सिंहस्थ पर्व - बदलता स्वरुप – आस्था या मौज मस्ती की पिकनिक


आज सिंहस्थ का अंतिम पर्व स्नान है ! इस अवसर पर पूरी के जगद्गुरू शंकराचार्य निश्चलानंद जी ने कुछ अहम सवाल उठाये – 

उन्होंने कहा कि सिंहस्थ महापर्व है न कि पर्यटन !

निहित राजनैतिक स्वार्थ और धर्म को गड्डमड्ड नहीं किया जाना चाहिए ! 

केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन सिंहस्थ कुंभ के लिए एक आयोजन समिति का गठन करे, जिसमें संतों, विद्वानों और विशेषज्ञों को सदस्य बनाया जाए । यह समिति सिंहस्थ और' कुंभ के मूल स्वरूप को कायम रखे ।

यह आस्था और भक्ति के स्थान हैं, इन्हें पर्यटन स्थल में नहीं बदला जाना चाहिए । लोग संतों के साथ क्षिप्रा में स्नान कर उनके सानिध्य में अपने जीवन में आध्यात्मिकता का समावेश करें, और अपने भविष्य के जीवन के लिए यहां से एक अच्छा संदेश लेकर लौटें ।

इसके पूर्व तक संत, महात्मा, आचार्य और विद्वान सिंहस्थ के लिए आते रहे हैं, और न केवल धर्म और संस्कृति की रक्षा बल्कि राष्ट्र और समाज की समस्याओं पर भी विचार-विमर्श द्वारा मार्गदर्शन देते रहे हैं । सत्ताधीश भी सदा उनके मार्गदर्शन की अपेक्षा करते रहे हैं । किन्तु इस बार यह प्रकृति बदल गई है ! सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी अपनी विचारधारा के प्रचार के लिए सिंहस्थ का उपयोग करे, यह ठीक नहीं है।

सिंहस्थ-पर्व में हर स्थान पर लाउडस्पीकरों की भरमार है; ध्वनि प्रदूषण हो रहा है। यह यथासंभव कम किया जाना चाहिए।

सिंहस्थ आयोजन की झलकियाँ -

'अप्पू घर' और 'चमत्कारी त्रिशूल' आदि लोगों के मनोरंजन के लिए उपलब्ध हैं। एलईडी स्क्रीन पर फिल्मी गाने दिखाए जा रहे हैं।

संन्यासियों के पास या '' कथा ', प्रवचन, कीर्तन ' जैसे कार्यक्रमों में बहुत कम संख्या में लोग जा रहे हैं, लेकिन मनोरंजन कार्यक्रमों में भीड़ की रेलमपेल है । एक प्रसिद्ध अखबार ने फोटो के साथ समाचार प्रकाशित किया, जिसमें एक कथा पंडाल में बैठा इकलौते व्यक्ति का वर्णन था ।

कई 'अखाड़ों', ने शानदार मेहराबदार रोशनी की जगमगाहट के साथ अपने पंडाल लगाए हैं ।वहाँ हर जगह चकाचौंध है। लोग भी किसी 'संन्यासी के प्रवचन सुनने के स्थान पर इस आडम्बर पर अधिक नजरें गडाए देखे जाते हैं ।

लोगों की दिलचस्पी सच्चे संन्यासी को ढूँढने के स्थान पर किन्नर अखाड़ों' में ज्यादा है । जो देखो वो किन्नर महामंडलेश्वर लक्ष्मी को ढूंढ रहा है ! स्मरणीय है कि यह लक्ष्मी महाराष्ट्र में समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता और टीवी बहसों में धर्म विरोधी मुद्दों के समर्थन में सम्मिलित होकर खासी चर्चित रही है ! जबकि मध्य प्रदेश से प्रकाशित समाचार पत्रों में से अधिकांश, किन्नर अखाडे के महामंडलेश्वर लक्ष्मी की चर्चा करते हुए उसे आध्यात्मिक विभूति बनाए दे रहे है ।

वृन्दावन से आये एक प्रसिद्ध 'कथा-वाचक' महोदय कथा के बाद भक्तों को प्रसाद के साथ 'शिमला पान मसाला' और 'विमल पान मसाला' के पैकेट वितरण करते हैं । उनके पंडाल के बाहर इन उत्पादों के विज्ञापन लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं ! स्पष्ट ही इस प्रकार नशे की लत जैसी बातें बेमानी दिख रही है ।

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