भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का अंध विरोध क्यों ? - एस. शंकर अनुरागी



जब चुनाव करीब आते हैं तो देश के सारे राजनीतिक दल भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए आपसी गठजोड़ या महागठबंधन की बातें करने लगते हैं। 

किसी भी देश में लेाकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल रखने के लिए चुनाव होता है और चुनाव में हर राजनीतिक दल का अपना विचार व सिद्धांत होता है ! व्यक्ति द्वारा चुनी गयी संवैधानिक सरकार , वास्तव में व्यक्ति के लिए होती है। भारत में भी तकरीबन 400 छोटे-बड़े , क्षेत्रीय व राष्ट्रीय दल हैं ! इनमें से बहुत से क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दलों से ही अलग होकर अपना अस्तित्व स्थापित किये हैं, जैसे महाराष्ट्र में शरद पवार की ‘‘नेशनल कांग्रेस पार्टी’’, पश्चिम बंगाल में ममता दीदी की ‘‘तृणमूल कांग्रेस’’ ये सब कांग्रेस से अलग हुए है, बिहार में जनता पार्टी से अलग होकर ‘‘राष्ट्रीय जनता दल’’; जिसके सुप्रीमो लालू यादव व ‘‘जनता दल यूनाईटेड’’ जिसके मुखिया नीतिश बाबू हैं , इसी प्रकार भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी व मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी जो पूँजीशाही व्यवस्था के इर्द-गिर्द इनकी राजनीति का केन्द्र रहता है, विश्व में लगभग बहुत से देश इस विचार को नकार चुके हैं। 

कुछ राज्यों में कुछ नये राजनीतिक दलों का भी उदय हुआ और उनके विचार व सिद्धांत भी सबसे अलग रहा , जैसे उत्तर प्रदेश में बहिन मायावती की पार्टी ‘‘बहुजन समाज पार्टी’’ (बसपा) जो ‘‘बहुजन हिताय - बहुजन सुखाय’’ का नारा लेकर आयी । प्रारंभिक दौर में ‘‘महात्मा गाँधी’’ को हरिजन की औलाद से उनको शैतान की औलाद से तुलनात्मक समीक्षा हुई , ‘‘तिलक , तराजु और तलवार , इनको मारो जूते चार’’ जैसे नये नारों को बुलन्द किया गया। जैसे इस पार्टी की विचारधारा में दिवालियापन व खोखला पल का भंडार दिखायी देती है। 

यही बहुजन समाज पार्टी ने पिछले चुनाव में सवर्णां को खुश करने के लिए नया जुमला दिया कि- ‘‘ये हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा , विष्णु , महेश है’’। ये भी जनता को गुमराह करने का ही नया तरीका है , पहले गाली देकर अपमानित करना और फिर ताली देकर सम्मान करना , ये बिल्कुल वैसा है कि कोई व्यक्ति चौराहे पर गाली देकर सामाजिक प्रतिष्ठा का हनन करे और घर पर आकर माफी माँग ले। ये इस पार्टी का वास्तविक चेहरा है, ऐसे में इनका सामाजिक व राष्ट्रीय विचार वाला चेहरा दिखाई देता है । इसी प्रकार सपा सुप्रीमो डॉ. राममनोहर लोहिया को अपना आदर्ष मानते हैं, जिन्होनें 1990 में अयोध्या जाने वाले रामभक्त कारसेवकों पर बर्बर अत्याचार किया। वर्तमान में भी मुख्तार अंसारी की पार्टी को अपनी पार्टी में विलय करने की सोच रहे थे , ये मुख्तार अंसारी वही है, जिन पर हत्या-अपहरण , लूट व वसूली जैसे कई संगीन मामलों में आरोपी हैं , जिनका प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है। 

इसी प्रकार राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी है , न जाने इसका आदर्श कौन है, क्यों कि कांग्रेस पार्टी से पहले राष्ट्रीय कांग्रेस दल इस देश में आजादी की लड़ाई लड़ रहा था , जिसकी स्थापना 1885 में ‘‘ए.ओ. ह्यूम’’ ने की थी। हमें तो यही मालूम है , सन् 1980 के दशक में भारत के राजनीतिक क्षितीज पर संपूर्ण विष्व को अपने ज्ञान से आलोकित करने के लिए राजनीतिक दल का उदय हुआ , जिसके संरक्षण व धमनियों में रक्त संचार प्रवाहित करने का काम पं. दीनदयाल उपाध्याय व कुशाभाऊ ठाकरे जैसे मनीषियों ने किया। जिसका नाम उन्होनें मंत्र की तरह ‘‘भारतीय जनता पार्टी’’ दिया यानि ऐसी पार्टी जो भारत की जनता की हित में काम करे , जो भारत के महान विचार व आदर्ष को अपना मानते हों , ऐसे श्रेष्ठ विचार रखने वाले भारतीयों की पार्टी है , जिसका अपना विचार व सिद्धांत सभी देशवासियों के हित में है। ऐसी ‘‘भारतीय जनता पार्टी’’ है , जिस पर अन्य राजनीतिक दल बार-बार सांप्रदायिक होने का आरोप लगाते रहते हैं। 

