रोको विभाजनकारी राजनीति - श्री अटल बिहारी वाजपेई



पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी के सुदीर्घ संसदीय जीवन के अनुभवों व उद्बोधनों का संग्रह “संसद में तीन दशक” कुछ वर्षों पूर्व प्रकाशित हुआ ! लोकसभा में 29 मार्च 1973 को गृह मंत्रालय की अनुदान मांगों पर हुई चर्चा के दौरान, जो भाषण उन्होंने दिया, वह आज भी प्रासंगिक है –

पाकिस्तान का विभाजन हो गया ! मजहब के आधार पर बना पाकिस्तान एक नहीं रह सका ! स्वाधीन बांगलादेश का आविर्भाव हुआ ! अब भारत का भी वातावरण बदलेगा और मजहब के आधार पर संघर्ष या विशेषाधिकारों की मांग नहीं होगी ! लेकिन ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के विभाजन और बंगला देश की मुक्ति से हमने कोई पाठ नहीं सीखा है !

मैं जानना चाहता हूँ कि आज देश का साम्प्रदायिक वातावरण क्यों बिगड़ रहा है ? आज मुस्लिम समाज में से एक वर्ग ऐसा क्यों निकल रहा है, जो मुम्बई में खड़े होकर कहता है कि हम बन्दे मातरम कहने के लिए तैयार नहीं हैं ! बन्दे मातरम इस्लाम का विरोधी नहीं है ! क्या इस्लाम को मानने वाले जब नमाज पढ़ते हैं तो इस देश की धरती पर, इस देश की पाक जमीन पर सिर नहीं टेकते हैं ? 

श्री एस.ए.शमीम – खुदा के लिए !

मगर सिर जमीन पर टेका जाता है ! इस जमीन से पैदा हुआ अन्न हम खाते हैं ! यह जमीन आख़िरी क्षणों में हमको अपनी बांहों में लपेट लेती है ! क्या दुनिया के और देशों में राष्ट्रगीत नहीं है ?

श्री एस.ए.शमीम – राष्ट्रगीत तो जनगणमन है !

मैं आपकी यही गलतफहमी दूर करना चाहता हूँ ! मेरे पास संविधान परिषद की कार्यवाही है ! यह अध्यक्ष महोदय का दिया गया बक्तव्य है –

जनगणमन शब्द संगीत वाली रचना भारत का राष्ट्र गान है, जिसके शब्दों में सरकार मौके के अनुसार परिवर्तन को अधिकृत कर सकती है और वन्देमातरम गीत जिसने भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में ऐतिहासिक भूमिका अदा की है, को जनगणमन के साथ ही आदर दिया जाएगा और इसके समान प्रतिष्ठा दी जायेगी ! 

मुम्बई में झगडा प्रारम्भ हुआ जब उर्दू मदरसों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने 26 जनवरी को वन्देमातरम कहे जाने पर खड़े होने से इनकार कर दिया !

श्री ज्योतिर्मय बसु (मार्क्सवादी) – आप सहमत हों या न हों, यह कहने का लोकतांत्रिक तरीका है !

ऐसे मुद्दों पर किसी को भी असहमत होने की इजाजत नहीं दी जा सकती ! कल यह कहेंगे कि तिरंगा झंडा है, मगर हम तिरंगे झंडे के आगे नहीं झुकेंगे ! क्योंकि हम अल्लाह के आगे झुकते हैं, इसलिए तिरंगे के आगे नहीं झुकेंगे ! हिन्दुस्तान में रहने वाले हर आदमी को तिरंगे के सामने झुकना पडेगा !

अब अलीगढ़ का मामला लाया जा रहा है ! कहा जा रहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मुस्लिम कैरेक्टर सुरक्षित रहना चाहिए ! क्या मतलब है मुस्लिम कैरेक्टर का ? मुसलमान केवल भारत में नहीं हैं, मुसलमान बांगलादेश में हैं, मुसलमान दुनिया के और देशों में हैं, क्या उन सबके विश्वविद्यालयों का कैरेक्टर एक ही होगा ? विश्वविद्यालय जिस मिट्टी पर बना है, उस मिट्टी का रंग विश्वविद्यालय पर चढ़ेगा या नहीं ? विश्वविद्यालय जिस समाज में काम करेगा, उस समाज की आशा और अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व करेगा या नहीं करेगा ?

दूसरी चीज है उर्दू के बारे में ! कल मौलाना इसहाक सम्भली ने कहा कि आज जनसंघ भी चुनाव जीतने के लिए उर्दू को उत्तर प्रदेश की दूसरी राजभाषा बनाने का समर्थन कर रहा है ! उर्दू को राजभाषा बनाने का सवाल इतना सरल नहीं है ! दूसरी राजभाषा बनाने की मांग के पीछे साम्प्रदायिक कारण हैं, अलगाव की राजनीति काम कर रही है ! आपको दूसरी राजभाषा बनाने के लिए एक नियम बनाना पडेगा ! किसी प्रदेश में कौन सी भाषा बोलने वाले कितने फीसदी हैं, तब वह भाषा राजभाषा बनाई जाए, यह आपको तय करना पडेगा ! केवल उर्दू का सवाल नहीं है, असम में बंगला का भी सवाल है, पंजाब में हिन्दी का भी सवाल है ! क्या आप उर्दू के लिए एक नियम बना देंगे और दूसरी भाषाओं के लिए दूसरे नियम ? यह नहीं हो सकता है !

दरअसल उर्दू को जिस कारण आन्दोलन का विषय बनाया जा रहा है, उसमें उर्दू भाषा के विकास की भावना नहीं है, उर्दू के झंडे तले सब मुसलमानों को एकत्रित करने और विभाजन के पूर्व की मुस्लिम लीगी राजनीति को पुनर्जीवित करने की भावना काम कर रही है ! इससे हमारा मतभेद है ! हमारा कहना यह है कि अगर आप उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाने का निर्णय करेंगे तो हर कार्यालय में छोटा पाकिस्तान बन जाएगा !

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