अरुणांचल के पूर्व मुख्य मंत्री कालीखो पुल - जुझारू नेता ने क्यों की आत्महत्या ?



अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कालिखो पुल ने पिछले 9 अगस्त को ईटानगर के अपने सरकारी निवास में आत्महत्या कर ली ! है न हैरत की बात, क्योंकि कालीखो पुल का अर्थ होता है – “बेहतर कल”? जिस व्यक्ति का नाम ही इतना आशाजनक हो, वह इतने अवसाद में डूब जाए, सहज विश्वास नहीं होता ! कालिखो पुल सुर्खियों में इसलिए आ गए थे क्योंकि उन्होंने नबाम तुकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिरा दी थी और अपने समर्थक कांग्रेसी विधायकों के साथ पार्टी से अलग हो गए थे। उनका आरोप था कि नबाम तुकी सरकार ने 6924 करोड़ रुपए का घोटाला किया है, पर कांग्रेस नेतृत्व ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। सही भी है, जो घोटाले के खुद आरोपी रहे हों, कैसे इस बात को गंभीरता से लेते !

आज 15 अगस्त का दिन कालीखो पुल के संघर्षपूर्ण जीवन पर एक नजर डालने और चिंतन करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त दिन है ! आखिर यह हमारी राजनैतिक व्यवस्था को आईना दिखाने वाला प्रसंग है -

फर्श से अर्श तक पहुंचे इस नेता की कहानी बेहद दिलचस्प और मार्मिक है । वह संघर्ष और उपलब्धि की ऐसी दास्तां है जो किसी के लिए भी प्रेरणादायक साबित हो सकती है। कालिखो पुल का जन्म 20 जुलाई 1969 को हवाई ऊंघा जिले में वाल्ला गांव में हुआ था। वह कमन मिश्मी जनजाति से थे जिसकी आबादी कुल 2500 है। इस जनजाति के ज्यादातर लोग चीन में रहते हैं। जब वह महज 13 माह के थे तब उनकी मां का निधन हो गया। जब 6 साल के हुए तो पिता चल बसे।

उन्हें रिश्ते की चाची ने पाला। वह उन्हें एक समय खाना देती थी व इसके बदले में उन्हें जंगल से लकड़ियां बटोर कर लानी पड़ती थी। जब वह 10 साल के थे तो उन्होंने अपने जिले के बढ़ईगीरी सिखाने वाले सेंटर में काम करना शुरु कर दिया। वहां उन्हें डेढ़ रुपए रोज मिलते थे। वे रात को पढ़ाई करते थे। एक बार वहां राज्य के शिक्षा मंत्री व उपायुक्त डीएस नेगी आए। उनकी मौजूदगी में पुल ने टूटी फूटी हिंदी में एक भाषण दिया और राष्ट्रभक्ति का एक गीत सुनाया।

इससे नेगी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एक बोर्डिंग स्कूल में उन्हें भर्ती करवा दिया। इसके बावजूद उनके पास आमदनी का कोई साधन नहीं था इसलिए उन्हें वहां के सर्किल आफिस में चौकीदार की नौकरी दे दी गई। उनका काम वहां फहराए जाने वाले राष्ट्रध्वज का ध्यान रखना था। वे सूरज डूबने पर ध्वज उतारते। रात को बरामदे में सो जोते और सुबह उसे फहरा देते। उन्हें इसके लिए 242 रुपए मिलते थे।

उन्होंने बढ़ईगीरी का काम किया। फिर पान की दुकान खोल कर वहां सिगरेट-तंबाकू आदि बेचने लगे। साथ ही अपनी पढ़ाई जारी रखी। 1980 में वे बीमार पड़ गए। उन्हें पेट का गंभीर रोग हो गया। तब उनके पास बहुत कम पैसे थे। उन्होंने जब इलाज के लिए अपने रिश्तेदारों से मदद मांगी तो किसी ने दो तो किसी ने पांच रुपए दिए। वे समझ गए कि इस दुनिया में उनका कोई नहीं है। वे सीधे डीएस नेगी के पास गए और अपनी समस्या बताई। उन्होंने इलाज के लिए उन्हें 2500 रुपए दिए।

बाद में वे तत्कालीन मुख्यमंत्री गोगांग अपांग के पास भी गए जिन्होंने उन्हें मुख्यमंत्री सहायता कोष से 2500 रुपए दिए। उन्होने यह राशि नेगी को वापस कर दी। ठीक हो जाने पर वे छोटे मोटे ठेके लेने लगे। उन्होंने पहला ठेका एक जूनियर इंजीनियर के घर पर बांस की बाड़ लगाने का लिया। वह जंगल से बांस कांट कर लाए और तीन दिन में बाड़ तैयार कर दी। उन्हें 400 रुपए मजदूरी मिली। फिर उन्होंने काम का दायरा बढ़ाया। मरम्मत का काम शुरु कर दिया।