वर्तमान परिपेक्ष्य में राजनीतिक दलों में धर्मनिरपेक्षता एंव सांप्रदायिक्ता की परिभाषा ही बदल दी है, जैसे इस देश में केवल हिन्दू-मुसलमान ही रहते हो। देश के भीतर से लेकर सरहद के उस पार तक भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी की श्रैृणी में हिसाब किया जाता है। क्या देश के आदर्षां के बारे में , यहाँ की संस्कृति के बारे में , यहाँ के बहुसंख्यक समाज की हित की बात करना सांप्रदायिक है , यहाँ की लोक परंपराओं की , मान-बिन्दुओं की रक्षणार्थ बात करना सांप्रदायिक है। लेकिन जैसे ही हिन्दुत्व के मुद्दे की बात होती है, सारे राजनीतिक दल एक साथ लामबंद होकर विरोध करने लग जाते हैं। चुनाव आते ही महागठबंधन और तीसरे मोर्चे की बात होने लगती है। भाजपा हटाओ , देश बचाओ के नारे लगाये जाते हैं , ऐसा नकारात्मक वातावरण तैयार किया जाता है , मानो देश में भूचाल आने वाला हो। देश में खतरा पैदा हो गया हो , ये वातावरण निर्मित कौन करता है , हिन्दू हित के विरोध में और गैर हिन्दुओं के समर्थन मे नये-नये जुमलों का निर्माण कौन करता है ? सभी दल एकसाथ खड़े होकर किसका विरोध करते हैं, ऐसे में तो ये सभी राजनीतिक दल एक है , इनका पार्टी का विचार व सिद्धांत कहाँ चला जाता है, जो कि राष्ट्रवादी विचारों का विरोध करते हैं। ये सभी दल हिन्दू फोबिया से पीड़ित है , देश की जनता को ये समझना पड़ेगा , हालाँकि जनता इनके छलछद्म विचारों को समझने लगी है। हिन्दू और मुसलमानों के बीच यह गहरी खाई खोदने का काम कौन कर रहा है, भारतीय जनता पार्टी या वो लोग जो इस दोहरे चरित्र को समझते हैं और पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को इसका प्रतिसाद भी मिला है। 

विगत कुछ वर्षों से राजनीतिक गलियारों में एक नये चलन ने जन्म लिया है, वो है , हिन्दू आतंकवाद , भगवा आतंकवाद , आखिर ये सारे नाम किसी मुस्लिम नेता ने कहा क्या ? वो नेता भी तो हिनदू ही है , क्या बोल जाते हैं, कुछ पता ही नहीं रहता , शायद बहुसंख्यक समाज का विरोध और अल्पसंख्यकों का समर्थन ही धर्मनिरपेक्षता की नई परिभाषा हो। जब भी अयोध्या में राम मंदिर की बात हो , रामसेतू बचाने की बात हो , अमरनाथ श्राईन की बात हो तब धर्मनिरपेक्षता की गहरी नींद में सोने वालों की निंद्रा टूटती है और वो सांप्रदायिकता का राग अलापने लगते है। कष्मीर-कैराना- मुजफ्फरपुर जैसी घटनाओं में इनको सांप्रदायिकता दिखायी देती है। गोधरा कांड में कारसेवकों की निर्मम हत्या हो जाती है ,कश्मीर घाटी में हिन्दुओं को कतार में खड़ा करके गोली मारी जाती है, जेएनयू में भारत के टुकड़े - टुकड़े करने में इनकी धर्मनिरपेक्षता नहीं दिखाई देती , लेकिन जब दंगे होते हैं, तो इनको सांप्रदायिकता दिखाई देती है , ये भी तो देखें कि दंगे किसके शासनकाल में हुए , क्या भाजपा के शासन में या अन्य लोगों के ? म.प्र. , छत्तीसगढ़ , गोवा , राजस्थान , पंजाब में कितने दंगे हुए ? जबकि उ.प्र. की अखिलेश यादव के शासन में सब मिलाकर 40 दंगे हुए , तब भी भाजपा को ही बदनाम किया जाता है। ये लामबंद होकर राष्ट्रवादी विचारों का विरोध करने के बजाय , राष्ट्रहितों की वास्तविक विचार करना शुरू हो तो ऐसी नौबत ही नहीं आती , लेकिन यहाँ तो भाजपा को छोड़कर अन्य सभी दल मुठ्ठीभर लोगों की चाटुकारिता में व्यस्त रहते हैं। कहने को ये सभी दल अलग-अलग हैं, लेकिन ये राष्ट्रवादी विचार के विरोध में सब एक हो जाते है।

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