रोकें अमीरों का और अमीर होना, गरीबी स्वतः हो जायेगी कम !

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के कार्यकाल में भारतीय जनसंघ का जोर अमीरी और गरीबी की खाई को पाटने पर था ! उस समय जनसंघ ने भारतवासियों की न्यूनतम और अधिकतम आय का अनुपात तय करने का सुझाव भी दिया था ! किन्तु आज इस दिशा में चिंतन का अभाव व्यग्र और आहत करता है ! जेटली और उनके हमकदम नौकरशाह देश को उसी मार्ग पर ले जा रहे हैं, जिस मार्ग पर नेहरू युग से देश बढ़ता रहा है !

आज देश गंभीर आर्थिक असमानता का शिकार है ! देश की कुल निजी संपत्ति का अधिकाँश भाग, केवल मुट्ठी भर लोगों के पास सिमट कर रह गया है, जबकि शेष विशाल जन समुदाय नितांत अभाव और दुर्दशा का जीवन जीने को विवश है ! देश के सभी उत्पादन के साधन, उद्योग धंधों पर गिनेचुने लोगों का अधिकार है ! यहाँ तक कि देश की अर्थव्यवस्था का अधिकाँश लाभांश भी ये ही लोग हड़प रहे हैं ! 

एक ओर तो ये अतिसंपन्न लोग पूर्ण विलासिता का जीवन जी रहे हैं, इनकी आर्थिक सम्पन्नता भी दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ती जा रही है, तो दूसरी ओर देश की अधिकाँश जनसंख्या कमरतोड़ मेहनत के बाद भी अपनी न्यूनतम जरूरतों को भी ठीक ढंग से पूरा नहीं कर पा रही है ! समाज का बहुत बड़ा कमजोर वर्ग तो दो जून की रोटी को भी तरस रहा है ! आय का अंतर इतना बढ़ चुका है कि एक व्यक्ति की एक दिन की आय, दूसरे व्यक्ति की सात पुश्तों की आय से भी अधिक हो गई है ! यदि यही न्याय है तो अन्याय क्या है ? जैसे जैसे यह आर्थिक असमानता बढ़ रही है, बैसे बैसे समाज में असंतोष भी गहरा रहा है, तो व्यवस्था से विद्रोह जैसी अराजक स्थिति भी निर्मित हो रही है ! 

अब सवाल उठता है कि आखिर इस असंतुलन का कारण क्या है ? उत्तर बिलकुल साफ़ है ! विज्ञान की उन्नति के साथ आज पूरी अर्थव्यवस्था व सामाजिक व्यवस्था साधनों पर आकर टिक गई है ! उत्पादन अब श्रम आधारित कम और साधन आधारित अधिक हो गया है ! साधनों के बल पर कम श्रम में कठिन से कठिन काम आसानी से संपन्न हो सकते हैं, जबकि साधनों के अभाव में आसान काम भी कठिन हो जाते हैं ! श्रम की महत्ता घट जाने का ही कारण है कि श्रम पर आश्रित लोग गरीबी और मुफलिसी का जीवन जीने को मजबूर हैं ! यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि लोगों की अमीरी उनके बुद्धि चातुर्य, परिश्रम या पुरुषार्थ के कारण नहीं बल्कि उनकी साधन सम्पन्नता के कारण बढ़ रही है ! उसके चलते ही संपत्ति व साधनों का केन्द्रीयकरण हो रहा है ! यह तो हुई समस्या, किन्तु इसका समाधान क्या ? इस पर भी कुछ चर्चा होनी ही चाहिए ! देश की एक समस्या यह भी है कि सब लोग समस्याएं गिनाते रहते हैं, समाधान की खोज गौण हो जाती है ! 

देश हमारा है, समस्या हमारी है तो, समाधान भी हमें ही खोजना होगा ! मेरे मत में इस जटिल और सार्वभौम समस्या का समाधान एक ही है, और वह है, गरीबी रेखा के स्थान पर समाज में अमीरी रेखा बनाना ! समाज में योग्यतम व्यक्ति के अधिकतम अधिकार और अयोग्यतम व्यक्ति के न्यूनतम अधिकार परिभाषित होने चाहिए ! इसके बिना कमजोर व्यक्ति के मूलभूत अधिकारों की रक्षा नहीं की जा सकती ! श्रम आधारित रोजगार निरंतर घटते रहे और मशीनों के द्वारा ही सारे काम होते रहे तो आजीविका विहीन लोगों का प्रतिशत समाज में कितना बढ़ जाएगा, इसका विचार होना नितांत आवश्यक है ! अगर हमें भविष्य की अराजकता से बचना है तो अभी से समृद्धि रेखा, अमीरी रेखा या समानता रेखा बनाने की पहल करना चाहिए ! 

