कश्मीर की स्थिति सुधर सकती है, बशर्ते... -जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल श्री जगमोहन


ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जिनमें ढांचागत सुधारों की आवश्यकता है । मतदाता व्यवस्था, संसद, न्यायपालिका, प्रशासन सम्बंधी तंत्र, निजी और सरकारी उद्योग, संचार माध्यमों तथा राज्य के अनेक संगठनों और सामाजिक ढांचे में सुधार की बहुत आवश्यकता है । कोई भी संस्था उस समय तक ईमानदारी और प्रभावपूर्ण ढंग से काम नहीं कर सकती जब तक उसके चारों तरफ का वातावरण अन्याय, आपसी गुटबन्दी और बिना उद्देश्य के शक्ति और सत्ता में बने रहने का हो। यदि हमारी नसों में जहर का संचार होगा तो उससे सारा शरीर प्रभावित होकर विकृत हो जायेगा ।

अनेक सामयिक समस्याओं का समाचार-पत्रों में समाधान सुझाया गया है । कुछ लोगों ने जो समाधान सुझाए हैं, वे अक्रियात्मक होने के साथ-साथ देश में और मतभेद पैदा करने के कारण भी हो सकते हैं । इन लोगों ने मूल वास्तविक सामयिक समस्याओं की उपेक्षा की है । इस सम्बंध में 1947 की घटनाएं हमारे लिए मार्ग निर्देशक सिद्ध हो सकती हैं । हमारे नेताओं ने देश का विभाजन इसलिए स्वीकार किया था, कि इससे साम्प्रदायिक समस्याएं समाप्त हो जाएंगी । हालांकि साम्प्रदायिक समस्याएं वैसी ही बनी हुई हैं, परन्तु इसके साथ नए क्षेत्रों में तनाव और संघर्ष और अधिक बढ़ गया है । दोनों पक्षों (भारत व पाकिस्तान) के लोगों में संदेह की भावना बढ़ी है, इसके कारण शस्त्रों की दौड़ के बढ़ने के फलस्वरूप दोनों ओर के क्षेत्रों में गरीबी और पिछड़ापन बढ़ा है । यदि हम शांत चित्त से समस्याओं का मुकाबला और समाधान करते तो एक नए राष्ट्र, नयी सभ्यता और अनेकता में एकता पैदा हो सकती थी ।

कश्मीरी पण्डितों की समस्या के समाधान के लिए प्रो. बलराज मधोक ने दक्षिण कश्मीर में एक पृथक जिले के निर्माण का सुझाव दिया, जिसमें बनिहाल की जवाहर सुरंग से बेरीनाग, कोकरनाग, मटन, मार्तण्ड और पहलगांव तथा अमरनाथ की पवित्र गुफा तक क्षेत्र शामिल करने की बात कही है । इस सुझाव से यह प्रकट होता है, कि घाटी से आतंकवाद को समाप्त नहीं किया जा सकता और हमें इसके साथ ही निर्वाह करना होगा । इस सुझाव में भूमि आदि लेने, मकानों के निर्माण आदि तथा प्रारम्भिक सुविधाएं देने आदि की अनेक कठिनाइयां भी हैं । यदि 84 करोड़ (अब 100 करोड़-सं.) जनबल का राष्ट्र अपने नागरिकों के लिए उनके अपने मूल स्थानों पर शांतिपूर्वक रहने की व्यवस्था नहीं कर सकता तो उसे राष्ट्र कहलाने का कोई अधिकार नहीं है ।

जम्मू-कश्मीर को तीन स्वतंत्र भागों-लद्दाख, जम्मू और कश्मीर घाटी में बांट देने के भी सुझाव दिए गए हैं । परन्तु ऐसा करने से समस्याओं के सुलझने की बजाय अनेक समस्याएं पैदा हो जाएंगी । जब तक देश में भेद-भाव की राजनीति और साम्प्रदायिक भावनाओं से लाभ उठाने की प्रवृत्ति मौजूद रहेगी, इस प्रकार की योजनाओं से कोई लाभ नहीं होगा। कश्मीर की समस्याओं का समाधान उसकी कमजोरियां दूर करके और वहां से असामाजिक तत्वों को समाप्त करके ही किया जा सकता है । यह कार्य केवल नवीन परिष्कृत आदर्शों से प्रेरित भारत द्वारा ही हो सकता है । ऐसे भारत में नहीं, जो बहुत छोटे-छोटे राजनीतिक स्वार्थों में लिप्त हो और जिन बातों की कश्मीर और वहां के नेताओं में पराकाष्ठा हो चुकी है और जो ज्वलंत समस्याओं की बजाय गलत भ्रमों में ही फंसे हुए हैं ।

