एमटीसीआर की सदस्यता से भारत बना हथियार निर्यातक देश - प्रमोद भार्गव


आखिरकार भारत को मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था “एमटीसीआर” की पूर्ण सदस्यता मिल ही गई। इस अहम् समूह का भारत 35वां सदस्य बना हैं। जबकि कुछ दिन पहले चीन समेत 10 देशों के विरोध के चलते भारत परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य नहीं बन पाया था। एमटीसीआर में भारत की सदस्यता किसी भी बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में पहला प्रवेश है। भारत की इस सदस्यता पर विदेश सचिव एस जयशंकर ने फ्रांस के राजदूत एलेक्जेंडर जीगलर, नीदरलैंड के राजदूत एल्फोनस स्टोलिंग और लग्जमबर्ग के प्रभारी लॉरेहुबर्टी के समक्ष सदस्यता पत्र पर हस्ताक्षर किए।

इसी महीने के पहले सप्ताह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के समय ही लगभग यह तय हो गया था कि भारत को मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था समूह के सदस्य समूह देशों में शामिल करने की औपचारिकता पूरी हो जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो साल के भीतर अमेरिका की चार यात्राओं और राष्ट्रपति बराक ओबामा से सात मुलाकातों के बाद संभावनाओं के ये द्वार खुले हैं। एमटीसीआर देशों की कतार में शामिल होने से भारत को मिसाइल बेचने के लिए विश्व बाजार के दरवाजे खुल गए हैं। मसलन दुनिया के रक्षा कारोबार में उसे मिसाइल बेचने के लिए जगह मिल जाएगी। ये दोनों ही अवसर भारत को मोदी और ओबामा के बीच बीते दो सालों के भीतर प्रगाढ़ हुई दोस्ती का परिणाम हैं। लेकिन एनएसजी में चीन का शत्रुतापूर्ण दखल अभी भी इसलिए बना रहेगा, क्योंकि इन दोनों संगठनों में सदस्यता मिलने के बाद दक्षिण एशियाई देशों में जहां चीन का वर्चस्व टूटेगा, वहीं पाकिस्तान लगभग अलग-थलग पड़ जाएगा। ये दोनों ही स्थितियां वैश्विक फलक पर भारत की भूमिका को महत्वपूर्ण और असरकारी बनाने का काम करेंगी। लेकिन चीन समेत 10 देशों के कड़े विरोध के बाद अब ऐसे आसार बन गए हैं, कि संभवतः भारत को एनएसजी की सदस्यता नहीं मिल पाएगी। 

एमटीसीआर 34 देशों का समूह था,भारत के शामिल होने के बाद इस समूह की संख्या 35 हो गई है। इस समूह की स्थापना 1987 में हुई थी। शुरूआत में इसमें जी-7 देश अमेरिका, कनाडा, जापान, इटली, फ्रांस और ब्रिटेन शामिल थे। चीन इस समूह का सदस्य नहीं है। इसलिए उसके द्वारा भारत का विरोध मुमकिन नहीं था। दरअसल एमटीसीआर मुख्य रूप से 500 किलोग्राम पोलेड ले जाने वाली एवं 300 किमी तक मार करने वाली मिसाइल और अनमैंड एरियल व्हीकल प्रौद्योगिकी “ड्रोन” की खरीद-ब्रिकी पर नियंत्रण रखती है। भारत को एमटीसीआर की सदस्यता इसलिए जरूरी थी, क्योंकि पिछले एक-डेढ़ साल के भीतर भारत कई तरह की मिसाइलों का सफल परीक्षण कर चुका है। भारत ने मिसाइल क्षेत्र में आत्मनिर्भरता 90 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक से हासिल की है। लिहाजा उसे कालांतर में दुनिया के बाजार में मिसाइल बेचने का अधिकार मिल गया है। इस सुविधा से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन “इसरो” और रक्षा अनुसंधान विकास संस्थान “डीआरडीओ” अरबों-खरबों कमाकर स्वयं तो आर्थिक रूप से स्वावलंबी होंगे ही, भारत की अर्थव्यवस्था की गति बढ़ाने में भी इन संस्थानों का बहुमूल्य योगदान भविश्य में मिलने लगेगा। वैसे भी फिलहाल हम पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल “पीएसएलवी” के माध्यम से दूसरे देशों के अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करने का काम पहले ही शुरू कर चुके हैं। इससे हमारा अंतरिक्ष में व्यापार करने का मार्ग खुल चुका है।