मूल रूप से सारे प्राकृतिक संसाधन समाज के हैं, तो उन संसाधनों से अर्जित संपत्ति पर भी तो समाज का ही नैसर्गिक हक़ है ! अतः एक व्यक्ति को केवल एक औसत सीमा तक ही संपत्ति रखने का अधिकार होना चाहिए ! इससे अधिक संपत्ति के लिए उसे, उस संपत्ति का संरक्षक या ट्रस्टी माना जाए ! अधिक क्षमतावान व्यक्ति अधिक आय प्राप्त करने के लिए और उसका उपयोग करने के लिए तो स्वतंत्र हो, किन्तु संचित करने के लिए नहीं ! क्योंकि संचय करने से शेष लोगों के लिए संपत्ति की मात्रा घट जाती है, जिससे उनके मूलभूत अधिकार का हनन होता है ! इस विषय को स्पष्ट करने के लिए कृषि में चलने वाली बटाईदार व्यवस्था का उदाहरण देना उचित होगा ! बटाईदार उस व्यक्ति को कहते हैं, जिसके पास खुद की कोई जमीन नहीं होती, किन्तु वह भू स्वामी से जमीन लेकर उस पर कृषि कार्य करता है ! अपने परिश्रम द्वारा उस भूमि से वह जो कुछ उपजाता है, उसका एक अंश उस भूमि के स्वामी को प्रदान करता है ! शेष भाग मेहनत करने वाले बटाईदार का होता है ! 

यह समस्त प्राकृतिक संसाधन समाज के हैं, जिनके दोहन द्वारा अमीर और अमीर हो रहे हैं ! दूसरे शब्दों में कहें तो संसाधनों का स्वामी समाज है और संपत्ति अर्जित करने वाले बटाईदार ! तो उन्हें भी समाज को उसका अंश क्या नहीं देना चाहिए ? अतः एक नागरिक को केवल औसत सीमा तक संपत्ति रखने का मूलभूत अधिकार होना चाहिए और उससे अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से टेक्स लगाना चाहिए ! अगर यह व्यवस्था लागू कर दी जाए तो शेष किसी कर प्रणाली की आवश्यकता ही नहीं रहेगी ! जिस व्यक्ति पर जितनी अधिक संपत्ति उस पर उतना ही अधिक टेक्स ! अन्य सभी प्रकार के टेक्स समाप्त कर दिए जाने चाहिए ! 

अनेक प्रकार के करों के समाप्त होने से जहाँ एक ओर लोगों को बही खाता, बिल व्हाउचर रखने की परेशानी से मुक्ति मिलेगी, वहीं दूसरी ओर वे शासकीय और प्रशासकीय अधिकारियों के अनुचित हस्तक्षेप, अपमान व भयादोहन से भी बचेंगे ! वे पूरी सचाई के साथ अपने कार्यों का संचालन कर सकेंगे ! सभी नागरिकों को अपनी योग्यता और प्रतिभा को बढाने व समाज में अपनी योग्यता के अनुरूप स्थान प्राप्त करने के अवसर प्राप्त होंगे ! सरकार को भी राजस्व की पूर्ति हेतु शराब जैसी बुरी चीज को बिकवाने की मजबूरी से निजात मिलेगी ! 

और सबसे बड़ी बात इस एक कदम से देश के नागरिकों में संपत्ति के प्रति अत्याधिक लालच व मोह कम होगा ! प्रकृति का अनुचित विनाश रुकेगा, पर्यावरण सुरक्षित होगा, शहरों पर आबादी का दबाब कम होगा, वाहनों की संख्या नियंत्रित होने से प्रदूषण में कमी आयेगी, क्योंकि जिस पर जितने अधिक वाहन, उतना अधिक टेक्स ! आखिर वाहन और भवन संपत्ति ही तो हैं !

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1 टिप्पणियाँ

  1. Dear Bhai Sahab,
    Subject is serious, your concern over social disparity is valid, the amplitude between the troughs of rich & crest of poor is widening. Hope Government too think for this social anomaly.
    Well Bhai Sahab, keep it up.
    Regards
    Paritosh Awasthi

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