देखते ही देखते ठेकेदार बन गए। जब बीए में पहुंचे तो वे 37 भवन और 13 पुलों के साथ सैकड़ों किलोमीटर सड़क का निर्माण कर चुके थे। उन्होंने 23 साल राजनीति की और 22 साल तक मंत्री बने रहे। यह 47 वर्षीय नेता पांच बार एक ही विधानसभा हौलियांग से चुनाव जीता । उन्होंने तीन शादी की थी जिनसे उनके चार बेटे हैं। एक बार उन्होंने कहा था कि जब उनकी 1996 में शादी हुई तो वह स्थान सर्किल हाउस से महज 32 किलोमीटर की दूरी पर था। जब तक वे मंत्री बन चुके थे।

उनकी शादी में तत्कालीन मुख्यमंत्री गोगांग अपांग भी आए थे। जब वे सर्किल हाउस के सामने से गुजरे तो उन्हें पुराने दिन याद आ गए जबकि वे वहां झंडा फहराते थे व रात को बरामदे में सोते थे। तब तक उनकी कार पर तिरंगा लग चुका था। वे अपनी गरीबी को नहीं भूले। उनके सरकारी आवास पर गरीब और बीमार लोगों की भीड़ लगी रहती थी। वे उन सबकी समस्याओं का समाधान करके भेजते थे।

वे अपनी बात खुलकर बिना किसी लाग लपेट के कहते थे। जब वे उत्तर पूर्वी राज्यों के सम्मेलन में हिस्सा लेने दिल्ली आए थे तो उन्होंने केंद्र को आगह करते हुए कहा था कि चीन अरुणाचल प्रदेश के अंदर घुसता चला जा रहा है। वहां कारगिल सरीखे हालात बनते जा रहे हैं। सीमावर्ती इलाकों के लोगों ने गांवों से पलायन करना शुरु कर दिया है पर किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने एक बार दिल्ली में कहा था कि एक ओर केंद्र राज्यों से जनसंख्या कम करने को कहता है और दूसरी ओर जनसंख्या के आधार पर ही मदद करता है। दिल्ली में मेट्रो और छह लेन की बात करते हैं जबकि हमारे गांवों में पगडंडी तक नहीं।

अपनी इस साफगाई के कारण उन्हें कांग्रेस ने भी एक बार पार्टी से निकाल दिया था। इस साल भी उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर पीपुल्स पार्टी आफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल होने का ऐलान कर दिया और भाजपा की मदद से सरकार बनाई। हालांकि यह समर्थन बाहर से दिया गया था। पुल पिछले एक साल से हाईकमान से शिकायत करते रहे थे कि राज्य में सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। इस साल मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने कहा था कि पहले मैं एक भवन पर झंडा लहराता था और आज पूरे अरुणाचल प्रदेश पर तिरंगा फहरा रहा हूं। 

जब सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा के फैसले को दरकिनार करते हुए उनकी सरकार को अवैध ठहराया तो वे पुनः कांग्रेस में बागी विधायकों के साथ वापस चले गए। उन्होंने इसके बाद भी पार्टी पर अपना दबाव बनाए रखा और अंततः नबाम तुकी को मुख्यमंत्री बनने से रोक ही दिया। पार्टी हाईकमान को अंततः पेमा खांडू को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। जब पेमा खांडे को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई जा रही थी तो वे उस समारोह में मौजूद रहे।

अब सवाल उठता है कि उन्होंने आत्महत्या क्यों की ? शायद इसका जबाब यह है कि वे ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे ! एक बार उनसे पूछा गया कि क्या वे ईश्वर में आस्था रखते हैं तो उन्होंने इंकार करते हुए कहा कि अगर ईश्वर होता तो मुझे इतने कष्ट क्यों झेलने पड़ते? दुष्यंत कुमार ने लिखा था –

खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही,
इक हसीं नजारा तो है, नजर के लिए !

अपना नाम आत्महत्या करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री की सूची में दर्ज करवाने वाले कालीखो पुल ने काश पुनर्जन्म के भारतीय तत्व चिंतन को पढ़ा समझा होता, इस जन्म के शेष कर्मफल अगले जन्म में भोगने ही होते हैं, यह जाना समझा होता, तो यह जुझारू नेता इस प्रकार का कायरता पूर्ण कदम नहीं उठाता ।


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