भारत ने पिछले साल एमटीसीआर की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। हालांकि चंद देशों ने विरोध भी किया। किंतु ओबामा और अमेरिकी प्रषासन के भारत के पक्ष जबरदस्त समर्थन के कारण यह विरोध नक्कारखाने में तूती साबित हुआ। यही नहीं अमेरिका ने एमटीसीआर के अलावा तीन अन्य निर्यात नियंत्रण व्यवस्था समूहों में भी भारत की भागीदारी सुनिष्चित करने की जोरदार पैरवी की है। ये हैं, परमाणु प्रदाता समूह, आस्ट्रेलिया समूह और वैसेनार अरेंजमेंट समूह। इनमें आस्ट्रेलिया समूह रासायनिक हथियारों पर नियंत्रण करता है। वैसेनार कमोबेश छोटे हथियारों पर नियंत्रण करता है। भारत का इस सदस्यता के लिए दावा इसलिए भी मजबूत था, क्योंकि उसने कभी भी अपने मिसाइल विकास कार्यक्रम के तहत एमटीसीआर के निर्देशों का सदस्य नहीं होने के बावजूद उल्लंघन नहीं किया। लिहाजा यह सदस्यता मोदी की बड़ी और बहुप्रतिक्षित कूटनीतिक कामयाबी है। इस सदस्यता ने एनएसजी की सदस्यता नहीं मिलने के कारण लगे घाव को भी मरहम लगाने काम किया है। 

एमटीसीआर की सदस्यता हासिल करने के साथ ही भारत उच्चस्तरीय मिसाइल प्रौद्योगिकी की खरीद करने में सक्षम होगा और रूस के साथ इसके संयुक्त उपक्रम को भी बढ़ावा मिलेगा। अब भारत रूस से क्रायोजनिक रॉकेट इंजन के लिए उच्च तकनीकें प्राप्त कर सकता है। जबकि यही तकनीक रूस ने मंगल ग्रह पर रॉकेट भेजने के समय मना कर दिया था। इस इंजन के मिलने से देश को अंतरिक्ष क्षेत्र में धाक जमाने में सफलता मिलेगी। भारत अब अमेरिका से मानवरहित हथियार युक्त ड्रोन प्राप्त कर सकेगा। इन ड्रोनों का उपयोग अमेरिका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईराक में कर चुका है। अमेरिका ने पाक स्थित आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के ठिकाने को ड्रोन से ही नष्ट किया था। अमेरिका से प्रिडेटर ड्रोन भी खरीद सकेगा। भारत अब कई देशों को भारत में ही निर्मित ब्रह्मोस मिसाइल बेचने के लिए स्वतंत्र है। इन मिसाइलों को खरीदने के लिए वियतनाम से बातचीत भी चल रही है।

भारत का असैन्य परमाणु करार अमेरिका के साथ है, इस वजह से अमेरिका ने भारत को एमटीसीआर में शामिल करने की जोरदार वकालत की थी। अमेरिका चाहता है कि भारत एनएसजी आस्ट्रेलिया समूह और वेसेनार अरेंजमेंट जैसे निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में शामिल हो। यह समूह परांपरिक, परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियारों के साथ ही प्रौद्योगिकी का नियमन करते हैं। 

इस सब के बावजूद जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर भारत को परमाणु ऊर्जा संपन्न देश बनाया जाना इसलिए जरूरी है, जिससे कार्बन उत्सर्जन की कटौती में भारत की भूमिका रेखांकित हो। दरअसल औद्योगिक विकास के साथ-साथ भारत की ऊर्जा संबंधी जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं। इसी मकसद पूर्ति के लिए मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान अमेरिकी कंपनी वेस्टिंग हाउस और भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम के बीच 6 परमाणु बिजली रिएक्टरों पर काम शुरू करने पर सहमति बनी है। इन दोनों कंपनियों के बीच जून 2017 तक अनुबंध होने की उम्मीद है। इस दौरान संयंत्र स्थापना संबंधी शर्तें तय होंगी। इससे भारत को 4800 मेगावाट अतिरिक्त परमाणु बिजली मिलने लगेगी। ऊर्जा के क्षेत्र में बहुआयामी दृश्टिकोण अपनाते हुए मोदी सरकार सौर ऊर्जा के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ रही है। बावजूद भारत की डीजल और पेट्रोल पर निर्भरता अत्याधिक है, गोया इस साल के अंत तक एनएसजी की सदस्यता मिल जाती है तो भारत की ऊर्जा संबंधी बड़ी जरूरतें परमाणु ऊर्जा की उपलब्धता से पूरी होने लग जाएंगी। 

प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
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फोन 07492 232007

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।







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