यदि मुझे वहां रहने का और अवसर मिलता तो जो योजना मैंने बनाई थी, मैं उसे पूरी तरह लागू करता। मैं कलाश्नकोव बन्दूकों का खतरा समाप्त कर देता, युद्ध स्तर पर स्थिति से निपटता और यदि आवश्यकता पड़ती, तो पश्चिम जर्मनी की तरह अत्यन्त प्रशिक्षित व्यक्तियों का एक गुरिल्ला दल भी बनाता जिससे उन्हें शस्त्रों की सप्लाई समाप्त की जा सके । राज्य के बे-मौके उठाये गए कदमों के कारण सेब, गलीचे और अन्य सामान की खरीद के लिए राज्य के साधनों के आतंकवादियों के हाथ में जाने पर रोक लगाता और जनता को देश-द्रोहियों के विरुद्ध बगावत के लिए खड़ा कर देता, जिन्होंने राज्य की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है ।

इसके साथ ही मैं उनके लिए वह मार्ग भी खुला रखता कि स्वतंत्र चुनावों द्वारा राज्य सत्ता में आ सके । मेरे पूर्व शासन काल में किए गए प्रशासनिक कार्यों से कश्मीर के लोगों में यह विश्वास जगा था कि सही ढंग से चुनाव कराये जा सकते हैं । मैं विशेष अदालतों द्वारा कत्ल और अपहरण के मामलों में गिरफ्तार किए हुए लोगों पर मुकदमे चलाकर सरकार की स्थिति मजबूत करता, जिससे वे भविष्य में देश-द्रोहियों और उनके समर्थकों से सख्ती से पेश आ सके। विशेष अदालतों के निर्माण के फैसले के स्वरूप सैफुद्दीन सोज जैसे व्यक्तियों के राजनैतिक दबाव के कारण श्रीनगर में एक ऐसी अदालत की स्थापना की गई थी, परन्तु वहां के विषाक्त वातावरण के कारण कोई भी मुकदमा ठीक से नहीं निपटाया जा सका ।

मैं यह भी स्पष्ट कर चुका हूं, कि यदि पाकिस्तान समर्थक तत्व बदनाम करने के उपाय अपनाते तो उचित समय पर धारा 370 को समाप्त करके ऐसी स्थिति समाप्त कर देता जिसमें किसी को बदनाम करने की और अशिक्षित जनता को संकीर्ण मजहबी तत्वों द्वारा गुमराह होने से बचाया जा सकता है । एक अतिरिक्त योजना के अनुसार व्यवस्था स्थापित करने के बाद अन्य क्षेत्रों में विकास कार्यों का आरम्भ किया जा सकता है । इसके साथ ही यहां के सूफी और संतों से सम्बंधित स्थानों के विकास कार्य आरम्भ किए जा सकते हैं। चूंकि अभी भी कश्मीरी और भारतीय धार्मिक तथा सांस्कृतिक भावनाओं में एक प्रच्छन्न एकता विद्यमान है ।

इतिहास का गतिशील चक्र

कश्मीर और पूरे देश का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि इतिहास के निर्माण की पहल किसके हाथ में होगी। मेरा तात्पर्य एक ऐसे आध्यात्मिक, सामाजिक, वातावरण से युक्त लोगों से है जो देश की जीवन पद्धति का निर्धारण करेंगे। कश्मीर की वर्तमान स्थिति का प्रमुख कारण भारतीय राजनीति, सामाजिक और आध्यात्मिक व्यवस्था का नकारात्मक रवैया है। यह किसी एक व्यक्ति के कारण नहीं। यह हमारी व्यवस्था के दूषित होने के कारण हुआ और इसी कारण ऐसी संकटकालीन स्थिति में भी सन्देह और परस्पर विरोधी बातें तोड़-मरोड़ कर पेश की गईं ।

मैंने कुछ व्यक्तियों की भी आलोचना की है । मैं ऐसा नहीं करना चाहता । परन्तु मेरे सामने इतिहास की सच्चाई प्रकट करने के अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग नहीं था, परन्तु यह आलोचना व्यक्तिगत नहीं है । यह आलोचना उन नकारात्मक शक्तियों की है, जिन्होंने इन समस्याओं को सुलझने नहीं दिया । मैं समझता हूं कि भारतीय बुद्धिजीवी और विचारवान लोग सामान्य लोगों और उनके छोटे कार्यों के प्रति गोष्ठियों में विचार और लेख लिखकर अपना समय नष्ट करते हैं । इनमें से कोई भी देश की वास्तविक समस्याओं की ओर ध्यान नहीं देता । देश की समस्याओं को हल करने के लिए कोई भी क्रियात्मक कदम नहीं उठाया जा रहा । कोई आदर्श, कोई नवीन भावना, जीवन का कोई नया दर्शन राष्ट्र के सामने नहीं रखा जा रहा। इस समय भारत के सामने प्रेरणापूर्ण महान आदर्श की कमी है । देश इस समय उद्वेलित समुद्र में लंगरविहीन पोत की तरह हिचकोले खा रहा है । इसके अधिकांश यात्री निराश हैं और उन्होंने अपने आप को भाग्य के भरोसे छोड़ दिया है । शेष जो कुछ लोग बचे हैं उनमें इतनी शक्ति नहीं कि वे राष्ट्र के इस पोत की कमान संभाल कर इसे संकटों से उबार लें ।

(धारा-370 के सम्बंध में श्री जगमोहन और श्री अटल बिहारी वाजपेयी-पृष्ठ 47 से 53)

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