कर्नाटक में भी क्यों डूब रहा है कांग्रेस का जहाज ? - साभार नया इण्डिया

(एक वेव साईट का कमेन्ट है कि कर्नाटक को कांग्रेस मुक्त करने के लिए मोदी को जहमत उठाने की जरूरत नहीं है ! उनके लिए यह जिम्मेदारी मुख्यमंत्री सिद्धरमैया बखूबी निभा रहे हैं ! )

कर्नाटक गडबडझाला पार्टी की बदहाली का नया ठोस प्रमाण है। ध्यान रहे इस प्रदेश के प्रभारी महासचिव दिग्विजयसिंह है। मुख्यमंत्री सिद्दारमैया खुद कई कसौटियों में फेल है। एक हिसाब से भाजपा की विकट चुनौती में कांग्रेस को सिद्दारमैया को बदलना था। मगर उन्हे क्योंकि राहुल गांधी ने बनवाया है इसलिए उनको ले कर विचार नहीं हो सकता। सो केबिनेट को भारी बदला गया। मुख्यमंत्री और महासचिव दिग्विजयसिंह ने मनमर्जी ब्लूप्रिंट बनाया और राहुल गांधी से सहमति ले कर रद्दोबदल कर डाली। इसके अब उलटे नतीजे है। 

उन जैसे पुराने, अनुभवी नेता को समझ नहीं आया कि वे जो केबिनेट फेरबदल करवा रहे है उससे झगडा बनेगा। 14 मंत्रियों को हटाने का झटका भारी होगा। 14 मंत्रियों को हटा कर 13 नए मंत्रियों की शपथ या तो विधायक दल में समझदारी बनवा कर होनी थी या आंतक और डरा कर। संदेह नहीं कि अंबरेश जैसे कई मंत्री सरकार में बोझ थे। मुख्यमंत्री सिद्दारमैया चाह कर भी इनसे काम नहीं ले सकते थे। बावजूद इसके हटाए गए मंत्रियों के जनाधार और लोकप्रियता का ख्याल होना चाहिए था। पर पार्टी संभाल रहे राहुल गांधी न तह तक गए और सोचा भी नहीं। 

कांग्रेस के बचे-खुचे राज्यों में अंहम राज्य कर्नाटक है। कर्नाटक कांग्रेस में भी वैसे ही बिखराव है जैसे अरूणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बना था। अंबरेश सहित कई विधायकों के बागी सुर से आगे कुछ भी हो सकता है। तभी सवाल है कि इससे कांग्रेस हाईकमान और राहुल गांधी की लीडरशीप के सवाल क्या खडे नहीं होते? सोनिया गांधी अपने बेटे को कमान सौंपते हुए ऐसा बंदोबस्त क्यों नहीं कर पा रही है जिससे पार्टी कायदे से चलती रहे? कईयों का मानना है कि कांग्रेस में संकट की वजह सोनिया गांधी- राहुल गांधी की कमजोर होती धमक है। हकीकत में कांग्रेस के मुख्यमंत्री अपनी लापरवाही, मनमानी में जो करते रहे है उसका नतीजा अरूणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक में कांग्रेस में हुई बगावत है। जाहिर है पार्टी आलाकमान के स्तर पर ऐसी कोई गडबडी है जिससे मुख्यमंत्री और विधायको, प्रदेश संगठन के परस्पर तालमेल नहीं बन रहा। केबिनेट फेरबदल हो और उस पर प्रर्दशन, हंगामा और विद्रोह हो यह बहुत हैरानी वाली बात है।

कांग्रेस पार्टी के आला नेतृत्व खास कर राहुल गांधी ने ऐसा लग रहा है कि अरुणाचल प्रदेश, असम, उत्तराखंड और मेघालय की घटनाओं से कुछ सबक नहीं लिया है। राहुल ने उसी तरह का संकट कर्नाटक में खड़ा करा दिया है। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने जिस अंदाज में सरकार में फेरबदल की है, उससे कर्नाटक में कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। इस चुनौती को संभालने का कांग्रेस का तरीका भी वैसा ही लापरवाही वाला है, जैसा फेरबदल का था।

मिसाल के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री गुंडू राव के बेटे दिनेश गुंडू राव को मंत्री पद से हटाया गया और जब लगा कि वे बागी हो सकते हैं तो अगले ही दिन उनको प्रदेश कांग्रेस का कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया गया। यह तदर्थ व्यवस्था है। कहा जा रहा है कि पार्टी डीके शिवकुमार को अधय्क्ष बनाना चाहती है। इस समय वे राज्य सरकार में ऊर्जा मंत्री हैं। लेकिन वे बागी होकर ज्यादा नुकसान कर सकते थे इसलिए उनको बने रहने दिया गया। इसी तरह गृह मंत्री जी परमेश्वरा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने हुए हैं। वे दलित हैं और उनको हटाने की हिम्मत कांग्रेस आलाकमान नहीं कर पा रही है। ऐसा लग रहा है कि पार्टी ने सरकार के साथ साथ संगठन में भी बगावत करा दी है।

पिछले एक साल से मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ कर्नाटक कांग्रेस में मोर्चा खुला हुआ है। किसानों की आत्महत्या को लेकर उन्हें हटाने की चर्चा चल रही थी। लेकिन विवाद बढ़ा को खुद राहुल गांधी मुआयना करने गए और मुख्यमंत्री को क्लीन चिट देकर आए। चूंकि उन्हें राहुल गांधी ने बनाया है इसलिए तमाम बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद उनको बनाए रखा गया है। कुछ दिन पहले विधानसभा के उपचुनाव में सिद्धरमैया ने सीके जाफर शरीफ के पोते को टिकट दिलाया, लेकिन कहा जाता है कि पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने मिल कर उनको हरवा दिया।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे नाराज हैं। वे मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। उन्हें संतुष्ट करने के लिए उनके बेटे प्रियांक खड़गे को मंत्री बनाया गया। लेकिन इससे मामला सुलझने की बजाय और उलझ गया। जिन 14 मंत्रियों को हटाया गया उनमें से आधे बागी हो गए हैं। एस श्रीनिवास राव, एम गुट्टेवार, टी अंबरीष आदि ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोला है। 

कांग्रेस के शासन वाले गिने चुने राज्यों में कर्नाटक एकमात्र बड़ा राज्य है। वहां इस तरह की बगावत कांग्रेस के भीतर किसी गंभीर गड़बड़ी की ओर इशारा है। कांग्रेस शासन वाले दो राज्यों उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। वहां के विधायकों का भी एक धड़ा मुख्यमंत्री से नाराज है लेकिन मुख्यमंत्री आलाकमान को आंखें दिखा रहे हैं और अपनी कुर्सी बचाए हुए हैं। यह स्थिति कांग्रेस आलाकमान और प्रदेश के क्षत्रपों के बीच बढ़ रही दूरी का संकेत है। पूर्वोत्तर के जिन क्षत्रपों ने कांग्रेस छोड़ी, उन सबने इसकी शिकायत की थी कि राहुल गांधी उनकी नहीं सुनते थे। कर्नाटक में भी कमोबेश यहीं स्थिति है। ऐसा लग रहा है कि सब कुछ मुख्यमंत्री और प्रदेश के प्रभारी महासचिव के ऊपर छोड़ा हुआ है। पुराने जमाने में हर प्रदेश में कांग्रेस के पास दो, तीन या इससे ज्यादा क्षत्रप होते थे और आलाकमान का काम इनके बीच संतुलन बनाए रखने का होता था। लेकिन राहुल गांधी की कमान में यह संतुलन बिगड़ा है, जिससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ी हैं।

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