजपा अब कांग्रेस के अखिल भारतीय विकल्प की तरह उभरने लगी है लेकिन पांच राज्यों के चुनाव में उसे भाजपा से सीटें दुगुनी और वोट उससे कहीं ज्यादा ही मिले हैं। भाजपा अब कांग्रेस के ढर्रे पर ही है। वह ‘मां-बेटा पार्टी’ है और यह ‘मैं और मेरा भाई’ पार्टी बनती जा रही है। मैं और मेरा भाय! पीते हैं चाय !! भाजपा के पास प्रचंड बहुमत तो है लेकिन उतनी ही बहु मति भी है कि नहीं? शायद इसीलिए वह न्यायपालिका और विपक्ष के साथ अभी तक पटरी नहीं बिठा पाई।
विगत दो वर्ष का सिंहावलोकन इसलिए उचित है कि लक्ष्य तक पहुँचने के मार्ग में जो अवरोध हैं, वे किस प्रकार दूर हों, इसका चिंतन मनन ! समर्थक उपलब्धियों पर मुस्कुरा सकते हैं, तो विरोधी कमियों को गिनाकर खुश हो सकते हैं, अपनी भविष्य की संभावनाओं का द्वार खुलता देखकर ! लेकिन जनता ? वह मुस्कुरायेगी या ????
अब वापस अमिताभ जी पर आते हैं ! पिछले लोकसभा चुनाव में कालेधन और भ्रष्टाचार का मुद्दा सबसे बड़ा था, किन्तु हाल के पश्चिम बंगाल चुनाव में भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों से घिरी ममता जी की वापसी ने दर्शा दिया कि अब जनता मानने लगी है – सब एक ही थाली के चट्टेबट्टे हैं, तू नागनाथ, तू सांपनाथ ! अतः मोदी सरकार ने भी जनता का मूड भांपकर कालेधन के आरोपी अमिताभ बच्चन को सरकारी आयोजन का संचालन सोंप दिया ! शायद भाजपा का आत्मविश्वास हिल गया है ! शायद उसे लगता है कि अब मोदी जी के नाम में वह आकर्षण नहीं बचा, जिसके चलते दिल्ली में उन्हें सुनने इण्डिया गेट पर आये ! क्या इसलिये भाजपा अब फिल्म अभिनेता का सहारा लेने को विवश हुई है ?
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
एक टिप्पणी भेजें