अगर मैं जिंदा रहा तो यह सुनिश्चित करुंगा कि चिदंबरम व अरुण जेटली जेल जाए। - श्री राम जेठमलानी

अगर मैं जिंदा रहा तो यह सुनिश्चित करुंगा कि चिदंबरम व अरुण जेटली जेल जाए। आज के नया इण्डिया में प्रकाशित श्री विवेक सक्सेना के एक लेख के अनुसार यही श्री राम जेठमलानी की अंतिम इच्छा है ! वैसे मैंने श्री जेठमलानी को कभी पसंद नहीं किया ! मेरा मानना रहा कि उन्होंने अपनी बौद्धिक क्षमता का उपयोग अधिकाँशतः अपराधियों को बचाने में किया ! यहाँ तक कि उन्हें एक समय तो उन्हें तस्करों का वकील कहा जाने लगा था। स्वाभाविक ही इसके माध्यम से उन्होंने पर्याप्त से भी अधिक धन अर्जित भी किया ! तभी तो वे कहते हैं कि – 

“मैंने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए बहुत पैसा खर्च किया। मुझे विश्वास है कि वे मेरी मदद के बिना प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे।“ अब आप ही सोचिये कि जो व्यक्ति यह दावा करता है कि मोदी उसकी आर्थिक मदद के सहारे प्रधानमंत्री बने, उसने कितना पैसा खर्च किया होगा ? श्री राम जेठमलानी यहाँ पर ही नहीं रुके, वे आगे कहते हैं कि जब समाचार पत्र उनके लेख छापने को तैयार नहीं हुए तो उन्होंने विज्ञापन के रूप में 13 लाख रुपए देकर इंडियन एक्सप्रेस में अपना लेख छपवाया। 

मुझे एक बात और समझ में नहीं आती कि वे राजग सरकार को अगले आम चुनाव में सत्ता से बाहर करना चाहते हैं, और इसका कारण बताते हैं, अरुण जेटली से अपनी नफरत । वे भले ही कहें कि इसका कारण कालाधन विदेश से लाने में हो रही असफलता है, किन्तु इसका मूल कारण है निजी खुन्नस ! वे उम्र के 94 बसंत पूर्ण कर चुके हैं लेकिन अपने विरोधियों को निपटाने में जुटे रहते हैं। काला धन अगर कोई मुद्दा होता तो उन्होंने बड़े बड़े अपराधियों का बचाव करते हुए अथाह पैसा न बनाया होता । 

वे 1980 में भाजपा के प्रथम उपाध्यक्ष बने । उनका तथा श्री लालकृष्ण अडवाणी जी का जन्म स्थान एक ही है । दोनों भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से शरणार्थी के रूप में भारत आये और अपना स्थान बनाया ! ईगो की हद देखिये कि वे वाजपेयी सरकार में अपनी स्थिति बेशर्म बिल्लियों के बीच फंसे शेर जैसी बताते हैं । शहरी विकास मंत्री रहते हुए क़ानून मंत्रालय के काम में लगातार हस्तक्षेप के चलते अंततः अटल जी ने उनका स्तीफा मांग लिया । 

लेकिन इन विरोधाभासों के बावजूद मैं यह कहने को बाध्य हूँ कि नया इण्डिया के इस आलेख ने मेरा श्री जेठमलानी के प्रति भाव कुछ अवश्य बदला ! मेरी नापसंदगी कुछ कम हुई ! श्री जेठमलानी की यह स्वीकारोक्ति विचारणीय है – 

अब मैं भगवान के यहां जाने के डिर्पाचर लाउंज में बैठा हूं। मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। बस आप लोगों के वादे पूरे कर दीजिएगा। ...... 

मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही मैंने एक लेख लिखा। मैंने उसे संडे गार्जियन में भेजा जिसका मैं चेयरमैन था। अगले दिन देखा कि लेख की जगह विज्ञापन छपा है। मैंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 

तमाम अखबारों में इसे छपवाने की कोशिश की पर कोई भी उसे छापने के लिए तैयार नहीं था। मैंने लेख में अरुण जेटली से सवाल पूछे थे कि आप इनका जवाब दें नहीं तो आपको मैं धोखेबाज मानूंगा। मुझे यह कहते हुए शर्म आती है कि भारतीय प्रेस खरीदा जा चुका है। 

अंत में जेठमलानी का सबसे महत्वपूर्ण कथन –

जर्मन सरकार ने लिंचिस्टन बैंक के एक कर्मचारी को 475 मिलियन डालर की रिश्वत देकर 1400 ऐसे अपराधियों की सूची हासिल की थी। फिर स्विस बैंकों के संघ ने ऐलान किया कि इसमें ज्यादातर नाम भारतीयों के है। सन 2008 में जर्मन चासंलर ने कहा कि हम किसी भी दोस्ताना सरकार को यह जानकारी देने के लिए तैयार है। मगर चाहे तब कांग्रेस की सरकार रही हो या अब अरुण जेटली वा मोदी किसी ने भी यह पता लगाने की कोशिश नहीं की। दोनों ने ही जर्मनी से नाम देने को नहीं कहा।

मैंने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया। किसी ने मेरी कोई मदद नहीं की। उन्होंने भी नहीं जो आज देश पर शासन कर रहे हैं। बावजूद इसके चिदंबरम का बेटा फंस चुका है। अगर मैं जिंदा रहा तो यह सुनिश्चित करुंगा कि चिदंबरम व अरुण जेटली जेल जाए।

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